Bad governance in good governance: थानेदारों का टेंशन न रात,रेट कांट्रेक्ट और बिलासपुर वाले..विधायक जी! हीरा जैसा बनना है तो हीरा,6 में से 1 बाकी बचे 5…
थानेदारों का टेंशन न रात को नींद और दिन को चैन…
थानेदारों का लोकसभा चुनाव के पहले टेंशन बढ़ना स्वाभाविक है, पर ये टेंशन चुनाव का नहीं ट्रांसफर का है। क्योंकि, राज्य सरकार द्वारा निरीक्षक स्तर के लगभग 4 सौ लोगों का ट्रांसफर लिस्ट जारी होना है। तबादले की सुगबुगाहट से जिले में पदस्थ पांच थानेदारों की टेंशन बढ़ गई है। वैसे तो उनके माथे में शिकन सख्त कप्तान के पदस्थ होते ही आ गई थी।
क्योंकि, साहब आते ही अवैध कारोबार पर पाबंद लगाते हुए ला एंड ऑर्डर के लिए काम कराने लगे। सो काम कम और नाम ज्यादा वाले थानेदारों को पुलिसिंग रास नहीं आ रहा है। कोयला, डीजल और कबाड़ से जुगाड़ बनाने वाले थानेदारों की बेसिक पुलिसिंग से रात की नींद और दिन का चैन उड़ गया है। वैसे ये वहीं थानेदार है जो आये तो थे जिला में अपना जलजला दिखाने लेकिन खुद पुलिस के चाणक्यों के जाल में फंस गए। अब जब मैदान साफ हुआ तो ट्रांसफर का टेंशन सताने लगा।
खबरीलाल की माने तो जिले में एक थानेदार ऐसे भी हैं जो जिले के हर थाने का पानी पी चुके लेकिन कोरबा का पानी हजम नहीं कर पा रहे। लिहाजा वे वापस दूसरे जिले का रुख करने और चैन की नींद लेने की बात कह रहे हैं।
रेट कांट्रेक्ट और बिलासपुर वाले टेक्निकल अफसर…
जंगल मे मोर नाचा किसने देखा का कहावत को बिलासपुर के टेक्निकल अफसर ने बदलकर रख दिया है और कह रहे एनुवल रेट कांट्रेक्ट को एक्सटेंशन को हमने बदला सबने देखा..! मामला वन विभाग में चल रहे अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने देय का है। डिपार्टमेंट में बैठे कुछ मठाधीश स्व निधि के लिए विधि को बदल कर उल्टा चोर कोतवाल को डांट रहे हैं।
खबरीलाल की माने तो मटेरियल सप्लाई के नाम पर चल रहे खेल में बिलासपुर वाले टेक्निकल अफसर का अहम रोल है। साहेब स्वयं तो बिना नियम के पदस्थ हैं और वे वार्षिक रेट कांट्रेक्ट को एक्सटेंशन देकर अपने समस्या को डबल कर लिए है।
कहा तो यह भी जा रहा है साहेब मार्च महीना में मोटी रकम इकट्ठा करने में इस कदर मशगूल है कि छुट्टी के दिन भी दफ्तर सजा रहे हैं। सरकारी धन को बिना काम के दाम देकर फिफ्टी फिफ्टी बांटने का काम आंख बंदकर किया जा रहा है। साहेब के बारे डिपार्टमेंट के लोग यह कहते हैं भैया टेक्निकल अफसर के पास न खाता न बही जो लिख दें वही सही है.!
