कटाक्ष

Officers and MLAs: फ्लायर और फ्लाई ऐश..दाल में नहीं जनाब…चावल में भी काला…..राजा की गिरफ्तारी से मिली राहत…जाम से अफसरों के बनते काम

ऊर्जा…बिजली, अफसर और विधायक

कोरबा प्रदेश की ऊर्जाधानी है। यहीं से पूरे प्रदेश में ऊर्जा सप्लाई हो रही है। यहां ​की माटी ही ऊर्जा से भरपूर है। तभी तो कोयला कारोबारी, नेता, अफसर यहां से डबल चार्ज होते रहे हैं। कोरबा की ऊर्जा जब दिल्ली तक पहुंची तो उसका झटका ईडी को लगा ….उसके बाद की कहानी आपको पता ही होगी। ईडी की जांच के बाद अभी भी कई अफसरों और नेताओं को रुक.रुककर झटके आ रहे हैं। ये सब कोरबा की माटी का ही कमाल है।

कोरबा की माटी में पले बढ़े स्थानीय विधायक और मंत्री जयसिंह अग्रवाल भी ऊर्जावान हैं। इससे पहले भी उन्होंने जिले की पूर्व आईएएस अफसर को इतनी जोर से झटका दिया कि वो कोरबा से रायगढ़ जा पहुंची।

विधायक जयसिंह अग्रवाल अब फिर चार्ज हो गए हैं। यानि अबकी बार उन अफसरों को झटका लगाने वाला है जो कोरबा के विकास करने की बजाए अपनी मनमानी चला रहे हैं। अब टीपी नगर की ही बात कर लें।

सरकार ने जमीन अलाट कर दी और अफसरों ने मनमानी कर मास्टर प्लान बदल किया। ये बात विधायक को हजम नहीं हुई। विधायक के तेवर बता रहे हैं कि अगर अफसर मनमानी करने से बाज नहीं आए तो अगला झटका उन्हें ही लगने वाला है।

 

फ्लाई फ्लायर और फ्लाई ऐश..

बचपन मे अंग्रेजी के तीन शब्द सभी ने पढ़ा होगा। शुरुआत जिस तरह से गो वेंट गॉन से होती थी उसी तरह शहर में राखड़ का जुमला भी फ्लाई फ्लावर और फ्लाई ऐश से शुरू हो गया है। फ्लाई का मतलब उड़ना और फ्लायर यानि उड़ाने वाला और फ्लाई ऐश का अर्थ बताने की किसी को जरुरत नहीं है।

शहर में राखड़ से किस तरह समस्या हो रही है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। कहने का मतलब है कि उड़ क्या रहा है कौन उड़ा रहा है, और कौन मजे ले रहा है और परेशान कौन है, यह भी बताने की जरूरत नहीं।

हैरानी और परेशानी की बात यह है कि जिस सतरेंगा को ग्रीन लैंड बनाने का सपना स्वंय राज्य सरकार ने देखा है। वह अस्थाई ऐश डेंम के रूप में चिन्हांकित किया जा चुका है। उससे भी चौकाने वाली बात यह है कि जिस औद्योगिक प्रतिष्ठान ने अपने फ्लाई ऐश को सतरेंगा के आसपास डंप करने जिस ट्रांसपोर्टर को जिम्मेदारी दी है ,वही उसके आंखों में राखड़ की धूल झोंककर सतरेंगा से पहले जामबहार, सोनपुरी,सोनगुढ़ा जैसे प्रकृति के गोद मे बसे गांव के सड़क किनारे की खाली जमीन पर राख फेंक कर ग्रामीणों की जिंदगी में जहर घोल रहा है।

हां ये बात अलग है कि राख फेंकने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठान को इससे कोई मतबल नहीं की राख कहां पर फेका जा रहा है। वह इस जुमले पर अडिग है कि अपना काम बनता तो भाड़ में जाए…! कुल मिलाकर राख के मामले में सभी अपनी अपनी बनौती बनाने पर तुले है। औद्योगिक प्रतिष्ठान और ठेकेदार मस्त है और प्रभावित जनता त्रस्त है।

राजा की गिरफ्तारी से मिली राहत…

 

