
धनतेरस.. झाडू और कलेक्टर
एक दिन पहले धनतेरस मना और आज दिवाली मनेगी..मगर इस बार ज्वेलर्स की दुकानों सोना चांदी की खरीदारी करने वालों में लालबत्ती लगी लक्जरी गाड़ियां कम दिखीं…खबरीलाल को जब इसकी खबर लगी तब पता चला कि इस बार धनतेरस और दिवाली में मनी पॉवर वाली ब्यूरोक्रेसी में सोना चांदी की जगह झाडू खरीदने का ट्रेंड चल पड़ा है। वैसे धनतेरस में झाडू खरीदना शुभ माना गया है और मान्यता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होकर जातक के घर में विराजमान हो जाती है। वैसे तो ब्यूरोक्रेट्स की सालभर दिवाली रहती है जहां मौका मिला वहीं झाडू मारकर लक्ष्मी बटोर लेते हैं। मगर इस बार झाडू का importance धन लक्ष्मी की वजह से नहीं बल्कि खुद की कुर्सी बचाने के धनतेरस पर बुरी नजर से बचाने लिए आजमाए जाने वाले टोटके के लिए हो रहा है।
असल में पिछले सप्ताह 13 अक्टूबर को हुए कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में सीएम ने कलेक्टर्स को साफ बता दिया है..सुबह सात बजे बिस्तर छोड़ दें..बाकी आप जान ही रहे होंगे। खबर है कि कुछ जिलों के कलेक्टर्स सुबह से गली कूचों में साफ सफाई का मुआयना करने के साथ हाथ में झाडू पकड़े अपनी फोटो पोस्ट कर रहे हैं। मंत्रालय में ब्यूरोक्रेसी में भी इस बात की चर्चा है कि राज्योत्सव से पहले कलेक्टरों की एक लिस्ट निकल सकती है। इसलिए अगर अपनी कुर्सी और लक्ष्मी को बचाना है तो झाडू ही उनकी नैया पार लगा सकती है। वैसे भी इस बार की दिवाली फींकी रही..और अगर झाडू चल निकली तो इस दिवाली की कसर अगली दिवाली में पूरी कर लेंगे।
थाना प्रभारी और जुआरी…
जुआरियों को पकड़ने उर्जाधानी के ऊर्जावान थाना प्रभारियों की खुफिया रिपोर्ट फेल हो गई या यूं कहें की सेटिंग का जुआ चला और पुलिस भी समय समय पर बाजी मारती रही। अंतर बस इतना है कि दीयों में तेल लगता है, और इन फड़ों में सेटिंग का तेल।
वैसे तो दीवाली में जुआ खेलना शुभ माना जाता है। इसके पीछे भी कुछ मान्यताएं हैं। मान्यता हो या न हो जैसे पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए, वैसे ही जुआरी के लिए दीवाली एक बहाना ही है। यह भी एक प्रकार से मन को बहलाना है कि जो कोई भी दीवाली की रात को ताश खेलेगा या जुआ खेलेगा, उस पर पूरे वर्ष समृद्धि और प्रचुरता की वर्षा होगी। सो दीवाली में जुआ न हो तो दीवाली कैसी..! भले ही दिवाला निकल जाए??
तभी तो गांव से लेकर शहर तक खासकर दीवाली मतलब जुआ का फड़ में हार जीत का दांव लगना। अब ये बात अलग है इस दांव के लिए पुलिस भी दांव लगाकर बैठे रहती है… जिससे मां लक्ष्मी की कृपा बरसती रहे।
जैसे बरसात का मौसम आते ही मेंढ़क खुले में आकर ‘टर्र-टर्र’ करते हैं, ऐसे ही दीवाली के मौसम में जुआरी ‘जुआ-जुआ’ करते है और इनके पीछे पुलिस भी ‘हूवा-हूवा’ का सायरन मारते घूमती है।
दीवाली है सो अपराधियों पर खाकी का खौफ और और जनता जनार्दन पर रौब वाली पुलिस जुएं के फड़ तलाशने में लगी रही। सही भी है कहीं बड़ा फड़ पकड़ा जाता तो जुआरियों की छोड़ो कम से कम विभाग के कुछ खिलाड़ियों की दीवाली मन जाती । हां ये बात अलग है कि इस दीवाली पुलिस जुआरियों को पकड़ने बोहनी भी नही कर पाई। सूत्रधार की माने तो सोशल मीडिया युग में जुआ भी हाईटेक हो चुका है। बात अगर गांव-गांव में चल रहे जुआ फड़ की जाए तो पुलिस तलाश अब तक फड़ की जड़ पकड़ना तो दूर पत्ते,टहनी भी नही तलाश सकी है। कहा तो यह भी जा रहा है कि जुआरी इस बार खुले स्थानों को छोड़कर बंद कमरे और फार्म हाउस में बावनपरियों का आनंद ले रहे थे। जिसके कारण पुलिस को जुआ नहीं मिल सका। जनमानस में चर्चा है कि जुआ मिले भी कैसे, क्योकि जुआरी को थाना प्रभारी का आशीर्वाद जो है।
अपनों ने दिया धोखा, गैरों से शिकायत क्या…
सभापति की कुर्सी हाथ से निकलने के बाद भाजपाई इस कदर टूट चुके हैं कि गाहे-बगाहे उनके होंठों पर वही दर्द भरी ग़ज़ल आ जाती है — “अपनों ने दिया है धोखा, गैरों से शिकायत क्या; जब दोस्त ने खंजर मारा, दुश्मन की ज़रूरत क्या।”
डबल इंजन की सरकार के भरोसे बनी नगर निगम की “सरकार” में सभापति का पद ऐसा बन गया है जो हर भाजपाई के सीने में मूंग दल रहा है। नगर निगम की “सरकार” में सभापति की कुर्सी तो मानो कुर्सी नहीं, कांटा बन गई है, जो हर भाजपाई के गले में अटक गई है। सत्ता पक्ष में चेहरों पर मुस्कान है, मगर भीतर जलन का ज्वालामुखी धधक रहा है।
अब हालिया धरना-प्रदर्शन को ही देख लीजिए। शहर की सड़कों की बदहाली को लेकर नेताजी चौक पर धरने पर बैठ गए। मांग जायज़ थी, इसलिए प्रशासन भी टेंशन में आ गया। भीड़ भले ज़्यादा न जुटी हो, पर आंदोलन असरदार रहा। शाम होते-होते प्रशासन को सड़कों पर प्रेस नोट जारी करना ही पड़ा।
राजनीति में कहते हैं – “विपक्ष से लड़ना आसान है, पर अपनों के वार से बचना मुश्किल।”.अब तो हालत ये है कि हर मीटिंग में नेता पहले पीछे की कुर्सी देखते हैं, कहीं कोई खंजर तो नहीं..?
