
कोरबा। नगर निगम के अफसरों की दिनचर्या अब साधु-संतों जैसी हो गई है। न माया मिल रही, न राम। कभी नगर सरकार की चरण वंदना करने वाले ये अफसर अब ऐसी दुविधा में हैं कि मुस्कुराकर भी रो रहे हैं। शहर सरकार में माया न राम, सब भाजपाई ठेकेदारों के नाम की तर्ज पर काम चल रहा है।
असल में जब से सत्ता बदली तो काम का तरीका भी बदल गया। महीनों से टेंडर दबाकर बैठने वाले इंजीनियरों को आयुक्त ने नोटिस थमा दिया। अब हालत यह है कि अफसरों के सामने दो ही रास्ते हैं”एक तरफ कुआँ, दूसरी तरफ खाई..कुल मिलाकर आफत में जान वाली सिचुएशन बन गई है। अफसर इस सोच में दुबले हुए जा रहे हैं कि खुश किसे करें बॉस या “बॉस ऑफ बॉस”?
खबर है कि एक ठेकेदार-नुमा नेता ऐसा दबाव बना रहा है कि 16 में से 14 टेंडर रिजेक्ट कर दिए जाएं। मगर अफसर नियमों का पाठ पढ़ा रहे हैं, मगर दबाव की लाठी के सामने नियम बेअसर हो रहे हैं। निगम के “मनी-मैनेजमेंट सिस्टम” पर अब तो भाजपा के अपने नेता भी दबी जुबान में कहने लगे हैं…इससे अच्छा तो पिछली सरकार थी।