शास्त्र वाले थानेदार, कोयले के बने पहरेदार…
शास्त्र वाले थानेदार अब कोयले के पहरेदार बन गए हैं। कोयलांचल की सुरक्षा अब चार तिलकधारियों की ताल पर है। दरअसल सरकार बदलने के साथ ही लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए जिले के चार थानेदारों का स्थानांतरण हुआ है। निरीक्षकों के स्थानांतरण के बाद कड़क कप्तान ने कोयलांचल के चारों थाने की पहरेदारी शास्त्र वाले थानेदारों से करा रहे हैं।
खबरीलाल की माने तो पहले से हरदी बाजार में चुलबुल पांडे पदस्थ हैं। नए फेरबदल में मधुर मुस्कान वाले साहब ने भी धूल की गुबार वाले थाना में दस्तक दी है। मधुर वाणी और टीका वाले साहब दीपका थाना में भी भारी पड़ने वाले हैं। और तो और कटघोरा का कटघरा वैसे ही धर्म संकट में फंसा है। मतलब साफ है कोयलांचल के बदनाम थाने के गलियों को शास्त्र और शस्त्र दोनों से सुधारने का प्रयास किया जाएगा।
वैसे तो कोयलांचल के इन चारों थानों में थानेदारी करना और काजल की कोठरी की रखवाली करना दोनों एक समान है। इन थानों से बिना आरोप के थानेदारी कर पाना असंभव माना जाता है। इसके बाद ये चारों की चौकड़ी “कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना” के धुन पर थानेदारी के साथ कुछ चमत्कारी काम कर सकते हैं। बहरहाल शास्त्र वाले थानेदार कोयले की पहरेदारी किस तीरंदाजी में करते हैं इसकी जनमानस को बेसब्री से प्रतीक्षा है ..!
दादू का वन विभाग में चल रहा जादू…
वन विभाग में एक दादू का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। हम बात दत्तक पुत्र से अनुकंपा नियुक्ति वाले बाबू साहेब की कर रहे हैं। वैसे तो साहब की नौकरी पर यक्ष प्रश्न तो समय समय पर खड़ा होता रहा है लेकिन रीवा वाले दादू बड़े आराम से अपना जादू बिखेर कर इनकम में दिन दुगुना रात चौगुना बढ़ोतरी कर रहे हैं।
खबरीलाल की माने तो लंबे कद काठी के बाबू ने डिपार्टमेंट में फर्जी बिलिंग के लिए अपने रिश्तेदार का बिल लगाकर कोषालय भेजा है। हालांकि कोषालय अधिकारी ने बाबू के बिल के ब्लंडर मिस्टेक को पकड़कर स्पष्टीकरण मांग लिया है। इसके बाद साहेब के माथे में थोड़ी लकीरें जरूर खींची, पर शुक्रवार को हुए फारेस्ट अफसरों के तबादले से फिर दादू की बांछे खिल गई हैं।
असल में बिलासपुर के नए सीसीएफ से रिश्तेदारी जोड़कर फिर से डिपार्टमेंट में बड़ी निर्भयता से नाम का भय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। वैसे इस बात की चर्चा विभाग के गलियारों में जमकर हिलोरे मार रही है कि दादू के जादू का पर्दा गिरने वाला है और उनके दत्तकपुत्र में अनुकंपा नियुक्ति वाली नौकरी की पोल खुलने वाली है।
ट्रांसफर एक्सप्रेस और खाकी के खिलाड़ी
लोकसभा के चुनाव के चलते ट्रांसफर एक्सप्रेस की चर्चा ब्यूरोक्रेट में जमकर रही… और तो और पुलिस डिपार्टमेंट में हुए संसोधन आदेश पर सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। हो भी क्यों न सरकार के निशाने पर रहे कुछ अफसरों ने चंद दिनों में ऐसा क्या जादू चलाया कि उन्हें सुकमा बस्तर और बीजापुर जैसे बीहड़ नक्सली बेल्ट से मैदानी एरिया में पोस्ट करना पड़ा।
अब अगर पुलिस के बड़े अफसरों की बात करें ज्यादातर अफसर ट्रांसफर के बाद ड्यूटी छोड़ मंत्री और मंत्रालय के चक्कर काट रहे थे। पूर्ववर्ती सरकार में खास सिपहसलार कहे जाने वाले प्रदेश भर से 20 पुलिस अफसरों को पनिशमेंट देते हुए सुकमा भी भेजा। लेकिन, खाकी के खिलाडी मंजे निकले और सप्ताह भर में वापस मनचाहे जिले में पोस्टिंग करा ली। शनिवार को निकली लिस्ट में कई नाम तो ऐसे हैं जो मात्र चंद दिनों में ट्रांसफर आदेश में संशोधन करा लिया। एक के बाद एक हुए संशोधन आदेश पर जनता की भी अपनी राय है.. साहब ये पब्लिक है जो सब जानती है..!