चर्चा तो इस बात की भी है कि जो काम विपक्ष के नेताओं को करना चाहिए, वही काम सभापति कर रहे हैं। यह न केवल तारीफ के काबिल है, बल्कि उन नेतागीरी के दम पर ठेकेदारी करने वाले नेताओं के मुंह पर एक करारा तमाचा भी है।
वीवीआईपी दौरा और पुलिस कमिश्नर सिस्टम
छत्तीसगढ़ में नवंबर का महीना वीवीआईपी दौरे वाला रहेगा। नक्सली मोर्च पर मिल रही बड़ी कामयाबी और प्रधानमंत्री का एक महीने में दो.दो विजिट होने से सरकार काफी व्यस्त है। इसके अलावा 15 नवंबर से धान खरीदी शुरु होनी है। ऐसे टाइट शेड्यूल की वजह से 1 नवंबर से लागू किए जाने वाला पुलिस कमिश्नर सिस्टम फिलहाल लंबा खिंचता दिख रहा है। हालांकि पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए बनी ड्राफ्ट कमेटी की रिपोर्ट सरकार तक पहुंच चुकी है। मगर ऑफिस और सेटअप अधूरा है। अभी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पीएम के दौर और उनकी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर है।
इस बार रायपुर में पीएम का विजिट दो दिन का होना है। राज्योत्सव में शामिल होने के लिए मोदी 31 अक्टूबर की रात रायपुर पहुंचेंगे और रायपुर में ही नाइट हॉल्ट के बाद 1 नवंबर को वे अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल होंगे। डीजीपी कांफ्रेंस के लिए मोदी दो दिन, दो रात रायपुर में रुकेंगे। मोदी 28 नवंबर की शाम को रायपुर आएंगे। 29 को दिनभर व्यस्त कार्यक्रम के 30 नवंबर को समापन समारोह में हिस्सा लेने के बाद शाम यहां से दिल्ली के लिए रवाना होंगे।
डीजीपी कांफ्रेंस में देशभर के पुलिस अफसर, गृह मंत्रालय, आईबी सहित केंद्रीय खुफिया विंग के कई अफसर भी कांफ्रेंस के वक्त रायपुर में रहेंगे। सभी के लिए बोर्डिंग और सुरक्षा सरकार के लिए पहली प्राथमिकता हो गई। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि रायपुर से शुरु होने वाली पुलिस कमिश्नर सिस्टम की प्रक्रिया अब नए साल से ही संभव हो पाएगी।
बिहार में छत्तीसगढ़ मॉडल
देर ही सही मगर ऐन दिवाली के दिन महागठबंधन ने 60 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया। इस बार कांग्रेस ने बिहार में पार्टी को जीत दिलाने के लिए पूर्व सीएम भूपेश बघेल को पर्यवेक्षक बनाकर जीत की जिम्मेदारी दी है। कांग्रेस में भूपेश बघेल ओबीसी का बड़ा चेहरा है..और बिहार में दलित और ओबीसी सरकार बनाने का मद्दा रखते हैं। लेकिन बीजेपी ने भूपेश की काट के लिए छत्तीसगढ़ के नेताओं को बिहार के चुनावी मैदान में उतार दिया है।दिवाली के बाद छत्तीसगढ़ के नेताओं की टोली को बिहार रवाना किया जा रहा है।
सीएम, मंत्री, सांसद और विधायकों को अलग अलग विधानसभा में चुनावी कार्यक्रम की लिस्ट पहुंचा दी गई है। बीजेपी के संगठन प्रभारी नितिन नबीन खुद बांकीपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। और, क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल को 35 विधानसभा के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई है। जामवाल ने बिहार में डेरा डाल दिया है, और वो चुनाव निपटने के बाद ही रायपुर आएंगे। जामवाल के साथ-साथ सांसद बृजमोहन अग्रवाल, और सरकार के आधा दर्जन मंत्री व संगठन के पदाधिकारियों चुनावी मोर्चे पर तैनात किया गया है। अब देखने वाली बात ये होगी कि बिहार में बघेल के चक्रव्यू का भेदने में बीजेपी का छत्तीसगढ़ मॉडल कितना कामयाब हो पाता है।