कटाक्ष

Talking about work: हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था,दुबे के दंभ, “बा” नी के बाण से.. KGF की तर्ज चल रहा कोयले का,सड़क पर आदिवासी…

हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था..

कोयलांचल के एक नेता कम कोल कारोबारी अधिक के दामन में मारपीट का दाग क्या लगा ,पूरा कुनबा उसे बचाने में जुट गया है। कहते है कोयले का काला कारोबार कर कभी किसी ने चैन की जिंदगी नहीं जीया है..! कोयला नवीश सोने के सिक्कों के दम पर कानून को हाथ का खिलौना समझने लगे थे। सूत्रों की माने तो माइंस से कोयला निकालने को लेकर उनका कई मर्तबा लोगों से विवाद हो चुका है। ये पहली बार है कि उनके हाथ कानून के आगे बेबश है। नहीं तो हर बार दांव पेंच के दबाव और प्रभाव के दम पर कानून का तोड़ निकाल लेते थे।

तभी तो स्थानीय लोग इन जनाब को सलाखों के पीछे भेजने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इन सबके बीच अधिकारी मुस्कुरा रहे हैं। धधक रही आग में हाथ सेंक रहे हैं। वहीं राजनीतिक पंडित तरह तरह के मुहावरे नेताओं को सुझा रहे और कुछ सत्ता पक्ष के नेता दिल मे जख्म लेकर दिलवाले का डायलॉग ” हमें तो अपनो ने लुटा गैरों में कहां दम था जहां कश्ती थी डूबी वहां पानी कम था..” सुना रहे हैं।

उनका ये डायलॉग सुनाना भी लाजमी है क्योंकि विपक्ष में रहने के बाद भी जिले कद्दावर नेताओं के ठाठ में कोई कमी नहीं रही और समर्थक दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करते रहे। 15 साल बाद जब सरकार बनी तो उम्मीद थी कि जिले के शीर्ष अधिकारी देहरी में माथा टेकेंगे पर ऐसा हुआ नहीं। उल्टा सत्ता पक्ष के नेताओं के हर उल्टे काम मे रोड़ा अटकाने का काम शुरू हो गया। तभी तो संगठन के सह प्रभारी के बैठक में कांग्रेसियों ने अपना दुखड़ा सुनाकर ” दिल के अरमां आंसुओं में बह गए.. का गान गुनगुना रहे हैं..!

दुबे के दंभ, “बा” नी के बाण से बना “क” शेर

अजय देवगन का वो डायलॉग ” खूब जमेगा रंग जब मिल बैठेंगे तीन यार आप मैं औऱ बैगपाइपर सोडा..” वाली बात ट्राइबल डिपार्टमेंट की तिकड़ी के डायलॉग “जब मिल बैठे तीन यार डूबे जानी और कहानी.. तो खूब करेंगे मनमानी.. पर सटीक बैठ रही है। ” टेण्डर घोटाले के मुख्य पटकथा लेखक कहे जाने वाले विभाग के सुपर एसई ने नई पटकथा रचकर विभाग को बैक फुट पर लाकर पटक दिया है।

वैसे कम हाइट वाले महाराज अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते है। हां ये बात अलग है कि ये स्क्रिप्ट राइटर कम डायरेक्टर साहेब डायरेक्ट वार किसी पर नहीं करते। इनकी तासीर है ये बंदूक चलाने के लिए किसी को हीरो सिद्ध कर उसे मजबूत बताकर चने के झाड़ पर चढ़ाकर फायर कर देते हैं और कहीं मामला उल्टा पड़ा तो मजबूत कंधे वाले हीरो की गर्दन फंदे में चढ़ जाती है लेकिन, स्वयं साहेब गियर चेंज कर गिड़गिड़ाकर अपना रास्ता साफ कर लेते हैं।

मतलब हर विद्या में पारंगत है तभी तो जब से सरकारी नौकरी पर है तब से अधिकारियों की आंखों के तारे रहे हैं। ये बात अलग है कि पिछले कुछ समय से वे ट्राइबल की पिच पर ठीक से नहीं खेल पा रहे थे। लेकिन, जैसे ही अधिकारी बदला तो अपनी ठग विद्या फिर दिखाना शुरू कर दिया है। इसी स्क्रिप्ट का एक हिस्सा विभाग के फाइल गुमने का है। जब जनाब स्वयं निर्माण के निर्माता है तो फाइल गायब कैसे हुई… इसका मतलब साफ है विभाग में कोई और भी फाइल गुम सकता है क्योंकि कहा भी गया है ” किसी का काम खराब न कर सको तो उसको नाम खराब कर दो।

खैर पब्लिक विभाग के डूबे जानी और कहानी के असली किरदार की कहानी को जानती है। तभी तो जनमानस में चर्चा चल पड़ी है कि दुबे के दंभ और बानी के बाण से साहब मूंछ पर ताव देकर “क” का कबूतर की जगह शेर तो बन गए हैं लेकिन, यह भी हो सकता है कि साहब बिना रन बनाए ढेर हो जाएं। वैसे कहा भी गया है हवा का साथ पाकर धूल भी आसमान में उड़ने लगता है लेकिन जब तक हवा का रुख तेज है तभी तक वह मगन होकर गगन में उड़ेगा। इसके बाद धूल को एक न एक दिन धरातल पर धूसरित ही होना है।

