हाई सिक्योरिटी में सेटिंग से काले हीरे की लूट
कहने को तो कोल माइंस की सिक्योरिटी इतनी टाइट है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसके बाद भी डीजल और कोयला चोर लोडर में बैठकर खुलेआम खदान में शोर मचा रहे हैं। सूत्रों की माने कोल माफिया प्रबंधन के नुमाइंदों को सेट कर काले हीरे की तस्करी कर रहे हैं। कहने को तो सूबे में सरकार बदलने के बाद कोयला और डीजल चोरी बंद हो चुकी है। मगर, जिस अंदाज में बीते शुक्रवार लोडर में बैठकर पार्षद और गोली कांड के आरोपी खदान के भीतर घुसे उससे जाहिर लूट का तरीका बदला है लूट नहीं।
कोयला खदान में चल रही लूट पर वर्षो पुरानी आई फिल्म ” अमर प्रेम” का गाना “चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए , सावन जब आग लगाए तो उसे कौन बुझाए !! सटीक बैठता है। क्योकि, इसी तर्ज पर कोयला खदान की सुरक्षा व्यवस्था भी नजर आ रही है जहां सुरक्षा के सिपहसालार चोरो के यार बन रहे हैं।
जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो भला उस संपत्ति की सुरक्षा की कल्पना कैसे की जा सकती है? कहा तो यह भी जा रहा है कि कोयला खदान तो है ही “माल.ए.मुफ्त दिल.ए. बेरहम” जो कोई भी आ रहा है लूट कर जा रहा है और लूटे भी क्यों न क्योंकि नेता, अफसरों के लिए खदान अब खुला खजाना बन गया है।
अधिकारियों की संपत्ति बन रही हो तो तो फिर भला उन्हें कोयले की दलाली में कैसी आपत्ति !! सुरक्षा गार्ड ठहरे कठपुतली, जैसे प्रबंधन का आदेश वैसे ही उनके बंदूक का मूवमेंट। बहरहाल हाई सिक्योरिटी के बाद भी कोयले की लूट जारी है और सब एक दूसरे पर दोषारोपण कर अपने कर्तव्यों से बचने का प्रयास कर रहे है। तभी कहावत है चोर चोर मौसेरे भाई …. !
चमक रहा पुलिसिया डंडा
साल 2018 विधानसभा चुनाव के पहले जारी हुए रमन का चश्मा सुपरहिट हुआ था। इस में चुनाव पुलिस का डंडा हिट हो रहा है, बात ही कुछ ऐसी है कि आचार संहिता लगते ही पुलिस की कार्रवाई का डंडा जमकर चमक रहा है, कहा तो यह भी जा रहा है शहर के पॉवरफुल नेताओं के इशारे पर पुलिस पॉलिश मारकर डंडे की पॉलिसी चला रही है।
वैसे भी आचार संहिता लगने के बाद पुलिस अपनी असल स्वरूप में प्रकट होकर वीटो पॉवर का इस्तेमाल करती है। ये रेड लाइन की वीटो पॉवर वही है जिससे पुलिस चुनाव में लॉ एंड ऑर्डर के लिए गुंडे बदमाशों के अलावा वाइलेंस क्रिएट करने वालों पर चलाती है। सूत्रों की माने तो कुछ स्थानीय लोगों की कुंडली को डेड करने के लिए रेड लाइन चलाने तैयारी की जा चुकी है।
कहा तो यह भी जा रहा है कि चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से कराने पुलिस को रेड लाइन का डंडा तो हांकना ही पड़ता है। सो पुलिस का रेड लाइन कितने अपराधियों पर चलता है यह देखने वाली बात होगी। वैसे तो पुलिस चुनावी मोड में आ चुकी है। वाहनों की चेकिंग के साथ साथ बंटने वाले वाइन और नोट पर भी तीसरी आंख की नजर है। हालांकि चुनाव लड़ने वाले नेता सामग्री बांटने में पुलिस की सोच से एक कदम आगे हैं। साफ है मतदाताओं को प्रलोभन देकर वोट खरीदने की आस पर खटास लाने पुलिसिया डंडा चकमकना तय है।
जयचंदों की फौज मौज में…
“युद्धों में कभी नहीं हारे , हम डरते हैं छल-छंदों से , हर बार पराजय पायी है ,अपने घर के जयचंदों से….! कवि कुमार विश्वास की कविता की ये पंक्तियां आसन्न लोकसभा चुनाव में सटीक बैठती है। क्योंकि लोकसभा चुनाव में ऐसे जयचंदो के भरोसे सत्तारूढ़ दल और विपक्षी नेता चुनाव में अपना भविष्य खोज रहे हैं जो पार्टी नेतृत्व से रुष्ठ हो और घात के अवसर तलाश कर रहा हो।
इस चुनाव में पार्टी के जयचंदों की भूमिका अहम हो गई है। एक तरफ 10 साल से एक चेहरा और बाकी प्यादे- मोहरे वाली बात पार्टी के अंदरखाने में खलबली मचा रही है तो दूसरी तरफ भाजपा के वे नेता टिकट वितरण से अंदर ही अंदर टूट चुके हैं जो मैं नहीं तो कौन… कहते हुए जयचंद की भूमिका निभाने तैयार हैं।
मतलब साफ है पार्टी के जयचंदों से ही हार और जीत तय होगी। कहा तो यह भी जा रहा है सत्ता पक्ष के नेता संगठन के फरमान के बाद प्रचार में निकले हैं, लेकिन मन कहीं और लगा बैठे हैं। मतलब पार्टी के नेता अपनी ढफली अपना राग अलाप रहे है। हालांकि अभी चुनाव में समय है लेकिन, उतना भी समय नहीं है कि रूठे नेताओं को मना कर हाथ मिलाया जा सके। खैर लोकसभा चुनाव का नतीजा जो भी आए पर जयचंदों की फौज की हर तरह से मौज है..!
