
कोरबा। देश की ऊर्जा राजधानी कहा जाने वाला कोरबा जिला अपने विशाल कोयला भंडार और खदानों के लिए मशहूर है। यह क्षेत्र औद्योगिक विकास का बड़ा केंद्र है, लेकिन इस विकास के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। यहां कोयला खनन और खदान विस्तार परियोजनाओं ने कई परिवारों को विस्थापित कर दिया है, और ये लोग वर्षों से अपने अधिकारों और सम्मान के लिए लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्रीय कोयला मंत्री जी. किशन रेड्डी को एक पत्र लिखा है।
इस पत्र में उन्होंने दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) प्रबंधन की कार्यशैली, विस्थापित परिवारों की अनदेखी और खदान मजदूरों की दयनीय स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बताया कि जब कोयला मंत्री गेवरा खदान विस्तार परियोजना का दौरा करने आए, तब प्रबंधन ने केवल कोयला उत्पादन की उपलब्धियों और आंकड़ों की बात की। यह नहीं बताया गया कि खनन के लिए ली गई जमीनें कभी स्थानीय किसानों की थीं, जिन्हें विकास के नाम पर उजाड़ दिया गया। इन परिवारों को न तो उचित मुआवजा मिला, न पुनर्वास की ठोस व्यवस्था, और न ही उनके युवाओं को रोजगार के अवसर।
अग्रवाल ने अपने पत्र में कोरबा, दीपका, कुसमुंडा और मानिकपुर जैसे क्षेत्रों में विस्थापित परिवारों की बदहाली का मुद्दा उठाया। उन्होंने साफ कहा कि ये परिवार भीख नहीं, बल्कि अपने अधिकार मांग रहे हैं। पूर्व मंत्री ने कोयला मंत्री से अपील की है कि वे इस मानवीय संकट को गंभीरता से लें और एक निश्चित समय में इसका समाधान करें। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर समय रहते इन परिवारों को न्याय नहीं मिला, तो हालात और बिगड़ सकते हैं, जिससे आंदोलन और असंतोष बढ़ेगा। इससे औद्योगिक माहौल को भी नुकसान हो सकता है।
पत्र में खदान मजदूरों की स्थिति पर भी ध्यान दिया गया है। ये मजदूर खतरनाक परिस्थितियों में काम करके कोयला उत्पादन के लक्ष्य पूरे करते हैं, लेकिन उनकी कॉलोनियों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। टूटी सड़कें, कचरे के ढेर, खराब मकान और पानी की कमी उनकी जिंदगी को और मुश्किल बनाती है। अग्रवाल ने कहा कि कोरबा देश में सबसे ज्यादा कोयला राजस्व देता है, इसलिए संसाधनों की कमी का बहाना नहीं चल सकता।
पत्र में कहा गया है कि कोरबा की यह कहानी सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि उन सभी जगहों की है, जहां प्राकृतिक संसाधनों का दोहन स्थानीय लोगों की कीमत पर होता है। अगर कोरबा के विस्थापित परिवारों को उनका हक नहीं मिला, तो यह सिर्फ प्रशासन की नाकामी नहीं, बल्कि उस विकास मॉडल की हार होगी, जिसको ढिंढोरा सरकार पीटा करती है।