विधायक जी! हीरा जैसा बनना है तो हीरा जैसा जलना होगा…
” सोने को जितनी आग लगे, वो उतना प्रखर निखरता है । हीरे पर जितनी धार लगे, वो खूब चमकता है”
ये पंक्तियां आदिवासी अंचल के एक विधायक पर सटीक बैठती है। नेता जी चुनाव तो जीत गए लेकिन राजनीतिक एक्टिविटी में पीछे रहे गए। लिहाजा जिले के मुखिया को भी उनका ध्यान नहीं रहा। क्योंकि दादा हीरा सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे। जनता उनके राजनीतिक सोच, समाज को संगठित करने और वाणी को धार देने वाले जंगल के शेर आहट से उन्हें पहचान लेती थी। उनके विरासत संभाल रहे विधायक को इग्नोर करना, मतलब नेताजी की वाणी में वो धार नहीं जो हीरा जैसा चमके। तभी तो उनके घर मे कार्यक्रम हुआ और उन्हें प्रशसान निमंत्रण देना भी उचित नहीं समझा।
मामला महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजन किये पाली महोत्सव का है। आयोजन की बागडोर प्रशसान के हाथों में रहती है। प्रशासनिक अफसर ही ये तय करते है किसे मंच में बैठना है और किसे दिखाना है बाहर का रास्ता…! सो इस शिवरात्रि भी जिला के मुखिया से चूक हुई या कुछ और..! ये तो आयोजन समिति जाने लेकिन, उनके एक चूक से स्थानीय जनप्रतिनिधियों की आंखे खोल दी। विधायक को इग्नोर तो किया लेकिन अब ट्रायबल लीडर को उनके सलाहकार समझा रहे हैं कि दादा हीरा सिंह जैसे बनने के लिए नेता जी हीरा जैसा तपना होगा।
सुशासन में दुशासन
छत्तीसगढ़ में नई सरकार को आए करीब साढ़े तीन महीना गुजर गया है। बीजेपी के आला नेतृत्व ने प्रदेश में सुशासन और मोदी गारंटी को पूरा करने के लिए नए चेहरों को सत्ता की बागडोर सौंप दी, उम्मीद थी कि प्रदेश विष्णुदेव साय सरकार के आने के बाद गुड गवर्नेंस दिखाई देगा। मगर सुशासन वाली सरकार मंत्रियों के ओएसडी नियुक्त करने में सरकारी सिस्टम में सालों से सेटिंग और उगाही करने वाले अफसरों के चयन में चूक कर बैठी।
जुगाड़ जंतर में महिर ये पुराने घाघ अफसर मंत्रियों के निजी स्टाफ में फिर घुस आए। और अब सरकार की किरकिरी भी होने लगी। मंत्रालय में इस बात की चर्चा है कि एक मंत्री के डिप्टी कलेक्टर ओएसडी तो अफसरों को सीधे फोन लगाकर ट्रांसफर और पोस्टिंग के रेट भी तय कर चुके हैं। बात तब चर्चा में आई तब पुराने स्टाइल में गलत नंबर पर फोन डायल कर बैठें। जो भी हो सरकार के मंत्रियों के ऐसे निजी सहायकों से बच कर रहना होगा नहीं तो सुशासन वाली सरकार ऐसे सरकारी दुशासन की वजह से बेवजह अपनी किरकिरी करानी पड़ सकती है।
6 में से 1 बाकी बचे 5...
लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने में गिनती के दिन बचे हैं। छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने सभी 11 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया मगर कांग्रेस जिन्हें चुनाव लड़ाना चाहती है उन चेहरों पर पार्टी में ही एक राय नहीं बन पा रही है। अभी तक कांग्रेस में केवल 6 उम्मीदवारों का ऐलान हुआ है। उनमें से एक सीट तो ऐसी है जिसमें खबर चल पड़ी की यहां से पार्टी ने जिन्हें उम्मीदवार बनाया है वो टिकट वापस करने को तैयार है, हालांकि बाद में खबर अफवाह निकली।
कांग्रेस में हालत ये है कि राजनांदगांव से उम्मीदवार बनाएं गए पूर्व सीएम भूपेश बघेल ही अकेल शख्स हैं जो उम्मीदवारी का ऐलान होने के बाद अपने संसदीय क्षेत्र में जनसंपर्क करने पहुंचे हैं। यानि 6 में से 1 सीट पर कांग्रेस दमदारी से चुनाव लड़ने को तैयार दिख रही है। बाकी बची 5 सीटों पर कांग्रेस में कोई खास उत्साह नहीं नजर नहीं आ रहा है।
कोरबा में दीदी और भाभी आमने सामने हैं…इन दो महिला चेहरों की लड़ाई में महिलाओं का वोट किसकी ओर खिसकने वाला है इसे लेकर गुणा भाग लगाएं जा रहे हैं। रायपुर में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के चेहरे के आगे कांग्रेस का युवा चेहरा कितना टिक पाएगा ये भी बड़ा सवाल है। महासमुंद में पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ कांग्रेसियों ने ही मोर्चा खोल दिया है।
दुर्ग में चुनाव से पहले शांति खतरे की घंटी है। रही बात जांजगीर चांपा की तो यहां बीजेपी की घेरा बंदी से निपट पाना थोड़ा मुश्किल होने जा रहा है। भाजपा के एक बड़े मंत्री और हिन्दूवादी चेहरा को यहां की जिम्मेदारी दी गई है। कुल मिलाकर बीजेपी के पास मोदी की गारंटी, महिला वंदन योजना, पीएम आवास, धान बोनस की अंतर राशि का पिटारा है वहीं कांग्रेस के पास पिछली सरकार के कार्यकाल की उपलब्धि गिनाने के अलावा कोई ठोस मुद्दा नहीं जिसे लेकर जनता के बीच जाया जा सके।
हालांकि कांग्रेस में अभी 5 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया गया है मगर बस्तर और सरगुजा में अभी से गुटबाजी सामने आने लगी है। यहीं हाल रहा तो प्रदेश में 9 दो 11 यानि बीजेपी के मिशन 11.11 को रोक पाना कांंग्रेस के लिए मुश्किल भरा होगा।