कटाक्ष

Koyla Express…Korba via Kasdol: वाह थानेदार! चोर से चौकीदारी, पुलिस की चेकिंग, माथा देख चंदन..तोल मोल के बोल कहीं हो न जाए डब्बा गोल,पर्चा के साथ पर्ची का खेल..

🔶 वाह थानेदार! चोर से चौकीदारी…

” उजाले से ज्यादा अंधेरे को प्यार हो गया और जिसने लुटे थे सोने चांदी के जेवरात वो बालको प्लांट का चौकीदार हो गया।” जी हां बात ही कुछ ऐसी है कि प्लांट के चौकीदार के गिरफ्तार होते ही पुलिस डिपार्टमेंट में हंगामा हो गया है। दरअसल वर्ष 2005 में आरपी नगर से गोल्ड आभूषण लूटने वाले आरोपी पुलिस वेरिफिकेशन के बाद बालको प्लांट की 18 साल से चौकीदारी करता रहा। 18 साल बाद जब आरोपी को गिरफ्तार किया गया तो प्लांट से लेकर पुलिस के उच्च अधिकारियों में खलबली मच गई।

डिपार्टमेंट में खलबली मचना स्वाभाविक भी है क्योंकि बिना पुलिस वेरिफिकेशन के बालको प्लांट में नौकरी मिलती नहीं तो चोर से चौकीदारी कराने का रिकमेंड किसने किया, जांच तो होनी ही चाहिए। सो हो भी यही रहा है नए कप्तान ने कड़ाई से नोटिस जारी करते हुए तत्कालीन थानेदार और उसके कार्यकाल का ब्यौरा मांगा है। कप्तान के तेवर के बाद पुलिस डिपार्टमेंट के लोगों की टेंशन बढ़ गई है। रही बात बालको की तो प्रबंधन के हाथ पांव इसलिए फूल रहे है कि अगर कहीं फिर से प्लांट में सर्विस करने वालो की वेरिफिकेशन हो जाए तो कई डकैत और मर्डररिस्ट के नाम सामने न आ जाए।

🔶पुलिस की चेकिंग, माथा देख चंदन घीसिंग..

आदर्श आचार संहिता लगने के बाद पुलिस डिपार्टमेंट एक्शन मोड में आकर कार्रवाई तो कर रहा है पर कार्रवाई माथा देखकर चंदन लगाने जैसा है। क्योंकि, हॉटल गणेश इन के बाहर खड़े कुछ नेताओं के वाहनों से पदनाम की पट्टिका को निकाला गया। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद लगा कि अब बिगड़ैल नवाबों के वाहनों पर भी शिकंजा कसा जाएगा, लेकिन हो कुछ उल्टा रहा है। अभी भी शहर में पदनाम पट्टिका की गाड़ियां फर्राटे भर रही हैं जो चेकिंग करने वाले अफसरों का मुंह चिढ़ाने के लिए काफी है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि एक नीली बत्ती वाली गाड़ी शहर में तो रोज फर्राटे मारती ही है। इसके अलावा साहब निजी वाहन में नीली बत्ती लगाकर बालको में ड्यूटी जाते हैं। मतलब साफ है कायदे को फायदे में बदलने वाले पॉवरफुल लोगों पर पुलिस टीम का आशीर्वाद बना हुआ है।

वैसे तो कप्तान साहब के कड़े निर्देश हैं कि रूल मतलब रूल। लेकिन, उनके निर्देश को उनके ही कारिंदे कुछ शहर का धूल और गुलाब के फूल में तब्दील कर रहे हैं। ये बात अलग है कि साहब की कड़ाई के बाद शहर की गलियों में पुलिस की सायरन बजनी शुरू हो गई है।

जिस दिन कप्तान साहब की नजर निजी गाड़ी में लगे नीली बत्ती और रेड नम्बर प्लेट पर पड़ी तो निश्चित ही शहर के नवाब कायदे में बंध जाएंगे

🔶तोल मोल के बोल कहीं हो न जाए डब्बा गोल..

विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहा है वैसे वैसे नेताओं के बोल बिगड़ते जा रहे हैं। नेताओं की बेतूकी बातों को सुनकर मतदाता कहने लगे हैं तोल मोल के बोल कहीं बिगड़े बोल के चक्कर मे डब्बा न हो जाये गोल..!  कबीर भी कह गए है “शब्द सम्हारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव। एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।”

चुनावी युद्ध भूमि राजाओं के युग की तरह अब सीमित क्षेत्र में नहीं है। जहां भी वोटर हैं, वहीं पर युद्ध का मैदान है। चारण भाट सोशल मीडिया, चैनलों पर जम गए हैं। कुछ कलमकार टाइप के मीडिया वाले भी पिल चुके हैं।