पॉवर प्लांट से स्क्रेब चोरी करने वाले राजा खान की पुलिस कस्टडी से फरारी के बाद खाकी के दामन पर कई तरह के सवाल उठ रहे थे। आखिरकार कप्तान के मार्गदर्शन और सायबर सेल प्रभारी की सूझबूझ से चौकी से फरार राजा की गिरफ्तारी कर ली गई। राजा की गिरफ्तारी से पुलिस विभाग को चैन की सांस मिली है।

हां ये बात अलग है कि बरमपुर से अवैध रेत निकासी को लेकर खाकी की छवि पर अब भी दाग हैं। वैसे साइबर सेल के प्रभार बदलते ही पुलिस महकमे में नवाचार की उम्मीद है। जिससे साइबर सेल के सही उद्देश्य पर काम किया जा सके, सो नए प्रभारी टीम में काम करने वाले मातहतों को विजन के साथ काम करने का रीजन भी सीखा रहे हैं।

खबरीलाल की माने तो साइबर टीम में भी फेरबदल कर मिलनसार और शार्प माइंड के खाकी के जांबाज़ जवानों की तलाश हो रही है, जो कप्तान की मंशा के अनुरूप काम करते हुए खाकी की छवि सुधार सके।

दाल में नहीं जनाब…चावल में भी काला…..

 

समय होत बलवान यानि समय ही सबसे बलवान होता है। अभी तक तो यहीं सुना और पढ़ा था कि दाल मेें कुछ काला है मगर, अब तो चावल भी काला पीला होेने लगा है।

सरकारी राशन दुकानों में चावल की कालाबाजारी की खबर पर जब केंद्र ने हिसाब किताब मांगा तो फुड अफसरों के दम फूलने लगे। मुंगेली के एक एफओ को हिसाब किताब में गड़बड़ी करने पर सस्पेंड तक होना पड़ा। इस काले पीले कारोबार में शामिल 50 से ज्यादा फुड इंस्पेक्टर और अफसर पर भी जल्द गाज गिरने वाली है।

खबरीलाल की माने तो सरकारी चावल में काला पीला करने की ईओडब्लू ने जांच शुरु कर दी है। इनमें कोरबा जिला भी शामिल है। जहां सरकारी चावल में जमकर काला पीला करने वाले कुछ नेता और सफेदपोश लाल हो गए हैं।

दरअसल कोरोना काल में हर महीने गरीबों को दिए जाने वाले 15 किलो फ्री चावल का​ हिसाब किताब केंद्र ने मांगा है। अब इसका ठिकरा किन पर फूटने वाला है, जल्दी ही साफ हो जाएगा।

अब जाम से अफसरों के बनते काम

 

वैसे तो जाम से हर काम हो जाता है पर जिले में जाम छलकाउ चखना दुकानों से ऊपरी कमाई कर अपना काम बना रहे है। जी हां पाली ब्लाक के चखना दुकानों से महीने में आधा पेटी कलेक्शन चर्चा में रहा। हालांकि हो हल्ला को देखते हुए वसूली को बंद करने की बात कही जा रही है।

मतलब शराब माफिया भले ही कागजों में समाप्त हो चुके हैं पर आबकारी विभाग की मलाई में कमी नहीं आई है। तरीका बदल गया है पर लगातार काली कमाई का सिलसिला जारी है। चर्चा तो इस बात की भी है कि जहां से आबकारी के अधिकारी अपना ऊपरी का जुगाड़ बनाते हैं वहां खाकी का खौफ तो चलता ही है।

सो थाना वाले भी चखना और अवैध कारोबारियों से बंधा बंधाया हिसाब निकाल लेते हैं। जब जाम छलकते हैं तो सारी सच्चाई हलक से बाहर आने लगती है। यह तो रही सीधी मलाई।  वहीं माहवारी अलग से बंधा हुआ है। गांजा बेचने वालों से हर क्षेत्र में उगाही चल रही है।

पिछले तीन साल का रिकार्ड देख लिया जाए तो कार्रवाई शायद ही हुई होगी। घर पहुँच सेवा मलाई वसूलने में नगर सैनिकों की भूमिका भी कम नहीं है। हालांकि उन्हें छांछ नसीब होती है। मलाई तो अधिकारी डकार जाते हैं। शहर में दादर, चेकपोस्ट सहित कई स्थानों पर ड्रग्स से बंधी-बधाई रकम वसूली जा रही है।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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