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36 hours burden on IPS officers: एसपी तक पहुंची आंच,DMF का फंड और मधुमक्खी का डंक..कुर्सी छुटा अब बंगला भी छीना,गुबार गुजर गया निशान बाकी…

काले हीरे के खास, एसपी तक पहुंची आंच…

काले हीरे की तलाश और तस्करों के खास रहे एसपी तक ईओडब्ल्यू की जांच पहुंच गई है। ईडी की जांच की आंच की तपिश में ईओडब्लू को सौंपे गए आवेदन में कोरबा के पूर्व एसपी और माटी के लाल का नाम का जिक्र है। एसपी के रडार में आने के बाद उनके सहयोगी जो खाकी के भेष में कैश कोरियर का काम कर रहे थे…उनके भी तोते उड़ गए हैं । खबरीलाल की माने तो ईडी के सौंपे गए पत्र में खाकी के धुरंधर जांबाज भी जांच के घेरे में हैं ।

वैसे तो कोरबा के पूर्व एसपी सौम्य और सरल प्रतिभा के धनी रहे लेकिन, उनकी स्कीम कोयले की खोज ने उन्हें चर्चित और प्रदेश भर में परिचित करा दिया। उनके सिपहसालार रहे पूर्व सायबर सेल प्रभारी 2 स्टार ने भी कोयले से उत्सर्जित काले धन के बल पर शहर के लोगो को खूब धमकाया। अब धीरे धीरे जांच का दायरा बढ़ रहा है तो उनको भी जेल जाने का डर सताने लगा है।

चर्चा तो इस बात की भी है कि कोयला तस्करी करने वाले कुछ चर्चित चेहरे भी देर सबेर कोयले की तपिस में लाल होने वाले हैं । कहा तो यह भी जा रहा कि एसपी के साथ साथ नदी उस पार के थाने में पदस्थ रहे बाजार से हरदी लेने वाले, और कोयले के रकम से दीप जलाने वाले थानेदार के साथ लूटतंत्र में शामिल दर्री सर्किल में पदस्थ पूजनीया बचने के लिए आका की तलाश कर रहे हैं ।

DMF का फंड.. मधुमक्खी का डंक..और मिठास…

डिस्ट्रिक मिनिरल फंड और मधुमक्खी का छत्ता इन दोनों से मिलने वाला भाव एक समान हो गया है.. जिसे शहद मिलता है उसे मीठा लगता है और जिन्हें डंक मारता है उनका मुंह सूज जाता है। डीएमएफ भी पिछले कुछ सालों से ऐसा ही हो गया है जिसको फंड मिला उन्हें मीठा लगा लेकिन ,जिन्हें डंक लगा उनके मुंह सूज गए हैं । सरकार बदलने के लंबे अरसे के बाद डीएमएफ की मीटिंग होने वाली है। मीटिंग की बात आम होते ही जनमानस में कानाफूसी का दौर जारी है -” सरकार बदली तो अब किसकी चलेगी सेटिंग..! ”

वैसे प्रशासनिक चाणक्यों की माने तो इस बार डिस्ट्रिक मिनिरल फंड से इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यों पर ही मुहर लगेगी। अब बात जब निर्माण कार्यो की हो तो सीसी रोड गैंग की की बात चर्चा से कैसे छूट सकती है। जिले में एक ऐसा गैंग है जो सिर्फ और सिर्फ मलाई वाले कार्यो को स्वीकृत कराता है। वैसे तो डीएमएफ फंड से स्वीकृत कार्यों का लेखा जोखा नगण्य है क्योंकि ग्राम पंचायतों में स्वीकृत ज्यादातर निर्माण कार्य कागजो में प्रगतिरत है।

सूत्रों की माने तो कुछ ऐसे भाजपाई भी पंचायत में काम कराने के नाम पर रकम लेकर उड़न छू हो चुके है। 40% रकम लेने के बाद काम न कराने वाले पंचायत प्रतिनिधि पर अफसर तो दबाव बनाते रहे लेकिन काम नही करा पाए । अगर बात अधूरे निर्माण कार्यो की जाए तो कोरबा ब्लाक सबसे अऊवल है। इसके बाद फिर निर्माण कार्यो की स्वीकृति देना और उन्हीं  सरपंचों के कंधे पर निर्माण कार्य की जिम्मेदारी देना। मतलब साफ है खाया पिया और पचाया..!