KGF की तर्ज चल रहा कोयले का अलग साम्राज्य…

पिछले साल रिलीज साउथ की KGF2 मूवी की चर्चा चारों ओर रही। लोकतांत्रिक देश में एक अलग साम्राज्य को फिल्मकार ने बखूबी फिल्माया है। फ़िल्म के मुख्य किरदार रॉकी जो सोने की खान से सोना निकालने अलग फौज खड़ा करता है। ठीक उसी की तर्ज पर काली कमाई का गढ़ कहे जाने वाले कोरबा में भी कोयले का अलग साम्राज्य चल रहा है।

खदान में रॉकी भाई नही बल्कि “साजिश ” जाल बुनकर खनिज संपदा का दोहन कर रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनके कारोबार को गति देने के लिए एक गिरोह तैनात है जो अलग अलग किरदार में काम कर रहे हैं। खबरीलाल की माने तो खदान से कोहिनूर निकालने वाले तस्कर की दहशत इस कदर है कि स्थानीय अधिकारी उनके कामों पर दखल नहीं दे पा रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कोयलांचल के थानेदार उनके अवैध कारोबार को संरक्षण देकर माल बना रहे हैं।

सोशल मीडिया में चल रहे वीडियो पर गौर करें तो खदान से कोयला निकालने वाले मजदूरों की कतार इस बात का गवाह है कि एसईसीएल के अधिकारी भी चोरी के खेल में बराबर के हिस्सेदार हैं। सूत्र बताते हैं कि अलग अलग खदानों की बीच लगने वाली कोयला मंडी में नेताओं का ” पड़ला ” भारी है।

काम की बात….

इसी सप्ताह बस्तर में प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव का शंखनाद कर दिया। इसमें जगदलपुर के आस पास के अलग अलग जिलों की महिलाएं पहुंची थी। इसे नाम दिया गया था ”भरोसे का सम्मेलन”। कांग्रेस के भरोसे के इस सम्मेलन में प्रियंका ने ना केवल सीएम भूपेश बघेल की सरकार के तारीफ के पुल बांधे वरन हाईकमान के बघेल पर भरोसे पर अपनी मुहर लगा दी। साथ ही पार्टी के नेताओं को कार्यकर्ताओं को काम की बात भी बता गई।

इशारों इशारों में प्रियंका ने साफ कर दिया कि अगले चुनाव में भूपेश बघेल ही प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा होंगे। पार्टी के सभी नेता काम की बात जान लें और चुनाव की तैयारी में जुट जाए, सरकार की तारीफ के बहाने वो यहीं संदेश देना चाह रही ​थी और पार्टी के लोग उनकी बात समझ भी गए।

प्रियंका गांधी के दिल्ली लौटने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस में बयान बाजी भी कम हो गई है यानि चुनाव तक केवल वही बात कही जा रही है जो काम की हो …। और जिसने भी काम की बात के अलावा फिजूल की बात की पार्टी उससे किनारा करने में कोई देर नहीं दिखाएगी। चलो अच्छा ही हुआ…कांग्रेस में अगर काम की बात होगी तो उससे पार्टी और प्रदेश की जनता का भला ही होगा।

सड़क पर आदिवासी…

राजधानी रायपुर में रविवार का दिन वीआईपी रोड के लिए रेलमपेल वाला दिन साबित हुआ। प्रदेश के धर्मांतरित वर्ग के डीलिस्टिंग के लिए आदिवासी समाज के हजारों लोग अपनी बात सरकार के सामने रखने के सड़क पर उतर आए। जनजाति सुरक्षा मंच छत्तीसगढ़ के बैनर तले आयोजित डीलिस्टिंग महारैली में आरक्षण और धर्मांतरण का मुद्दा जोर-शोर से गूंजा। आरोप लगाए गए कि धर्म परिवर्तन करने वाले लोग छत्तीसगढ़ के मूल जनजातियों के हिस्से की सुविधाओं को अवैध रूप से दोहन कर रहे हैं।

वक्ताओं ने सवाल उठाए कि जब जनजाति अपने मूल संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को अस्वीकार कर दूसरे धर्म में परिवर्तित हो जाता है तो वह जनजातियों को मिलने वाले लाभों को उठाने का पात्र कैसे हो सकता है ? उनका सवाल काफी हद तक सवाल तो खड़ा करता है और इसका जवाब सरकार के पास भी नहीं हैं। डीलिस्टिंग का मामला कोर्ट कचहरी तक भी पहुंचा मगर मूल आदिवासी समाज का सवाल वहीं का वहीं है।

बस्तर सरगुजा और जशपुर में धर्मांतरण का मुद्दा बेहद संवेदनशील है। बस्तर में तो आए दिन विवाद हो रहे हैं। हालांकि कि सरकार जबरन या लोभ देकर धर्मांतरण से इंकार करती आ रही है पर मूल आदिवासी समाज के इस सवाल ने सरकार को उलझा दिया है। मूल आदिवासी समाज अगर सड़क पर उतरने को तैयार हैं तो इस असर आने वाले चुनाव में दिखना तय है।

    ✍️अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा

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