लखनऊ: यूपी में इस बार जनता ‘सिलेक्शन’ नहीं इलेक्शन के मूड में थी इसलिए जिन सीटों को अजेय दुर्ग समझ जाता था, वहां की दीवारों में भी इस बार खतरे की दरारें पड़ती नजर आईं। पिछले चुनाव में जिन सीटों पर जीत का अंतर 2 से 3 लाख तक था, वहां इस बार फैसला महज कुछ हजार वोटों में सिमट गया। लड़ाई इतनी नजदीकी रही कि 50% वोटों का बैरियर पार करने में उम्मीदवारों को पसीने छूट गए। पिछले चुनाव के मुकाबले एक-तिहाई उम्मीदवार भी अपनी सीट पर आधा वोट हासिल नहीं कर सके।
यूपी में 2019 और 2024 दोनों ही लोकसभा चुनाव बाई पोलर रहे। पिछली बार समाजवादी पार्टी-बसपा गठबंधन बनाम भारतीय जनता पार्टी गठबंधन था और कांग्रेस जमीन पर कहीं दिखाई नहीं दी थी। इस बार चुनाव सपा-कांग्रेस बनाम भाजपा गठबंधन रहा और बसपा जमीन पर असर नहीं डाल पाई। उसके वोट काफी हद तक विपक्ष व कुछ हद तक सत्तापक्ष की ओर ट्रांसफर होते नजर आए। इसका असर यह रहा कि हर सीट पर एक-एक वोट समेटने की लड़ाई की नौबत आ गई। इसलिए जीत का अंतर भी घटता नजर आया।