कुर्सी छुटा अब बंगला भी छीना...

कुर्सी छूटने के बाद अब माननीय का बंगला छीन गया है। दरअसल हुआ यूं कि माननीय को अपनी ही गलती से बंगला छोड़ना पड़ रहा है। खबरीलाल की माने तो जब डी वन बंगला एलाट करने के लिए निगम से फाइल चली और बंगला आबंटन के लिए महापौर निवास की जगह मंत्री निवास के नाम पर चला। महापौर के स्थान पर मंत्रीजी को बंगला आबंटन भी हो गया लेकिन, मंत्रीजी चुनाव हार गए और मंत्री बन गए लखन.. सो बंगला आबंटन भी वर्तमान मंत्रीजी को हो रहा है।

नियम को अपने लाभ के लिए बदला गया था और अब वही नियम गले की फांस बन गया है। कई बार नियति सत्ता के मद में ऐसे काम तात्कालिक लाभ के लिए करवा जाती है जिसका प्रतिफल भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ होता है।

हालांकि पूर्व मंत्री ने बंगला बचाने के लिए उपाय किया, पर वह उपाय भी काम न आया। कहा तो यह भी जा रहा है कि सभापति के नाम पर अलाट क्वार्टर भी जल्द छीनने वाला है। सत्ता का सुख भोग चुके नेताओं को अब भय सताने लगा है कि कहीं उन्हें मिलने वाले कर्मचारियों की फौज भी छीन न जाए।

वैसे कहा भी गया है
नियति भेद नहीं करती,
जो लेती है वो देती है!
जो बोयेगा वो काटेगा,
ये जग करमों की खेती है!!

ips अफसरों पर 48 घंटे भारी

मंत्रालय में आईएएस अफसरों की ट्रांसफर लिस्ट किस्तों में जारी हो चुकी है मगर असल ट्रांसफर लिस्ट जारी होना अभी बाकी है। इसबार आईएएस की जगह आईपीएस अफसर का नंबर लगने वाला है । अगले 48 घंटे ब्यूरोक्रेट पर भारी पड़ने वाले हैं।

दरअसल बात ये है कि लोकसभा चुनाव से पहले अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग की जो मियाद भारत निर्वाचन आयोग ने प्रदेश सरकार को दिए थे वो 31 जनवरी को ख़त्म होने वाली है। ऐसे में मंत्रालय स्तर पर गृह विभाग से जारी होने वाली तबादला सूची कभी भी जारी हो सकती है। खबरीलाल की माने तो ट्रांसफर लिस्ट में प्रदेश के आधे से अधिक जिला के कप्तान बदलने की संभावना है। कहा तो यह भी जा रहा बड़े जिलो की पोस्टिंग के लिए कई दावेदार मंत्रियों के परिक्रमा लगा रहे है। मतलब साफ है बड़े जिला के कप्तानों की कप्तानी टेंशन भरी है।

गुबार गुजर गया निशान बाकी

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में करारी हार से अभी तक उबार नहीं पाई है । सप्ताह भर पहले जब राजीव भवन में पार्टी के प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट लोकसभा चुनाव की तैयारी के नेताओं की बैठक ले रहे तब विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार का गुबार सभी के चेहरे पर देखने को मिला।

पार्टी के बड़े नेताओं को जब लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा गया तो सब ओर बहानेबाज़ी शुरु हो गई । सीएम और डिप्टी सीएम ने सीधे हाथ खड़ा कर दिया, यानि अब पार्टी को टॉप लाइन को छोड़ कर सेकेंड लाइन की लीडरशिप से काम चलाना पड़ेगा।

अगले महीने राहुल गांधी की न्याय यात्रा छत्तीसगढ़ से होकर गुजरेगी, और राहुल की न्याय यात्रा में भीड़ जुटाना भी कांग्रेस को परेशान कर रही है। हालांकि पार्टी ने इसके लिए प्रदेश स्तरीय समिति का गठन किया है। जिसमें भीड़ जुटाने की जिम्मा सेकेंड लाइन की लीडरशिप को दिया गया है। पार्टी राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा भी रायपुर में डटी हुई हैं । लेकिन चुनाव में मिली करारी हार से पार्टी कितना उबार पाई है ये देखने वाली बात होगी ।

          ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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