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Benefits of being married: चमकेगा पुलिसिया डंडा,गजल में गलफत या नशे में हुल्लड़..दलबदलुओं को भाजपा ने नहीं दिया भाव,सीडी से नहीं ईडी से डर लगता है साहब…

🔶चमकेगा पुलिसिया डंडा

विधानसभा चुनाव में “अब नई सहिबो , बदल के रहिबो ” का श्लोगन हिट हुआ था। इस चुनाव पुलिस का डंडा हिट होने वाला है। बात ही कुछ ऐसी है कि आचार संहिता लगते ही पुलिस की कार्रवाई का डंडा जमकर चमक रहा है, कहा तो यह भी जा रहा है शहर के पॉवरफुल नेताओं के इशारे पर पुलिस पॉलिश मारकर डंडे की पॉलिसी चला रही है।

वैसे भी आचार संहिता लगने के बाद पुलिस अपनी असल स्वरूप में प्रकट होकर वीटो पॉवर का इस्तेमाल करती है। ये रेड लाइन की वीटो पॉवर वही है जिससे पुलिस चुनाव में लॉ एंड ऑर्डर के लिए गुंडे बदमाशों के अलावा वाइलेंस क्रिएट करने वालों पर चलाती है। सूत्रों की माने तो कुछ स्थानीय लोगों की कुंडली को डेड करने के लिए रेड लाइन चलाने तैयारी की जा चुकी है।

वैसे तो चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से कराने पुलिस को रेड लाइन का डंडा तो हांकना ही पड़ता है। सो पुलिस का रेड लाइन कितने अपराधियों पर चलता है यह देखने वाली बात होगी। फ़्लोरा मैक्स विवाद के बाद वैसे भी पुलिस खुफिया विभाग को एक्टिंग कर रखा है। पुलिस की चुनावी मूड में आते ही वाहनों की चेकिंग के साथ साथ बंटने वाले वाइन और नोट पर भी तीसरी आंख की नजर है। हालांकि चुनाव लड़ने वाले नेता सामग्री बांटने में पुलिस की सोच से एक कदम आगे हैं। साफ है मतदाताओं को प्रलोभन देकर वोट खरीदने की आस पर खटास लाने पुलिसिया डंडा चकमकना तय है।

 

🔶गजल में गफलत या नशे में हुल्लड़

 

भोरमदेव के एक रिसॉर्ट में 14 जनवरी को गजल की फारमाइश लेकर राजधानी के एक रसूखदार बिजनेसमैन और IPS के बीच हुआ विवाद पुलिस के लिए गले की फांस बन गया है। एक तो मामला हाईप्रोफाइल है दूजा कवर्धा गृहमंत्री विजय शर्मा का गृह जिला भी है.. ऐसे में इसकी जांच रिपोर्ट सामने आने से विभाग की ही किरकिरी होना है।

पीएचक्यू में बैठे अफसरों का कहना है कि सच्चाई सबके सामने आनी चाहिए क्योंकि ऐसी घटनाओं से पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। रिसॉर्ट में हुए विवाद का पूरा वीडियो सीसीटीवी में रिकॉर्ड है तो जांच पेडिंग क्यों बताई जा रही है।

अफसरों की दिलचस्पी इस बात पर है कि घटना के वक्त वहां कौन कौन मौजूद थे… सीसीटीवी फुटेज को क्यों दबाया जा रहा है। बिजनेसमैन को थाना कौन ले गया था और फिर थाने तक गए तो एफआईआर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखी गई।

क्या विवाद गजल में फरमाइश को लेकर गफलत से उठा या फिर शराब पीकर हुल्लड़ बाजी से हाथपाई की नौबत आ गई। जो भी हो नए साल की शुरुआत कवर्धा पुूलिस के लिए अनलकी रही। वैसे भी हर आईपीएस के लिए कवर्धा में सालभर गुजार पाना मुश्किल टॉस्क है। मगर मामला जब हाईप्रोफाइल हो तो ये परेशानी और भी बढ़ाने वाली है।

🔶दलबदलुओं को भाजपा ने नहीं दिया भाव 

 

प्रदेश में सरकार बनते ही कांग्रेस से भाजपा प्रवेश करने वाले नेताओ को पार्षद चुनाव के टिकट वितरण में भाजपा ने भाव नहीं दिया। कहा जाता है कि ” कुछ लोग जिधर की हवा है उधर ही चल पड़ते हैं हालांकि ये काम कचरे का होता है”. ठीक इसी शैली में पार्टी बदलने वाले नेता टिकट के मामले में न घर के रहे न घाट के..!

