Starting from village city : गांधी जी के तीन बंदर और चोर-सिपाही,तस्करी का पीपी मॉडल..बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाएं,गुड गवर्नेंस वाली सांय सांय सरकार…
बचपन में खेले जाने वाले चोर सिपाही के खेल में चक्रव्यूह ने एंट्री कर ली है। जिला पुलिस प्रशासन में चल रहे चोर सिपाही के खेल में खाकी के वीर सिपाही चक्रव्यूह में उलझकर रह गए है और चोर पुलिस को साथ लेकर मात दे रही है।
वाकया उरगा थाना क्षेत्र का है जहां पुलिस अवैध शराब कारोबारियों को पकड़ने गई थी, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया और पुलिस को ही गांववालों ने पकड़ लिया। कुछ दिन पहले आबकारी के सेटिंग से चल रहे अवैध धंधे पर पुलिस की टीम बिन बुलाए मेहमान बनकर शराब जब्त करने बेंगचुल भांठा पहुंचे थे । पुलिस सायरन को सुन गांव वालों ने पुलिस को ही घेर लिया। पुलिस टीम को बंधक बनाने की खबर वायरल होने पर जनमानस में शोर है “.. ये तो वही बात हुई कि शिकार करने निकले थे और खुद शिकार हो गये।”
वैसे तो लोगों का यह कहना भी सही है, कोई भी अवैध कारोबार बिना थाने को साधे कैसे कर सकता है? शराब के धंधे से जुड़े लोगों की माने तो थानेदार उच्च अफसरों को खुश करने और अपनी कुर्सी सुरक्षित करने दो लीटर शराब में चार पानी मिला रहे है…!
वैसे चर्चा इस बात की भी है कि जिला पुलिस की टीम कार्यवाही तो कर रही लेकिन, सिर्फ कार्रवाई के नाम पीठ थपथपाने और बड़े तस्करों को बचाने के लिए!
सूत्र बताते हैं अवैध कारोबार के खेल में हर रोज बड़े मेले लगते हैं और सबको नजराना देकर संतुष्ट किया जाता है। तभी तो थाने के आसपास चल रहे व्यापार पर गांधी जी के तीन बंदर बनकर वीर सिपाही नजरअंदाज कर जाते हैं।
तस्करी का पीपी मॉडल
पीपी मॉडल यानि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत संचालित होने वाले कामों की तर्ज पर पूरे जिले में खनिज तस्करी का काम बिना किसी रोकटोक के चल रहा है। खनिज माफिया का ये पीपी मॉडल नया टाइप का है, जिसमें स्थानीय लीडर, पुलिस और माफिया की पाटर्नरशिप है।
काम इतनी ईमानदारी से होता है कि आपस में इनका लाभ में परसेंटेज फिक्स है। पार्टनरशिप में कारोबार होने की वजह से बेख़ौफ़ होकर काले हीरे और सफ़ेद सोने की तस्करी की जा रही है। जिले के अंतिम छोर वाले थाने में काले हीरे की तस्करी को लेकर हुए मर्डर पर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया।
माइनिंग के टास्क फोर्स पर भी सेटिंग के आरोप सोलह आना सच साबित हो रहा है।अब बात अगर गौण खनिज और काला हीरा दोनों की चोरी की करें तो दोनों में वन मार्गो का अहम स्थान है। इसके बाद भी वन विभाग में जंगल राज चल रहा है। न एफआईआर, न कोई जब्ती, न बरामदगी। केवल हिसाब किताब।
शहर में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि काला हीरा तो नगर वधु है जिसका घूंघट माइनिंग, पुलिस और वन अफसर सभी मिलकर कभी भी उठा लेते है। हां ये बात अलग है कि घूंघट अब रात के अंधेरे में ही नहीं दिन के उजाले में भी उठने लगा है।
