
साढ़े सात की बात…
पुलिस महकमे में नई कहावत है.. जुगाड़ हो तो साहब सिंघम और जुगाड़ से चूके तो जी का जंजाल..। असल में कबाड़ कारोबारी को पकड़ने के बाद छोड़े जाने की खबर पर महकमे में खुसुर फुसर हो रही है..भैया साढ़े सात की बात और गैर जिले पुलिस का जुगाड़ है। असल में ऊर्जाधानी में कोयला, कबाड़ और डीजल से ऊर्जा के साथ रेत से तेल और सट्टा जुआ के खेल से थानेदारी चमकाने वाले थानेदारों की एक बार फिर चल पड़ी है।
वाकया 5 जून की रात का है, पुलिस ने केबल तार चोरी के मामले में 4 लोगों को पकड़ा था। पूछताछ के बाद करीब ढाई बजे कबाड़ का चर्चित व्यक्ति को छोड़ दिया। कबाड़ कारोबारी के छूटने की खबर के बाद कारोबारियों में एक गैर जिला के पुलिस ने साढ़े सात पेटी में मंडवाली कराने की चर्चा होने लगी। हालांकि थानेदार साहब ने साफ कहा कि छोड़े गए संदिग्ध केबल चोरी में शामिल नहीं थे। जिसकी वजह से ढाई बजे रात में पूछताछ के बाद छोड़ा गया।
वैसे तो जिले में आन रिकॉर्ड डीजल, कबाड़ और कोयला का कारोबार बंद है। बावजूद इसके समय – समय पर कबाड़ और कोयला चोर पकड़े जा रहे हैं। यानि अवैध कारोबार का तरीका बदला है लेकिन थानेदार भी बदले हो ऐसा नहीं हुआ। सूत्रधार की माने तो बालको में चल रहे कबाड़ और राताखार के कारोबारी की प्रतिद्वंता के कारण संगठित तरीके से चल अवैध कबाड़ कारोबार का परत दर परत खुलासा हो रहा है। मगर साढ़े सात की बात हो तो सब कुछ चलता रहेगा।
पिरामिड देखकर चौंकिए नहीं..मिस्र नहीं ये कोरबा का आर्किटेक्ट है जनाब
शहर में डीएमएफ से बने ज्यादातर सरकारी बिल्डिंग मिस्र के पिरामिड की तरह चमत्कारों और रहस्यों से भरे हुए हैं। शहर के चारों दिशाओं में बने आडिटोरियम,वूमेन हॉस्टल, क्लब और विवेकानंद इंस्टीट्यूट को देखकर लगता है सरकारी मुलाजिम भी कहीं मिस्र की शैली पर बिल्डिंग निर्माण तो नहीं कर गए।
असल में मिस्र के पिरामिड की तर्ज में बिना उपयोग के बने शहर में करोड़ों की इमारतों को देखकर शहर के विशेषज्ञ कह रहे है क्या निजी लोगों के हाथों देने के लिए बिल्डिंग को बनाया गया है, क्योंकि जिस अंदाज में गीतांजली भवन, इंदिरा स्टेडियम,कलेक्टोरेट कार्यालय, पुराना कोर्ट और जिला जेल के समीप आडिटोरियम बने हैं उसे देखकर सहज ही कयास लगाया जा सकता है कि असल खेला क्या है…?
गली-गली में बने सामुदायिक भवन की तर्ज पर बने शहर के इन सरकारी आडिटोरियम में साल भर में एक दो कार्यक्रम हो जाए है तो बहुत है। बाकी रखरखाव और सफाई का पैसा भी सरकारी खजाने से जा रहा हैं। शहर में बने इन आडिटोरियम को बनाने की सलाह तत्कालीन आज के राजाओं ने मिस्र के राजाओं की तरह दिया होगा तभी तो दोनों के अंदाज एक जैसे हैं।
अब करोड़ों रूपए जिस समाज में सिर्फ मीटिंग के लिए खर्च किया जाता हो तो वहां के विकास और कल्याण का क्या कहना ! वैसे चर्चा तो इस बात कि भी है कि शहर में बने इन मिस्र के पिरामिडों के इतिहास के बारे में जानकारी के लिए एक ईएसआई हॉस्पिटल के समीप लाइब्रेरी भी बनाया गया है। गूगल युग में ये लाइब्रेरी किसी पिरामिड से कम थोड़े है।
एक तिवारी खाद्य विभाग पर भारी, चावल सेठ कह रहे…
खाद्य विभाग में एक तिवारी इन दिनों खूब टीआरपी बटोर रहे है। राशन दुकान संचालन करने वाले “चावल सेठ” कहते है बड़े साहब तो सज्जन है लेकिन तिवारी की “जबराना” वसूली खाद्य विभाग और बड़े अधिकारी पर भारी पड़ रही है।
प्रदेश की जनता पूर्ववर्ती सरकार पर भारी रहे तिवारी को भूल भी नही पाई और खाद्य विभाग के एक और तिवारी चर्चा में आ गए । वैसे तो कहा जाता है जिसमे विलक्षण प्रतिभा होता है वही ऑफिस के सिस्टम को चलता है। इसी शैली में तिवारी सरकारी राशन हेरा – फेरी करने वाले चुनिंदा संचालकों के संकटमोचक बन गए है। सूत्रधार कहते है बात चाहे चावल, चना या शक्कर की या फिर तिवारी जैसे कर्मचारी से टक्कर की हो। सब में रिस्क है लेकिन क्या करें अब “पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर..!” तो नहीं किया जा सकता है। सो तिवारी की ताल पर राशन दुकान चलाने वाले कारोबारी भरतनाट्यम करते हुए सरकारी राशन को बेचकर नजराना चढ़ा रहे है।कहा तो यह भी जा रहा कि बड़े साहब ने विभाग में एक सिस्टम बनाकर सब को क्षमता के अनुसार काम बांट दिया।है। जिसमें तिवारी सभी कर्मचारियों पर भारी पड़ रहे हैं। विभागीय कर्मचारी तो दबी जुबां से कहने लगे है क्या करें भाई जब तिवारी बड़े साहब भारी पड़ रहे है तो हमारी क्या बिसात..!