नवरात्रि में महादेव अवतार
छत्तीसगढ़ में इसी सप्ताह 19 अप्रैल को पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। चुनावी पंडाल में नेताओं की भीड़ जुट रही है तो मंदिरों में नवरात्रि में माता के दर्शन करने वाले भक्तों का तांता। सभी अपने अपने हिस्से का आर्शीवाद बटोरने में लगे हैं। शोर दोनों जगह दिख रहा है। मगर मंदिरों में गूंज रहे देवी जसगीत और नेताओं के मंच पर चल रहे चुनावी राग में बड़ा फर्क।
ये सही है कि देवी सत्ती की उपासना महादेव की भक्ति के बिना पूरी नहीं होती। लिहाजा चुनाव से पहले महादेव नया अवतार में सामने आए हैं। खैरागढ़ में गृहमंत्री अमित शाह अपनी चुनावी सभा में जोरशोर से महादेव की महिमा गाकर चले गए। उन्होंने पूर्व सीएम भूपेश बघेल पर महादेव के नाम पर घोटाला करने का आरोप लगाया और मोदी की गांरटी बताना भी नहीं भूल। इससे पहले मां बमलेश्वरी, मां दंतेश्वरी, मां महामाया और मां चंद्रहासिनी को प्रणाम किया। और भक्तों के मन में महादेव की भक्ति जगाकर चले गए।
महादेव का नाम आते ही कांग्रेस के भूपेश बघेल ने भी महादेव को लेकर सवाल दागना शुरु कर दिया। उनका कहना है कि अमित शाह राज्य की भाजपा सरकार के कारनामों को छिपाकर बड़े बड़े झूठ बोलकर चले गए। उन्होंने महादेव ऐप के बारे में तो ढेर सारी बातें कीं लेकिन यह नहीं बताया कि, अब जबकि डबल इंजन की सरकार है तो महादेव ऐप क्यों चल रहा है?.. उन्हें बताना चाहिए कि भाजपा ने महादेव ऐप को चालू रखने के लिए चलाने वालों से कितना चुनावी चंदा लिया है?
कुल मिलाकर नेताओं के झगड़ में अब महादेव भी चुनावी चंदा बटोरने का जरिया बन गए हैं। फिलहाल नवरात्रि पर महादेव के इस नए अवतार से प्रदेश का सियासी पारा गरमा गया है। हर हर महादेव….।
हाथी कैसे बनेंगे साथी
वन संपदा से भरपूर छत्तीसगढ़ के जंगलों में मानव हाथी द्वंद जानलेवा होता जा रहा है। इन जंगलों के अंदर मानव आबादी वाले गांवों में जंगली हाथियों के हमले से रोज लोगों की जान जा रही है। वन विभाग मुनादी और मुआवजा प्रकरण बनाने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहा है। ऐसे में हाथी मानव के साथी कैसे बन पाएंगे?
पिछले सप्ताह दो लोगों की जान गई, 4 लोग घायल हुए। रायगढ़ के झिंगोल गांव में एक जंगली हाथी महुआ बिनने जा रहे ग्रामीणों पर हमला कर दिया। इस घटना में कलावती नाम की एक महिला की मौके पर ही मौत हो गई और 1 पुरुष गंभीर रूप से घायल हो गया।
जशपुर में जंगली हाथियों के झुंड को देखकर एक गर्भवती महिला की वहां से जान बचा कर भागते समय मौत हो गई। अंबिकापुर के उदयपुर थाना क्षेत्र के फत्तेहपुर में महुआ बिनने जंगल गई महिलाओं पर दंतेल हाथी हमला कर दिया। किसी तरह महिलाओं ने भाग कर अपनी जान बचाई। ऐसी घटनाएं रोज हो रही हैं।
जबकि असम, बंगाल और दक्षिण के राज्यों में मानव हाथी के सहअस्तित्व का क्रियान्वयन वैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए नवाचार हो रहे हैं। मगर छत्तीसगढ़ में इस तरह की कोई पहल नहीं हो रही है।
कुछ समय पहले हाथी की बसाहट वाले राज्यों से कुमकी हाथी लाकर हाथियों को उनके सुरक्षित मार्ग में धकेलने की पहल जरूर हुई थी। जंगलों में विचरण करने वाले दलों की पहचान कर उसके मुखिया पर टेलीकॉलर लगाने की बात सामने आई थी। ताकि हाथियों के मूवमेंट पता कर लोगों को अगाह किया जा सके। मगर, अब वो भी बंद है।
वन विभाग को चाहिए कि वो असम बंगाल और दक्षिण के राज्यों की तरह इस समस्या से निपटने के लिए नवाचार को अपनाए और इन बसाहट में रहने वाले लोगों को जागरुक करने ठोस अभियान चलाए ताकि दीगर राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी मानव और हाथी, एक दूसरे के साथी बन कर सुरक्षित रह सकें।