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Triphala and Hazma : आयोग का सिक्स्थ सेंस और एसपी का चुनाव, इतना सन्नाटा क्यों है भाई..17 किसके लिए बनेगा खतरा,धान… बोनस और कर्ज माफी

आयोग का सिक्स्थ सेंस और एसपी का चुनाव

कहते हैं अनुभवी अफसर हवा के रुख से भांप लेते हैं कि आगे क्या होने वाला है। चुनाव आयोग ने भी सिक्स्थ सेंस से विधानसभा चुनाव का अंदाजा लगाया और उनका सिक्स्थ सेंस काम कर गया। अचार संहिता लगते ही निष्पक्ष और शांति पूर्ण मतदान कराने एसपी जितेंद्र शुक्ला को कोरबा भेजा गया।

उनकी पोस्टिंग होते ही सत्तारूढ़ दल के नेता विपक्ष से ज्यादा खुश हुए। नए कप्तान के चार्ज लेते ही सभी थाना चौकी प्रभारी इंवर्टर की तरह रिचार्ज हो गए। जो बिजली बंद होने के बाद तीसरी इंद्री को खोलकर अभी भी वन टेन बल्व की तरह जल रहे हैं। कप्तान की एक मीटिंग के बाद थाना प्रभारी चौकियों में बेरियर लगाकर इस कदर धरपकड़ शुरू किया कि चुनाव में पैसा बांटना तो छोड़िए पर्ची बांटने से नेताओ के गुर्गे गुरेज करने लगे।

हां ये बात अलग है कि कोहड़िया में प्रचार को रोकने का एक प्रोपोगेंडा की पटकथा लिखी गई। उसे भी एसपी ने सिक्स्थ सेंस से अंदाजा लगाकर न्यूसेंस क्रिएट करने वाले नेताओं की बोलती बंद कर दी। मतलब साफ है साहब को चुनाव में जो जिम्मेदारी आयोग ने दी थी उसका बखूबी निर्वहन करते हुए साबित कर दिया कि डंडे में अभी भी जोर है और डंडा कठोर है।

वैसे तो कप्तान के पदस्थ होने के बाद जो उम्मीद सत्ता पक्ष के नेताओं को थी वो तो पूरी हुई लेकिन, साथ में पूरा हुआ आयोग का सिक्स्थ सेंस..! जो बिना किसी दवाब और आरोप प्रत्यारोप के चुनाव शांति पूर्ण कराने में सफल रहे। उनके कप्तानी पारी और आईक्यू लेबल ने जिले मे पुलिस का मान ही नहीं बढ़ाया बल्कि कठिन डगर नए खिलाडियों को चलना भी सिखा दिया है। हालांकि उनके चुनावी सफलता को आयोग और सरकार किस नजरिए से देखती यह देखना अभी बाकी है।

इतना सन्नाटा क्यों है भाई…

याद तो होगा शोले के रहीम चाचा के सुपरहिट संवाद ” इतना सन्नाटा क्यों है भाई.. ” इन दिनों शहर के राजनीतिक फिजा में भी झंन्नाटेदार सन्नाटा पसरा हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों की जुबां तो छोड़िए यूं कहें हर किसी की लफ्जों पर शोले का पॉपुलर संवाद ये सन्नाटा क्यों है भाई है दोहराया जा रहा है।

दरअसल महिलाओं की बंपर वोटिंग से पोलिंग एक्सपर्ट से लेकर रणनीतिकार भी नहीं समझ पा रहे कि ऊंट किस करवट बैठेगा। ये बात अलग है कि सुनी सुनाई बातों को आधार मानकर सब एक दूसरे को जीता रहे हैं। वैसे तो राजनीतिक पंडित मोदी की गारंटी पर वोटों का कैलकुलेशन बता रहे है तो कोई इंटी इनकमबेंसी का माहौल बताते हुए परिवर्तन की लहर चला रहे हैं।

बात चाहे जो भी लेकिन, मतदान के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों खेमे में सन्नाटा पसरा हुआ है। हालांकि पार्टी के रणनीतिकार अपने अपने दावे पेश करते समीक्षा कर अपने नेताओं को बढ़त दिला रहे हैं। ये बात अलग है कि उनके दावे सिर्फ 3 दिसंबर तक सांत्वना पुरष्कार जैसा ही होगा, क्योंकि 3 दिसंबर को जब ईवीएम खुलेगा तो दावे की पोल खुलेगी। बहरहाल चुनावी चर्चा का मजा लीजिए और अपने विरोधी खेमे की खामोशी पर गौर कीजिए…!

