
Decreasing forests are causing water crisis। अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलें ही नहीं, औद्योगिकीकरण और अनियंत्रित खनन गतिविधियां भी जल संकट की बड़ी वजह बनकर सामने आ रहीं हैं। जल प्रबंधन को लेकर जो नीतियां हैं, उसे ताजा संकट के बीच बेहद कमजोर माना जा रहा है।
1200 से 1500 मिली मीटर। छत्तीसगढ़ में इसे औसत वर्षा माना जा रहा है लेकिन बड़ी चिंता की बात यह है कि यह असमान बारिश के रूप में सामने आती है। यही वजह है कि कुछ क्षेत्र ज्यादा बारिश हासिल कर लेते हैं, तो कुछ सूखे का सामना करते हैं। बारिश का यह असमान वितरण भी जल संकट की वजह बन रहा है।
जल संकट की यह बड़ी वजह
अधिक जल की आवश्यकता वाली फसल के बाद जल संकट की दूसरी बड़ी वजह बढ़ता औद्योगिकीकरण एवं अनियंत्रित खनन गतिविधियों को माना जा रहा है। असमान बारिश के बावजूद जल संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं हैं जिम्मेदार। नीतियां इतनी कमजोर हैं कि तालाब, कुएं और पोखर जैसे पारंपरिक जल स्रोत भी साथ छोड़ने के लिए भी विवश हैं। एकमात्र जल स्रोत नदियां ही शेष रह गईं हैं जल उपलब्धता के लिए लेकिन इनका भी साथ कितने दिन मिलेगा? जैसे सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि दोहन इनका भी खूब हो रहा है।
बिगड़ रहा पर्यावरण संतुलन
उद्योगों की स्थापना को विकास की पहली सीढ़ी माना जा रहा है लेकिन अब यह विनाश की जड़ माने जा रहे हैं क्योंकि स्थापना के लिए बड़े पैमाने पर प्राकृतिक वन खत्म किया जा रहे हैं जबकि अनुपात में नए वन तैयार नहीं किया जा रहे हैं। इससे पर्यावरण को बेहिसाब नुकसान पहुंच रहा है। असमान बारिश और घटते भूजल के लिए यह भी समान रूप से जिम्मेदार माने जा रहे हैं।
जल संकटग्रस्त यह पांच जिले
प्रदेश का बलौदा बाजार, महासमुंद, गरियाबंद, कोरबा और रायगढ़ व्यापक जल संकट वाला जिला माना जा चुका है। यह इसलिए क्योंकि यह सभी असमान बारिश वितरण के साथ औद्योगीकरण के साथ अनियंत्रित खनन जैसी गतिविधियों की चपेट में हैं। इसके अलावा इन्हीं जिलों में प्राकृतिक वनों का क्षेत्रफल लगातार घटते क्रम पर है। जिसका पहला असर जल संकट के रूप में हम सबके सामने हैं।
जल संरक्षण के लिए ठोस नीति आवश्यक
प्रदेश में जल संकट का समाधान केवल वर्षा जल पर निर्भर नहीं रह सकता। हमें जल संरक्षण की प्रभावी नीतियां लागू करनी होंगी। औद्योगिकीकरण और खनन गतिविधियों पर संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। साथ ही पारंपरिक जल स्रोतों के पुनर्जीवन और वृक्षारोपण को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार और जनता को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर