
सब इंस्पेक्टरों की किस्मत या काबिलियत…
कहते हैं ” किस्मत महलों में राज करती है और हुनर सड़कों पर तमाशा “.. इस पंक्ति को पुलिस विभाग चरितार्थ कर रहा है। सब इंस्पेक्टरों को बड़े थानो का प्रभार मिलने से विभाग के चाणक्य ही कहने लगे है किस्मत के धनी है साहब..! तो कुछ कह रहे किस्मत नही उप निरीक्षकों की काबिलियत कहो भैया..!
दरअसल जिले की पुलिसिंग को लेकर चौक चौराहों में बहस चल रही है। जनमानस में चर्चाओं का शोर है – “बॉस मेहरबान तो जूनियर भी पहलवान” होता है भाई जी। जो ऊर्जानगरी के पुलिसिंग में दिख रही है। ..कहा तो यह भी जा रहा है कि किस्मत अक्सर अवसर देता है और मौके में जो चौका लगाता है वहीं मैच विनर या यूं कहे असल खिलाड़ी होता है। सो कप्तान ने जब अवसर दिया तो बड़े थानो में थानेदारी का अवसर कैसे गंवा दें। हालिया दौर की थानेदारी को देखते हुए कोरबा के आइडियल एसपी रहे पी. सुंदरराज की कार्यशैली की स्मृति जनमानस को याद आ रही है। उस दौर में ज्यादातर थानो में एसआई थानेदारी कर रहे थे और हर थाना क्षेत्र में क्राइम ग्राफ कम रहा। अब पूर्व कड़क कप्तान की राह पर विभाग में प्रयोग करते हुए थानेदारो को पोस्टिंग तो किया जा रहा लेकिन पाली और उरगा चर्चित थानो की गिनती में है। पोस्ट मीठा है लेकिन सच भी कड़वा है कि इन थानों को सब- इंस्पेक्टरों को सौंपना मतलब “सांप के पूंछ से कान खुजलाने” जैसा है।
ई-ऑफिस..ऊ-ऑफिस
मंत्रालय महानदी भवन में इस वक्त ई-ऑफिस..ऊ-ऑफिस की चर्चा हर टेबल पर हो रही है। पहले खबर आई थी, सरकार पांच दिन के सप्ताह को खत्म कर सेकंड सैटरडे वाला फार्मूला जल्द ला रही है और अब मंत्रालय के बाद विभागीय प्रमुखों के ऑफिसों में भी ई-ऑफिस जुलाई आखिर तक लागू किया जाना है।
यही बात विभागीय अफसरों को खाई जा रही है। असल बात ये है, मंत्रालय में नोटशीट अब ऑनलाइन दौड़ रहीं हैं। सचिवों ने भी विभाग प्रमुखों से हार्ड पेपर में नोटशीट लेना बंद कर दिया है। अब जो भी बात होगी वो ऑनलाइन होगी। पहले सचिवों के निर्देश विभागीय अफसरों के बंद आलमीरा से बाहर नहीं आ पाते थी…अब उसका लटकना या अनदेखी करने वाला पुराना ढर्रा नहीं चलेगा, फाइल चलाने के लिए होने वाली ऊपरी कमाई बंद, इसीलिए अफसर परेशान हो रहे हैं।
इसकी सबसे ज्यादा चर्चा इंद्रावती भवन में हो रही है। जहां, विभाग प्रमुखों की पूरी फौज बैठती है। पहले मंत्रालय से निकलने वाली फाइलें इंद्रावती भवन पहुंचते तक गुम जाती थी या दबा दी जाती थीं। अब ई-ऑफिस में ऐसा नहीं हो पाएगा।
खबरीलाल की माने तो सारी नोटशीट दिल्ली स्थित डीओपीटी के सर्वर में जा रही है और वहीं से इस पर नजर रखी जा रही है। कोई चूक हुई तो ऑनलाइन ट्रांसफर का आदेश आते देर नहीं लगेगी। कुल मिलाकर इंद्रावती भवन के विभागीय अफसर ई-ऑफिस..ऊ-ऑफिस के चक्कर में ठीक से सो नहीं पा रहे हैं। मजूबरी में उनको सुशासन का पाठ पढ़ना पड़ा है सो अलग…।
डीजल – पुलिस… ये रिश्ता क्या कहलाता है..!!