इस युद्ध में में नेता मतदाताओं को रिझाने कई तरह पैंतरे आजमा रहे हैं। वहीं कई वार्डो में मतदाताओं का आक्रोश भी झेलना पड़ रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि पार्षदों की निष्क्रियता के कारण मतदाता रुष्ठ हैं और उसका भुगतान प्रत्याशियों को भुगतना पड़ रहा है। शहर में के कुछ ऐसे भी दिग्गज नेता हैं जो शादी वाले घर के फूफा जी बन गए हैं। ऐसे नेताओं को मैनेज करने के लिए विशेष एनर्जी की खपत हो रही है।

चर्चा तो इस बात की भी है कि युद्ध का समय ज्यों ज्यों निकट आ रहा है, वैसे ही प्रत्याशियों को भय सताने लगा है। कहा भी तो गया है भय सबको लगता है और गला सबका सूखता है। सो परिणाम क्या होगा इसका भी भय सताने लगा है। उड़ती खबर की माने तो झंडा लगाने और प्रचार के दौरान हॉट-हार्ड टॉक भी हुआ है। जिसे लोग मसाला मिर्च लगाकर चौक चौराहों में चटखारे लेकर सुनाते हुए मजा ले रहे हैं। चुनावी घटनाक्रम पर गौर करते हुए चुनावी पंडित राय देते रहे हैं तोल मोल के बोलिए। ताकि मतदाता भी खुश रहे। जब आम जनमानस खुश तो फिर जीत के पटाखे फोड़ने से भला कौन रोक सकता है।

🔶कोयला एक्सप्रेस.कोरबा वाया कसडोल

हेडिंग पढ़कर आप सोच रहे होंगे, ये कौन सी नई एक्सप्रेस है जो बिना पटरी के कोरबा से कसडोल चल पड़ी है….रेलवे ने तो कोई तो ट्रेन चलाई नहीं है उल्टे जो चल रही थीं उनमें से बहुतों को रद्द कर दिया। मामला कोयला ढुलाई का है।

रेलवे की अपनी मजबूरी है…उसकी कोयला एक्सप्रेस वहीं तक चलेगी जहां तक लोहे की सरकारी पटरी बिछी हो पर जो सत्ता की आड़ में दिन और रात दोनों पाली में ढुलाई करते हैं उनके लिए पटरी नहीं सेटिंग और पेटीएम की जरूरत होती है।

कुछ ऐसा ही हाल इस वक्त कोरबा और कसडोल में दिख रहा है। कोरबा में सेटिंग और पेटीएम से चलने वाली कोयला एक्सप्रेस आज कल कसडोल के ज्यादा फेरे लगा रही है। खबरी लाल का कहना है कि कोरबा के कई अवैध कोयला ट्रांसपोटर कसडोल में डेरा डाल बैठे हैं।

वैसे तो कसडोल में कोई कोयला खदान नहीं है मगर चुनावी साल में सत्ता की मलाई ही हाथ आ जाए तो….सौदा बुरा भी नहीं है। कहने को कसडोल में धनीराम धीवर और तेलघानी बोर्ड के अध्यक्ष संदीप साहू के बीच सीधा मुकाबला है। अब कोरबा की कोयला एक्सप्रेस किसके लिए माल ढुलाई कर रही है ये देखने का काम विजिलेंस वालों का है।

🔶पर्चा के साथ पर्ची का खेल

विधानसभा चुनाव वोटरों को लुभाने का खेल शुरू हो गया है। शराब की पर्चियां सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं। पार्टी प्रत्याशी के नाम से छपे झोले में कंबल-छाता रोज एसएफटी जब्त कर रही है। मगर सरकारी शराब ठेकों में लगने वाली लाइन पर किसी की नजर नहीं है। यहां पर्चा के साथ पर्ची का खेल चल रहा है। पर्ची कौन जारी कर रहा है ये ठेकों में शराब बेचने वाले ही जानते हैं। जो पर्ची लेकर आया उसे पर्ची के हिसाब से बोतल सप्लाई करना उनका काम है।

दूसरे चरण के नामांकन का आज आखिरी दिन है। रैली में भीड़ जुटाने के लिए पर्ची बांट रही है। पर्चा भरना हो तो पर्ची…भीड़ जुटाना हो तो पर्ची, प्रचार कराना हो तो पर्ची”’जिंदाबाद मुर्दाबाद की पर्ची के रेट अलग हैं। इसमें क्वाटर नहीं पूरी बोतल का​ हिसाब होता है। ऐसी ही एक पर्ची खबरीलाल के हाथ लगी है। जैसे जैसे चुनाव की तारीख करीब आ रही है पर्ची लंबी होती जा रही है। अगर आप भी चुनाव का मजा लेना चाहते हैं तो ​किसी पर्ची बांटने वाले से संपर्क कर सकते हैं।

    ✍️अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा

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