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फीकी पड़ रही पैलेस की पॉलिटिक्स, भाजपा हो या कांग्रेस, महलों को नहीं मिला रॉयल टिकट का उपहार

रायपुर। आजादी के बाद से ही राजनीति में राजघरानों की धमक दिखती रही है। चुनाव-दर-चुनाव सियासत पर रियासत की दखल पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे भी बढ़ती रही। पर आसन्न लोकसभा चुनाव की हालिया दशा पर गौर करें तो पैलेस की पॉलिटिक्स पर फीकी पड़ती दिख रही। इसकी बड़ी वजह बीते विधानसभा चुनाव में रॉयल फैमिली की शिकस्त को माना जा रही है, जिसके चलते रसूखदार चेहरों की टिकट लोकसभा में कट गई और जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है, तो इस चुनाव राजघरानों के एक भी चेहरे को पार्टी का चेहरा नहीं बनाया गया है, जो बड़े दावेदार थे। विधानसभा चुनाव 2023 में रॉयल फैमिली के सात सदस्यों को टिकट मिली पर सातों हार गए। तीन बीजेपी, तीन कांग्रेस और एक को आम आदमी पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था पर कुछ तो अपनी सीट भी नहीं बचा पाए।

चुनावी बैग्राउंड पर गौर करें तो छत्तीसगढ़ के उद्भव के बाद बीते ढाई दशक की दशा में ऐसा एक बार भी नहीं हुआ, जब विधानसभा में राजपरिवार का एक भी वंशज न रहा हो। ऐन चुनाव के मौके पर खैरागढ़ रियासत के विवाद ने कांग्रेस की सियासत में उफान ला दिया है। राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र की वोटिंग के एन पहले जारी हुए एक वीडियो ने कांग्रेस के समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। ये वीडियों खेटागढ़ रियासत के टाजा देवव्रत सिंह की दूसरी पत्नी विभा सिंह का है। यहां के राजा देववत सिंह का तीन साल पहले निधन हो गया। वे काग्रेस की तरफ से विधायक और सांसद भी रहे हैं। देववत सिंह की पहली पत्नी पद्मा सिंह से तलाक लेने के बाद देवव्रत सिंह ने विक्षा से विवाह किया। अव भूपेश बघेल टाजा की पहली पत्नी पद्मा सिंह के साथ प्रचार कर रहे हैं और देवव्रत के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस पर विभा सिंह को आपत्ति है। उन्होंने अपनी यही आपत्ति, एक वीडियों के जरिए जाहिर की है जो खूब वायरल हो रही है। कांग्रेस-बीजेपी एक दूसरे पर आरोप लगाकर इसे राजनीतिक शिगूफा बता रहे हैं।

रियासत की दो रानियों के बीच उलझ गए पूर्व सीएम भूपेश

 

मामला पूर्व मुख्यमंत्री भूपेल बघेल से जुड़ा है। इसलिए ज्यादा बड़ा और गंभीर हो गया है। रियासत की दो रानियों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री फंस गए हैं। एक कांग्रेस की तरफ है तो दूसरी उसके खिलाफ। समय के साथ छत्तीसगढ़ की सियासत में रियासतों की पूछ परख कम होती जा रही है। यही कारण है कि रियासतों का दखल भी सियासत में कम हुआ है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी, कांग्रेस ने रॉयल फैमली से सात उम्मीदवार बनाए थे, लेकिन सभी हार गए। वहीं इस लोकसभा चुनाव में महल से एक भी टिकट किसी भी पार्टी ने नहीं दिया। छत्तीसगढ़ बनने के बाद पिछले 24 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ कि विधानसभा में राजपरिवार का एक भी वंशज न रहा हो।

14 से घटकर 4 रियासत, राजाओं के घटे राजनीति में अवसर

आजादी के वक्त छत्तीसगढ़ में 14 रियासतें थीं लेकिन अब सिर्फ चार रियासतों का ही राजनीति में दखल रह गया है। इनमें सरगुजा, जशपुट, कोरिया और बसना शामिल हैं। वहीं बस्तर, खैरागढ़ ओर सारंगढ़ की सियासत भी यहां के राजघटानों से चलती रही है. लेकिन इस बार इनको न विधानसभा चुनाव में मौका मिला और न ही लोकसभा चुनाव में उनकी कोई भूमिका रही है। वक्त के साथ छत्तीसगढ़ में राजा रजवाड़ों का राजनीति में दखल कम होता जा रहा है। एक समय था जब महलों के हिसाब से प्रदेश की राजनीति चलती थी। अब राजनीति के साथ साथ आम जनता में भी उनका प्रभाव कम होता जा रहा है। आम जनता में कम होते असर ने राजाओं के राजनीति में अवसर कम कर दिए हैं।

टीएस सिंहदेव

कांग्रेस सरकार में डिप्टी चीफ मिनिस्टर रहे टीएस सिंहदेव अंबिकापुर विधानसभा सीट से चंद वोटों से चुनाव हार गए। सिंहदेव लगातार तीन बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं लेकिन चौथा चुनाव हार गए। वे बिलासपुर से लोकसभा सीट के सबसे बड़े दावेदार थे लेकिन उम्मीदवार नहीं बन सके। सिंहदेव सरगुजा राजघटाने से आते हैं। 2018 में सरगुजा रियासत के प्रभाव वाली सभी सीटें कांग्रेस ने जीती थीं तब सिंहदेव को पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा ताकतवर और प्रभावशाली राजां माना गया था।

अंबिका सिंहदेव

बैकुंठपुर सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं अंबिका सिंहदेव भी चुनाव हार गई। अंबिका कोटिया राजघटाने से आती हैं। यह राजघराना लंबे समय से छत्तीसगढ़ की राजनीति में सक्रिय ओट प्रभावशाली माना जाता रहा है।

देवेंद्र बहादुर सिंह

बसना सीट से कांग्रेस की टिकट पर खड़े हुए देवेंद्र बहादुर सिंह भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। देवेंद्र बहादुर महासमुंद की फूलद्वार रियासत के गौड रॉयल फैमिली के वंशज हैं। देवेंद्र चार चार विधायक रहे हैं और अजीत जोगी सरकार में मंत्री भी थे।

संयोगिता सिंह

चंद्रपुर से दो बार के विधायक रहे युद्धवीर सिंह की पत्नी बीजेपी की संयोगिता सिंह यहां से विधासभा चुनाव हार गई। वे यहां की सिटिंग एमएलए थीं। वे जशपुर के जूदेव राजघराने से ताल्लुक रखती हैं। उनके पति युद्धवीर सिंह, यहां के राजा रहे दिलीप सिंह जूदेव के पुत्र हैं। जूदेव यहां की राजनीति करते रहे हैं। वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे थे। इस टाजघटाने का यहां बड़ा प्रभाव माना जाता रहा है।

प्रबल प्रताप सिंह

दिलीप सिंह जूदेव के दूसरे पुत्र प्रबल प्रताप सिंह भी कोटा सीट से चुनाव हार गए। वे बीजेपी के उम्मीदवार थे।

संजीव शाह

मोहला मानपुर सीट से बीजेपी के उम्मीदवार रहे संजीव शाह भी अपना चुनाव हार गए। वे अवागढ़ चौकी की लागवंशी गोड टॉयल फैमिली के वंशज हैं।

खड़गराज सिंह

आम आदमी पार्टी ने खड़‌गराज सिंह को कवर्धा से उम्मीदवार बनाया था। वे लोहारा राजपरिवार से आते हैं। विधानसभा चुनाव में वे तीसरे नंबर पर रहे।

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