कोयला नगरी में कोयला और डीजल चोरी की चर्चा न हो तो बात बेमानी लगती है। ये बात भी सच है कि डीजल सिर्फ कोयला खदान से चोरी नहीं होता बल्कि पुलिस लाइन से भी डीजल चोरी होता है। डीजल घोटाले के आरोप लगने के बाद एमटीओ यानी मोटर ट्रांसपोर्ट ऑफिसर को हटा दिया गया है।
वैसे तो कोरबा में पुलिस और डीजल का पुराना रिश्ता है। लेकिन यह पहली बार है जब में पुलिस के डीजल वितरण को लेकर संभाग में शोर मचा है।
सूत्रधार के अनुसार कोरबा में कबाड़ से जुगाड़, डीजल का कारोबार चलते ही रहता है, लेकिन लाइन में बैठकर ऐसा पहली बार हुआ है। गड़बड़ी पुष्टि होने के बाद डीजल वितरण का काम अब आरआई यानि रिजर्व इंस्पेक्टर को सौपा गया है।
सूत्रधार की माने तो वितरण इंचार्ज ने बंद पड़ी सरकारी गाड़ियों को डीजल पिलाकर ऐसा खेल खेला की अब यह संभाग के अफसरों के लिए स्टडी मैटर बन गया है। सूत्रों की माने तो डीजल वितरण में जिस तरीके से धांधली हुई है वो दो चार हजार लीटर का नहीं वरन लाखों लीटर का है।
गुरुजी की क्लास..पास या फेल
छत्तीसगढ़ में नवाचार के साथ गुणवत्ता शिक्षा को बढ़ावा देने सरकार होम वर्क में लगी है। नवाचार का असर तो दिखने भी लगा, मगर गुणवत्ता शिक्षा का मामला वहीं लटका हुआ है। प्रदेश में पीएम श्री योजना के अलावा आकांक्षी जिलों में गुणवत्ता शिक्षा के लिए स्कूल भवनों का विस्तार किया जा रहा है। स्कूलों में शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। लेकिन, ये तो आगे की बात है। अगर इस दिशा में आगे बढ़ाना है तो इसकी शुरुआत प्राइमरी शिक्षा से होनी चाहिए।
और, सरकार ने इस ओर शुरुआत कर दी है। पहली बार बोर्ड परीक्षाओं में खराब रिजल्ट पर जिम्मेदारी तय की गईं। और, कमजोर प्रदर्शन करने वाले जिला शिक्षा अधिकारियों को बदल दिया। महासमुंद के बाद जीपीएम के जिला शिक्षा अधिकारी को इसलिए बदल दिया गया कि दसवीं बोर्ड परीक्षा में उनके जिले का रिजल्ट प्रदेश में सबसे खराब रहा।
खबरीलाल की मानें तो आने वाले दिनों में रायपुर, राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान और कोरबा जैसे जिलों में इसे दोहराया जाएगा। कुछ मिलाकर शिक्षा विभाग अभी सीएम के प्रभार वाले विभाग में शामिल है इसलिए रिजल्ट तो देना होगा…। यानि अब डीईओ केवल युक्तियुक्त से शिक्षा विभाग नहीं चला पाएंगे..गुरुजी की भी क्लास लगेगी और उसमें पास होने के लिए युक्ति भी लगानी पड़ेगी।
मेरो तो कबीरधाम दूसरो न कोई..गा रहे टीआई
सुशासन की सरकार में कब कौन दुशासन कर जा रहा ये मंत्रियों को भी समझ नहीं आ रहा। असल में पुलिस विभाग की मीटिंग जब मंत्री ने तेवर दिखाए तो ट्रांसफर टीआई दौड़े दौड़े कबीरधाम के द्वार पहुंच गए।
वाक्या पीएचक्यू से 6 महीने पहले हुए तबादले का है। प्रदेश के होनहार निरीक्षकों को गृह मंत्री के जिला बुलाया गया। तबादला के बाद ट्रांसफर से प्रभावित थानेदारों ने मंत्री ने अनुनय विनय करते हुए शिक्षा सत्र के बाद ज्वाइनिंग की मिन्नतें की। मंत्री जी ठहरे भोले – भाले..! सो उन्होंने निरीक्षकों के प्रार्थना को स्वीकार करते हुए ज्वाइनिंग में ढील दे दी।
थानेदार ठहरे चतुर सुजान, सो उन्होंने तबदला को निरस्त और संशोधन कराने पासा फेंकना शुरू कर दिया। इस खेल में एक महिला निरीक्षक का पासा सही बैठा और वे अपना तबादला सारंगढ़ करा लिया। निरीक्षकों के होशियारी की खबर जब मंत्री जी तक पहुंची तो गृह विभाग के बैठक में सख्त लहजे में कहा कि जिनका ट्रांसफर हुआ है उन्हें तत्काल रिलीव करें और नए पोस्टिंग में ज्वाइनिंग करने का फरमान जारी कर दिया।
मंत्री के फरमान के बाद जिनका तबादला संशोधन नहीं हुआ था उन्हें बिन मौसम बरसात की तहत थाना छोड़कर गृह मंत्री के गृह जिले भागना पड़ा है। अचानक हुए रिलीविंग को लेकर सबके साथ सबकी बात करने वाले थानेदार मैडम ने कौन सा पासा फेंका इसके लिए जांच टीम बनाने में लगे हैं। है ना शानदार पुलिसिंग।