Messing with Faith : बिलासपुर के कई इलाकों में सड़क किनारे गोबर के पास बन रहे बताशे…मक्खियों का जमावड़ा

बिलासपुर, 20 अक्टूबर। Messing with Faith : दीपावली जैसे पावन पर्व पर जहां घर-घर में मां लक्ष्मी का पूजन होता है, वहीं पूजन में चढ़ाए जाने वाले खील-बताशे की शुद्धता और सफाई पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, पड़ताल में खुलासा हुआ है कि बिलासपुर के कई इलाकों में बताशों का निर्माण बेहद गंदे और unhygienic हालातों में किया जा रहा है।
चप्पल पहनकर बन रहा है प्रसाद
शहर के शनिचरी बाजार, गोलबाजार और अन्य इलाकों में जिन जगहों पर बताशे बनाए जा रहे हैं, वहां न तो कोई उचित साफ-सफाई है और न ही ढककर रखने की व्यवस्था। मजदूर उसी गंदगी भरी जगह पर चप्पल पहनकर चाशनी गिराते हुए नजर आए। जिस टिन की शीट पर बताशे की टिक्की तैयार हो रही है, उस पर चाशनी के साथ-साथ मिट्टी और धूल भी जम चुकी है।
मक्खियों का जमावड़ा
जिन जगहों पर बताशे बनाए जा रहे हैं, वहां शक्कर की मिठास के कारण मक्खियों की भरमार देखी गई। मक्खियां पहले गोबर पर बैठती हैं और फिर वहीं से उड़कर चाशनी और बताशों पर बैठ रही हैं। इससे न केवल प्रसाद की शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा उत्पन्न होता है।
सड़क किनारे गंदगी के बीच हो रहा निर्माण
कई स्थानों पर तो घरों के बाहर सड़क किनारे ही बताशे बनाए जा रहे हैं। वहीं सड़क पर गोबर और अन्य गंदगी फैली हुई है। ऐसे में वहां बैठकर बताशे बनाना न केवल परंपरा के साथ मजाक है, बल्कि लोगों की श्रद्धा के साथ भी खिलवाड़ है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि दीपावली पर खील-बताशे का विशेष महत्व होता है। खील जहां चावल से बनी लक्ष्मीप्रिय धान्य सामग्री है, वहीं बताशे प्रेम और सुख का प्रतीक माने जाते हैं। इन्हें देवी लक्ष्मी को भोग लगाकर सुख, समृद्धि और वैभव की कामना की जाती है। लेकिन जिस प्रकार से इनका निर्माण हो रहा है, उसे देख श्रद्धालु भी अब इन्हें प्रसाद के रूप में चढ़ाने से कतराने लगे हैं।
कार्रवाई की मांग
शहरवासियों का कहना है कि इस पावन पर्व पर जो सामग्री देवी को अर्पित की जाती है, वह शुद्ध और साफ-सुथरी होनी चाहिए। प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे निर्माण स्थलों का निरीक्षण करे और अनहाइजेनिक खाद्य सामग्री पर रोक लगाए।
खील-बताशा सिर्फ परंपरा नहीं, श्रद्धा का प्रतीक है। लेकिन जिस तरह बिलासपुर में इसे गंदगी में तैयार किया जा रहा है, वह न केवल त्योहार की पवित्रता को आहत करता है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी घातक है। जरूरत है जागरूकता और सख्त प्रशासनिक कार्रवाई की।