
कोरबा। खाद वितरण में की गई अनियमितताओं पर अब बड़ी कार्रवाई तय हो गई है। आदिम जाति सेवा सहकारी समिति केंद्र मोरगा (वि.खं. पोड़ी उपरोड़ा) के प्रबंधक महेन्द्र शर्मा पर एफआईआर दर्ज कराने और उन्हें सेवा से बर्खास्त करने के निर्देश कलेक्टर अजीत वसंत ने जारी किए हैं। इसके साथ ही गबन की गई राशि की वसूली करने के भी आदेश दिए गए हैं।
कलेक्टर ने जांच रिपोर्ट के आधार पर दिए निर्देश
ग्रामवासियों और जनप्रतिनिधियों की शिकायत पर खरीफ वर्ष 2025-26 में खाद वितरण में गड़बड़ी की जांच कराई गई थी।
अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) पोड़ी उपरोड़ा की देखरेख में गठित चार सदस्यीय जांच दल ने आरोपों को सही पाया।
जांच दल में नायब तहसीलदार सुमनदास मानिकपुरी, वरिष्ठ ग्रामीण कृषि विकास अधिकारी अखिलेश देवांगन, राजस्व निरीक्षक रंजीत भगत और कृषि विस्तार अधिकारी राकेश यादव शामिल थे।
रिकॉर्ड में मिली बड़ी अनियमितता
जांच में पाया गया कि 1 अप्रैल से 1 सितंबर 2025 तक समिति को कुल 09 ट्रक खाद (उर्वरक) प्राप्त हुए, जिसमें यूरिया, डीएपी, सुपर फॉस्फेट, एनपीके, पोटाश, नैनो यूरिया और नैनो डीएपी शामिल थे।
लेकिन वितरण पंजी और पीओएस रिकॉर्ड में भारी अंतर मिला।
यूरिया – 164 बोरी
डीएपी – 44 बोरी
एनपीके – 79 बोरी
पोटाश – 8 बोरी का अंतर पाया गया।
यह अंतर घोर अनियमितता की श्रेणी में पाया गया है, जो उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 की धारा 35 और आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की धारा 3 व 7 का उल्लंघन है।
फर्जी हस्ताक्षर से उठाई गई खाद
जांच में यह भी सामने आया कि जिन दो किसानों की मृत्यु हो चुकी थी, उनके नाम पर फर्जी हस्ताक्षर कर खाद का उठाव किया गया।
प्रबंधक महेन्द्र शर्मा ने स्वयं स्वीकार किया कि खाद की एंट्री और स्टॉक अपडेट का पूरा कार्य स्वयं ही किया गया। उन्होंने स्टॉक रजिस्टर का सही संधारण भी नहीं किया था।
-कलेक्टर के निर्देश: एफआईआर, बर्खास्तगी और वसूली
कलेक्टर अजीत वसंत ने जांच प्रतिवेदन के आधार पर निर्देश दिए हैं कि समिति प्रबंधक महेन्द्र शर्मा के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जाए।उन्हें सेवा से पृथक किया जाए और गबन की गई राशि की वसूली की जाए।
प्रशासन ने माना है कि यह मामला सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की धारा 74 (झ), (ट), (ठ) के उपबंधों का उल्लंघन भी है।
ग्रामीणों में नाराजगी
मोरगा और आसपास के ग्रामीणों ने इस कार्रवाई का स्वागत करते हुए कहा है कि खाद वितरण में पारदर्शिता और किसानों के हितों की रक्षा के लिए ऐसी सख्त कार्यवाही जरूरी थी।