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाएं
पॉवर सिटी कोरबा की पॉलिटिक्स भी गजब की है..नगर निगम चुनाव में पार्टी में निगम सभापति को बीजेपी के पार्षदों ने ही मिलकर हरा दिया। छत्तीसगढ़ में कोरबा में ऐसा हुआ जहां बहुमत के बाद भी पार्टी को हार का स्वाद चखना पड़ा। बीजेपी की किरकिरी के बाद मंत्री से लेकर संगठन नेताओं से सवाल पूछे गए फिर डैमेज कंट्रोल भी हुआ। 4 महीने में पार्टी अपने जिलाध्यक्ष को हटा दिया और गोपाल मोदी की ताजपोशी हो गई।
लेकिन, असल मामला कोयला के काले कारोबार में पार्टी संगठन से जुड़े कुछ नेताओं के नाम सामने आने का है इसलिए पार्टी को फौरी कार्यवाहीं करनी पड़ी। एसईसीएल की सरायपाली खदान क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर एक ट्रांसपोर्टर की मौत में मंडल अध्यक्ष, जिला उपाध्यक्ष की संलिप्तता आने के बाद पार्टी की किरकिरी हुई वो अलग..आखिरकार सत्ता की प्रदक्षिणा कर बीजेपी के जिला अध्यक्ष चुने गए मनोज शर्मा को पद से हटना पड़ा। बात भी सही है ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाएं..। आगे आगे दिखिए होता है क्या..।
गुड गवर्नेंस वाली सांय सांय सरकार
सरकार ने पिछले सप्ताह काम के बोझ के मारे तहसीलदारों और पटवारियों पर बड़ी मेहरबानी दिखाई! सरकार ने नामंतरण का अधिकार तहसीलदारों से लेकर रजिस्ट्री अधिकारी को देकर दे दिया,ये सोचकर कि इनके काम का बोझ हल्का हो जाएगा। अब वीआईपी ड्यूटी और चुनाव के काम समय पर पूरे हो जाएंगे।
सरकार अब अगले स्तर पर अफसर और दफ्तर में बाबूगिरी चलाने वाले खटरालों का बोझ भी हल्का करने जा रही है। मंत्रालय और विभागाध्यक्ष ऑफिस के बीच अब कोई भी नोटशीट या पत्राचार हार्ड कॉपी में नहीं होगा। यह पूरी तरह पेपरलेस है। बाबूगिरी नहीं ई-आफिस से सरकार चलेगी। इसे कहते हैं गुड गवर्नेंस वाली सांय सांय सरकार..।
गांव शहर से शुरुआत
चुनाव चुनाव मौका देखकर भुनाओ..अब गुजरे जमाने की बात होने वाली है। देश के साथ छत्तीसगढ़ में एक देश एक चुनाव की बात जोर पकड़ने लगी है। नगरीय निकायों और ग्राम पंचायतों में संगोष्ठी आयोजित की जा रही हैं। विशेष सामान्य सभा में चर्चा के बाद एक देश एक चुनाव के समर्थन में प्रस्ताव पारित हो रहे हैं।
सरकार की मंशा है कि अलग.अलग चुनाव होने से समय, संसाधन और प्रशासनिक खर्च बढ़ते हैं। एक साथ चुनाव से चुनावी खर्चों में कमी आएगी। सुरक्षा बल, शिक्षक और प्रशासनिक अधिकारी बार-बार की चुनावी ड्यूटी से फुर्सत पा जाएंगे। सरकार को पांच साल काम करने का मौका मिलेगा।
अगर ऐसा होता है तो अच्छी बात है..सरकार के संसाधनों की पूर्ति में गरीब और मध्यम वर्ग का पसीना शामिल होता है जो वो टैक्स के रूप में चुकाते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे नवोदित राज्य के लिए तो ये और भी जरूरी है। जरूरत इस बात की है कि इसे राजनीति के नजरिए से राज्य और देश के विकास से जोड़ से देखा जाए।