 

दरअसल विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनी तो लोकसभा चुनाव में हवा का रुख भांपते हुए नेताओं ने पाला बदलते हुए भारतीय जनता पार्टी का झंडा थाम लिया क्योंकि 8 महीना बाद निगम का चुनाव होना था, सो अपनी टिकट पक्की करने के साथ दुकानदारी चलाने का सपना संजो रखे थे। निगम चुनाव की रणभेरी बजते ही नेताओ ने टिकट के लिए दावा ठोका लेकिन भाजपा ठहरी “सैद्धांतिक” पार्टी सो टिकट वितरण में दलबदलू नेताओं को भाव तक नही दिया। कहा तो यह भी जा रहा है जो नेता टिकट की चाह में भाजपा का दामन थामे थे अब उनमें उतना साहस भी नही कि वे निर्दलीय पर्चा भरकर चुनावी बिगुल फूंक सके। मौका परस्त नेताओं को जानने वालों में खुसफुसाहट “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” की दशा को लेकर है।

 

🔶सीडी से नहीं ईडी से डर लगता है साहब…

दबंग मूवी की अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का वो डायलाग “थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, प्यार से लगता है” को राजनेता बदल कर कहने लगे है,  अब सीडी से डर नहीं लगता साहब ईडी से लगता है। सही भी है परिवर्तन प्रकृति का नियम है और बदलाव से ही जीवन में विविधता आती है। एक समय था जब लोग सीडी से डरने लगे थे। सीडी कांड ने कई गुल खिलाये हैं लेकिन अब ईडी से प्रदेश के बड़े राज घरानों को भय सता रहा है। जिस तरह तालाब के पानी कमी होने से छोटी बड़ी मछलियां फड़फड़ाने  लगती है ठीक उसी तरह ईडी के ताप से कोरबा के नेता कम व्‍यापारियों संताप है।

मामला एक कांग्रेस नेता कम व्यापारी का है। जब वार्ड में पार्षदों को टिकट लिए सूची बनी तो उन्हें भी पर्वेक्षक बनाया गया। लिस्ट में नाम देखते ही नेता जी को ईडी की रेड याद आ गई।, फिर क्या था उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए अपना नाम हटवा लिया। इस घटनाक्रम के बाद से पार्टी के भीतर खबर तैरने लगी और कहने लगे साहब सीडी से नहीं ईडी से डर लगता है। नगरी निकाय चुनाव पर हो रही चर्चा पर जनमानस में चर्चाओं का दौर है..”सीडी की तरह ईडी की भी अजीब माया है। एक बार जिसको रिकार्ड कर लेता है उसकी पिक्चर दिखा के रहता है।” लेकिन यहां तो बात ही दूसरी है पूरी पिक्‍चर तैयार है और रिलीज का इंतजार है।

 

🔶शादीशुदा होने का लाभ

 

कहते हैं कि हर कामयाब आदमी के पीछे औरत का हाथ होता है। राजनीति में ये बात 101 प्रतिशत लागू होती है। और शादीशुदा होने से नेतागिरी करने वालों को लाभ लाभ ही होता है। वैसे तो राजनीति में कोई किसी पर भरोसा नहीं करता मगर पत्नी के मामले में ये नियम लागू नहीं होता…। नेतापति पर जब जब कोई मुबीबत आती है तो वो झट पत्नी को आगे कर देते हैं..और फिर लाभ ही लाभ..यानि एकपंथ दो काज..।

अब निगम चुनाव को ही ले लिजिए दोनों दलों में पहले ये तय हुआ था कि जिन जगहों पर आरक्षण की वजह से नेताजी का बिस्तर गोल हो गया है वहां उनकी प​त्नी को उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा..। मगर टिकट फाइनल होते तक ये नियम तोड़ दिए गए। वैसे भी नेतागिरी के कोई नियम तो नहीं होते….टिकट पाने के लिए नेतागिरी में केवल एक नियम चलता है वो है…बंदे में था दम…वंदे….।

और अगर नेताजी शादीशुदा निकले तो बंदे का दम दो गुना बढ़ जाता है। और टिकट बांटने वालों की मजबूरी बन जाती है वो नेताजी की जगह उनकी पत्नी का आगे बढ़ाए..नहीं तो अगर बंदे ने चुनाव में अपना दम दिखा दिया तो पार्टी वो पार्टी को बेदम करके ही मानेगा।

 

          ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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