सरकार के ट्रांसफर एक्सप्रेस को लेकर राजनीतिक पंडित तो यह भी कहने लगे कि अभी तो तेल देखो और तेल की धार देखो भाई साहब.. ! संशोधन आदेश से मनचाहा पोस्टिंग पाने वाले पुलिस अफसर “ये चमक ये दमक, फूलवन मा महक,सब कुछ सरकार तुम्हीे से है!! गुनगुना रहे हैं।
दीदी और भाभी, किसके हाथ में जीत की चाबी
छत्तीसगढ़ की दो सीट इस वक्त हाई प्रोफाइल हो चुकी है जिनमें से एक राजनांदगाव और दूसरी कोरबा में लोगों की निगाह लगी हुई है। राजनांदगांव में पूर्व सीएम रमन सिंह के प्रभाव वाली सीट पर कांग्रेस के पूर्व सीएम भूपेश बघेल ताल ठोंक रहे हैं वहीं कोरबा में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत का मुकाबला बीजेपी की तेज तर्रार महिला नेता सरोज पांडेय से है।
नतीजों पर गौर करें तो छत्तीसगढ़ बनने के बाद से राजनांदगांव में बीजेपी की जीतती रही मगर कोरबा का नतीजा उन्नीस बीस वाला रहा। लोकसभा बनने के बाद जब जब भाजपा ने ब्राम्हण कार्ड खेला तब तब जनता कांग्रेस के साथ रही। कद्दावर नेता बंशीशीलाल महतो के बाद से कोरबा में कांग्रेस का कब्जा रहा। इस बार बीजेपी सरोज पांडेय को मैदान में उतार कर इस सीट पर कांग्रेस की घेरा बंदी करने की कोशिश की है।
दरअसल मिनी इंडिया कहलाने वाले कोरबा संसदीय सीट के 8 विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी समाज के अलावा पूर्वाचंल से जुड़े मतदाता बड़ी तादात में हैं जिनका वोट सीधे तौर पर हार जीत के अंतर पर प्रभाव डालता है। ऐसे में बैकुंठपुर, मनेंद्रगढ़ और कोरबा में एसईसीएल, एनटीपीसी, बालको जैसे संस्थानों में कार्यरत पूर्वाचंल से जुड़े मतदाताओं का बड़ा वर्ग जिधर जाएगा उसका वोट प्रतिशत बढ़ना तय है।
भाजपा ने इसी समीकरण को ध्यान में रखकर सरोज पांडेय का यहां से उतारा है। ज्योत्सना महंत से पहले यहां उनकी पति चरणदास मंहत सांसद रहे चुके हैं। साफ कहे तो कांग्रेस को इनकम्बेंसी का समाना करना पड़ सकता है। हालांकि यहां कांग्रेसी बीजेपी उम्मीदवार पर बाहरी होने का जमकर प्रचार कर रहे हैं। मगर मुख्य मुकाबला तो दीदी और भाभी के बीच ही होना है। अब सत्ता की चाबी किसे सौंपना है ये तो वहां की जनता ही करेगी।
सुबह का भूला…
दो दिन पहले चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। चुनावी डंका बजते ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस में अपने बिखर कुनाबे को बचाने की कोशिश शुरु हो गई। विधानसभा चुनाव के बागी और बड़े नेताओं पर पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप लगा कर अपनी भड़ास निकालने वाले कांग्रेसियों की वापसी होने लगी। पार्टी की ओर से ये कहा गया कि सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।
पूर्व विधायक विनय जायसवाल, बृहस्पत सिंह और बिलासपुर के महापौर रामशरण यादव का पार्टी से निलंबन खत्म कर दिया गया। इनके अलावा बाकी बचे बागियों की वापसी भी जल्द हो जाएगी। कांग्रेस नेतृत्व ये दिखाने की कोशिश कर रहा है कि बीजेपी से मुकाबला करने में कांग्रेस के लोग एकजुट हो रहे हैं।
हालांकि अभी कांग्रेस 5 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान नहीं कर पाई है, खुद पीसीसी चीफ दीपक बैज की बस्तर सीट फंसी गई है। यहांं उनकी ही सरकार के पूर्व मंत्री रहे कवासी लखमा के बेटे हरीश लखमा पीछे हटाने के लिए तैयार नहीं हैं।
ऐसा ही हाल सरगुजा, रायगढ़, कांकेर और बिलासपुर का है जहां पार्टी को जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार के लिए पसीना बहाना पड़ रहा है। इन सीटों पर भी जिनके नाम चल रहे हैं उनसे बाकी बचे चेहरों में बगावत रही है। यही हाल रहा तो कांग्रेस में सुबह के भूले नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने लोकसभा का पूरा चुनाव गुजर जाएगा। पार्टी को एकजुट रखने की यही कोशिश कांग्रेस नेताओं को परेशान कर रही है।