कोरबा

New twist : गबन का जिम्मेदार कौन…? जांच पर उठे सवाल…पाण्डे को बरी, पटेल बना बलि का बकरा!

कोरबा/सक्ती, 12 जुलाई। New twist : जिले की सेवा सहकारी समिति अमलडीहा में सामने आए 40 लाख रुपए के गबन मामले में नया मोड़ आ गया है। जहां एक ओर लोगों की नजरें घोटाले की परतें खोलने की उम्मीद लगाए बैठी थीं, वहीं अब जांच पर ही सवाल उठने लगे हैं।

लोकोक्ति जिसकी लाठी उसकी भैंस इस पूरे घटनाक्रम पर सटीक बैठती है। जांच रिपोर्ट में तत्कालीन शाखा प्रबंधक अश्वनी कुमार पाण्डे को बरी कर दिया गया है, जबकि समिति प्रबंधक मनोज कुमार पटेल को दोषी ठहराते हुए उन पर कार्रवाई की तलवार लटका दी गई है।

क्या है मामला?

सेवा सहकारी समिति अमलडीहा के प्रबंधक मनोज कुमार पटेल और जिला सहकारी बैंक डभरा के तत्कालीन शाखा प्रबंधक अश्वनी कुमार पाण्डे पर लगभग ₹40 लाख के गबन का आरोप है। सक्ती कलेक्टर के निर्देश पर जांच शुरू की गई थी। जांच पूरी होने के बाद आई रिपोर्ट में पटेल को दोषी करार दिया गया, जबकि पाण्डे को क्लीन चिट मिल गई।

जांच पर उठे सवाल

स्थानीय लोगों और सहकारी क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जांच एकतरफा रही है। रिपोर्ट में पाण्डे के बयान को ही सबूत मानते हुए उन्हें दोषमुक्त कर दिया गया, जबकि पटेल पर सहयोग न करने का आरोप लगाकर पूरी जिम्मेदारी थोप दी गई।

सूत्रों का कहना है कि जांच टीम ने पाण्डे से गहन पूछताछ नहीं की और उनके द्वारा पेश दस्तावेजों की स्वतंत्र पुष्टि भी नहीं की गई। वहीं, मनोज पटेल को अपने पक्ष में पर्याप्त अवसर नहीं मिला।

कौन है असली दोषी?

जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि पाण्डे के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले, लेकिन पटेल की भूमिका संदेहास्पद है। इस आधार पर पटेल को दोषी ठहराया गया है। इस पर सवाल यह उठता है कि जब लेन-देन की प्रक्रिया में बैंक शाखा प्रमुख की सक्रिय भूमिका होती है, तो उनके बिना ऐसा बड़ा गबन कैसे संभव हुआ?

जनता में आक्रोश

मामले को लेकर स्थानीय लोगों में भारी नाराजगी है। लोग जांच प्रक्रिया को एकपक्षीय और पक्षपातपूर्ण मान रहे हैं। उनका कहना है कि असली दोषियों को बचाकर बलि का बकरा तलाशा जा रहा है।

आगे की कार्रवाई

जिला प्रशासन ने अब रिपोर्ट के आधार पर संबंधित विभागों को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं। इस बीच, मांग उठ रही है कि पूरे मामले की उच्च स्तरीय और स्वतंत्र जांच कराई जाए, ताकि असली गुनहगार सामने आए और न्याय हो सके।

सवाल अब यह है, क्या जांच टीम ने सच्चाई दबा दी या फिर सच को ही दोषी बना दिया?

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