खामोशी से बता रही है कि हाइप्रोफाइल सीट पर कार्पोरेट की तर्ज पर लड़े चुनाव के परिणाम से पहले समीक्षा चौकाने वाला है। उधर फूल वाले नेता सत्ता की चाबी दिलाने जनता का आभार जता रहे हैं। जो खामोशी को और बढ़ा रही है।

17 किसके लिए बनेगा खतरा

17 तारीख को सूबे में वोटिंग और 3 को मतों की गिनती होगी। यानी ठीक 17 दिन बाद की आने वाली तारीख को सरकार बनाने वाली पार्टी की किस्मत का फैसला हो जाएगा। लेकिन, 17 दिन का लंबा इंतजार राजनीति की कुंडली बाचने वालों के लिए संयोग और कुसंयोग दोनों लेकर आ रही है।

दर असल 1 और 7 का मूल अंक 8 होता है और 8 के अंक को शनि का अंक माना जाता है। ज्योतिष जानने वाले 8 का अंक भाजपा के लिए लकी साबित होने की बात बता रहे हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि को कर्मफलदाता, न्यायाधीश बताया गया है। 8 अंक होने के कारण शनि के गुणों का प्रभाव पीएम मोदी पर दिखाई पड़ता है। शनि को परिश्रम का कारक भी भी माना गया है, कहा तो यह भी जा रहा है बिना सिक्के की खनक सुने वोट देकर इसबार मतदाताओं ने साबित कर दिया कि हर वोटर बिकाऊ नहीं है।

वैसे खतरे में पड़ने वाला प्रत्याशी पुनर्गणना या पुनर्मतदान की मांग, ईवीएम में धांधली, बूथ कैप्चरिंग, प्रशासन की मिली-भगत और भी कई आक्षेप लगाए जाने को लेकर पूरी तैयारी में रहता है। हार के बाद हारने वाले का सारा व्याख्यान इस विषय पर पर जा अटकेगा कि कहां कितने वोट…

धान… बोनस और कर्ज माफी

चुनावी साल में 1 नवंबर से छत्तीसगढ़ में किसानों के धान की खरीदी शुरु हो गई है। दिवाली बीत गई मगर किसान सोसायटी तक नहीं पंहुच रहे हैं। कई केंद्रों में अभी तक बोहनी तक नहीं हुई है। मतलब बिल्कुल साफ है इस बार चुनाव में धान… बोनस और कर्ज माफी से ही छत्तीसगढ़ की किस्मत तय होने वाली है।

चुनाव आयोग की आंकड़ों पर गौर करें तो इस बार छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 50 विधानसभा क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया है। इन सीटों में महिला वंदन योजना और स्व सहायता समूहों की कर्जमाफी ही बड़ा फैक्टर है जो हार जीत का फैसला करेगी।

इस चुनाव में लव जिहाद, धर्मातंरण और बेरोजगारी के मुद्दे काफी छूट गए हैं। अब 3 तारीख को जो नतीजे आएंगे उसमें साफ हो जाएगा कि प्रदेश के मतदाताओं का कांग्रेस पर भरोसा कायम है बदलाव की बयार बहने वाली है।

त्रिफला और हाजमा

छत्तीसगढ़ में चुनाव के नतीजों से पहले एक बार त्रिफला की चर्चा पड़ी है। नतीजों से पहले ही कांग्रेस का हाजमा खराब होने लगा है। दरअसल कांग्रेस में सीएम फेस को लेकर जय वीरू की जोड़ी में तकरार फिर सुर्खियों में आ गई है। सरगुजा राजपरिवार के महाराज और डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव इसबार मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने पर अगला चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर चुके हैं।

वहीं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भरी सभा में कह चुके हैं कि अगर छत्तीसगढ़ में दोबारा कांग्रेस की सरकार बनी तो भूपेश बघेल ही मुख्यमंत्री बनेंगे। राहुल की यही बात कांग्रेस का हाजमा खराब कर रही है। प्रदेश प्रभारी भी कह चुकी हैं कि चुनाव भूपेश बघेल के चेहरे पर लड़ा गया है तो सीएम फेस भी वही होंगे।

कांग्रेस का हजमा ठीक करने के लिए इस बार फिर त्रिफला फार्मूला की चर्चा चल पड़ी है। जानकारी बता रहे हैं कि इस बार खुद त्रिफला का हजमा बिगड़ गया है तो वो कांग्रेस का हजमा कहां तक ठीक कर पाएगी। जो भी 3 तारीख को ही पता चल पाएगा कि कांग्रेस का सीएम फेस कौन होगा और जय वीरू में सुलह कराने के लिए कांग्रेस के वैध कौन सा फार्मूला आजमाने वाले हैं।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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