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Supreme Court’s instructions on misleading advertising: प्रोडक्ट का विज्ञापन करने वालों को जिम्मेदारी लेना पड़ेगा; प्रिंट-TV एड के लिए नई गाइड लाइन

नई दिल्ली। Supreme Court’s instructions on misleading advertising: देश में बढ़ते भ्रामक विज्ञापन (miss leading ad) को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी प्रोडक्ट के परिणाम की जानकारी के बिना उसका समर्थन (प्रचार) करना घातक है।

Supreme Court’s instructions on misleading advertising: इसके लिए सोशल मीडिया इन्फ्लूएंर्स, सेलिब्रिटीज और मशहूर हस्तियों को प्रोडक्ट की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने मंगलवार (7 मई) को उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से खासतौर पर फूड सेक्टर में भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ की गई कार्रवाई ब्यौरा दाखिल करने का निर्देश दिया।

 

Supreme Court’s instructions on misleading advertising: प्रोडक्ट का एड करने वालों को जिम्मेदारी लेना पड़ेगा

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा- “मशहूर हस्तियों, इंन्फ्लूएंर्स और अन्य नामी हस्तियों के द्वारा प्रोडक्ट का व्यापक असर होता है। उनके लिए किसी विज्ञापन का समर्थन करने और उसकी जिम्मेदारी लेने जरूरी है। जो व्यक्ति किसी प्रोडक्ट का प्रचार करता है, उसे उसकी पूरी जानकारी होना चाहिए।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश योग गुरु बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों के खिलाफ एक मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें पतंजलि ने अपनी दवाओं और प्रोडक्ट के जरिए मधुमेह (डायबिटीज) जैसी बीमारियों का इलाज करने का दावा किया था।

Supreme Court’s instructions on misleading advertising: भ्रामक विज्ञापनों के लिए प्रचार करने वाले भी जिम्मेदार

शीर्ष अदालत की बेंच ने आगे कहा कि हमारा मानना ​​है कि भ्रामक विज्ञापनों के लिए विज्ञापनदाता और इसका प्रचार करने वाले समान रूप से जिम्मेदार हैं। विज्ञापनदाता को केबल टेलीविजन रूल, 1994 की तर्ज पर स्व-घोषणा देनी चाहिए और उसके बाद ही विज्ञापन प्रसारित करना चाहिए। विज्ञापनों के संदर्भ में वैधानिक प्रावधान उपभोक्ताओं के हितों के लिए हैं, ताकि वे इन प्रोडक्ट्स (खासतौर पर फूड प्रोडक्ट) के बारे में जागरूक हों, जिन्हें वे खरीद रहे हैं।

Supreme Court’s instructions on misleading advertising: प्रिंट एवं टेलीकास्ट विज्ञापनों के लिए नई व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि किसी विज्ञापन को प्रसारित करने की इजाजत देने से पहले विज्ञापनदाता को केबल टेलीविजन नियम 1994 के अनुसार स्व-घोषणा पत्र दाखिल करना होगा। उसके बाद ही चैनलों पर प्रोडक्ट के विज्ञापन प्रसारित चलाए जाएंगे। यह घोषणाएं सरकार के प्रसारण सेवा पोर्टल पर अपलोड होंगी। अदालत ने केंद्र सरकार को प्रिंट मीडिया के लिए भी ऐसा ही एक पोर्टल तैयार करने का निर्देश दिया है।

Supreme Court’s instructions on misleading advertising: उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय डेटा पेश करेगा

अदालत ने उपभोक्ता मामलों के खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय से कहा है कि वह खाद्य और स्वास्थ्य क्षेत्र में झूठे या भ्रामक विज्ञापनों पर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) द्वारा की गई कार्रवाई को लेकर नया हलफनामा दाखिल करें। दूसरा हलफनामा FSSAI दाखिल करेगी।

Supreme Court’s instructions on misleading advertising: इसके साथ शीर्ष अदालत ने पतंजलि को उन भ्रामक विज्ञापनों को हटाने का सख्त निर्देश दिया, जो फिलहाल ऑनलाइन दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा कंपनी के जिन उत्पादों पर प्रतिबंध लागू है, वे भी कुछ दुकानों में उपलब्ध हैं। पतंजलि की ओर से पेश वकील बलबीर सिंह ने उन्हें हटाने की योजना बताई।

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