कटाक्ष
Millets how late: चलो बुलावा आया है ED ने बुलाया है,डर होना चाहिए और वो दिल में होना चाहिए…शिवरात्रि में लोटा जल”’ अफसरों की समस्याओं का हल,फ्लाई फ्लायर और फ्लाई ऐश..
चलो बुलावा आया है ED ने बुलाया है.
चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है …. ये गीत वैसे तो माता रानी के दर्शन करने वाले गुनगुनाते हैं। पर… इन दिनों इसका मुखड़ा बदलकर कोयला खदान के अफसर चलो बुलावा आया है ईडी ने बुलाया है का गीत गुनगुना रहे हैं।
दरअसल देश की शान एशिया की सबसे बड़ी खान का तमगा हासिल करने वाले कोयला खदान के अधिकारियों को ईडी का बुलावा आया है। जब से उन्हें ये बात पता चली है तब से कोयलांचल के दफ्तरों में चलो बुलावा आया है ईडी ने बुलाया है का गाना गूंज रहा है।
वैसे तो जिले में लगातार ईडी के अधिकारियों का आना और अलग अलग दस्तावेज को ले जाना लगा हुआ है। केंद्रीय जांच एजेंसी के दस्तक के राजनीतिक पंडित कहने लगे हैं कुछ तो खास हैं। तभी तो विपक्षी दल को अपने नेताओं से ज्यादा ईडी पर ही विश्वास है।
वैसे कोल माइंस से हो रहे कोयला चोरी का सिलसिला अभी थमा नहीं है। सूत्र बताते हैं कि चोरी का तरीका बदला है चोरी नहीं। अब कोयला तस्करी का मुख्य किरदार में ओवर बर्डन का काम करने वाले ठेका कंपनी के नुमाइंदे हैं, जो खदान से मट्टी भरकर डंप करने ले जाते और रास्ते मे उसे काला हीरा बनाते हैं।
यही वजह है कोयला नगरी में हुए कोल स्कैम में कोल माइंस के सीजीएम लेबल के अधिकारी अब ईडी के रडार में हैं। कहा तो यह भी जा रहा है अभी दो एरिया के जीएम को ईडी ने तलब किया है आगे औऱ बहुत कुछ होने की उम्मीद है। कोल माइंस के बड़े अधिकारियों को तलब करने की खबर के बाद कोयला के कलाकारों की बोलती बंद हो गई है।
डर होना चाहिए और वो दिल में होना चाहिए…
केजीफ का ये डायलॉग “डर होना चाहिए और वो दिल में होना चाहिए ,वो दिल अपना नहीं सामने वाले का होना चाहिए।” ये डायलॉग नए कप्तान पर फिट बैठता है। उनके चार्ज लेते ही डिपार्टमेंट के अफसर तो चार्ज हो ही गए हैं। इसके अलावा शहर के उल्टे सीधे काम करने वाले भी डिस्चार्ज होकर छुपने के लिए बिल तलाशने लगे हैं।
कहा तो यह जा रहा है कि साहब ने एडिशनल रहते जो टेलर दिखाए थे वो आज भी लोगों की जहन में है। यही वजह है कि अवैध कारोबारी एक दूसरे से चर्चा करते फिर रहे है और कह रहे साहब कहीं पुराने अंदाज में पिक्चर दिखा दिए तो जिला से बाहर जाने कोई नहीं रोक सकता। इससे अच्छा शांत रहने में ही भलाई है।
वैसे कोरबा पोस्टिंग के बाद विभाग के अफसरों के कामों में काफी तब्दीली आई है। विभाग में ऐसे भी कुछ अफसर हैं जो उच्च अधिकारी को अपना खास बताकर पब्लिक के बीच अपना सिक्का चलाते थे। उनकी भी बोलती बंद हो गई है। अब तो न एक स्टार का चल रहा न नंबर दो का…!
हालांकि कुछ अफवाहों का बाजार शहर में गर्म है वो ये कि कुछ सिविलियन संबंधों की दुहाई देकर काम दिलाने का ख्याली फुलाव पका रहे हैं।
अब खाकी के खिलाड़ियों की बात करें तो उल्टे सीधे काम करने वाले अफसर सही राह में चार्ज हो गए हैं। उन्हें मालूम है कि साहब कड़क मिजाज के हैं, सो समझकर काम करना पड़ रहा है। पहले तो रस्सी को भी सांप बना देते थे अब ये सब नहीं चलने वाला! लिहाजा जैसा बाजा रहेगा वैसा नाचा नाचना पड़ेगा।
शिवरात्रि में लोटा जल”’ अफसरों की समस्याओं का हल…
प्रशासन के सहयोग से हर साल महाशिव रात्रि पर होने वाले पर्व “पाली महोत्सव” से जिले की सुख समृद्धि और शांति पुराना नाता रहा है। पाली के प्राचीन शिव मंदिर में पूजा अर्चना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसी आस्था को अंगीकार कर जिले के शीर्ष अधिकारी पाली महोत्सव का आयोजन पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। हाल के वर्षों में महामारी कोरोना के कारण आयोजन में बाधा आई। इसके बाद 2 वर्षों से प्रशासनिक अधिकारी जलाभिषेक करने जा नहीं सके।
एक बड़ी वजह ये भी रही कि पिछले दो वर्ष प्रशासनिक उथल पुथल से भरे रहे। अब जब भव्यता के दिव्य आयोजन हुआ तो जिले के राजा देवो के देव महादेव के शरण मे जाकर जिले के सुख समृद्धि की कामना करने का अवसर कैसे गंवाते!! भक्ति की शक्ति को करीब से जानने वालों की माने तो अब पाली महोत्सव के गौरवमयी समापन के बाद यानी एक लोटा जल से प्रशासनिक उथल पुथल की समस्या का हल होगा, सो पाली महोत्सव की महिमा की स्तुति सभी कर रहे हैं।
फ्लाई फ्लायर और फ्लाई ऐश..
बचपन मे अंग्रेजी के तीन शब्द सभी ने पढ़ा होगा। शुरुआत जिस तरह से गो वेंट गॉन से होती थी उसी तरह शहर में राखड़ का जुमला भी फ्लाई फ्लावर और फ्लाई ऐश से शुरू हो गया है। फ्लाई का मतलब उड़ना और फ्लायर यानि उड़ाने वाला और फ्लाई ऐश का अर्थ बताने की किसी को जरुरत नहीं है।
शहर में राखड़ से किस तरह समस्या हो रही है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। कहने का मतलब है कि उड़ क्या रहा है कौन उड़ा रहा है, और कौन मजे ले रहा है और परेशान कौन है, यह भी बताने की जरूरत नहीं।
हैरानी और परेशानी की बात यह है कि जिस सतरेंगा को ग्रीन लैंड बनाने का सपना स्वंय राज्य सरकार ने देखा है। वह अस्थाई ऐश डेंम के रूप में चिन्हांकित किया जा चुका है। उससे भी चौकाने वाली बात यह है कि जिस औद्योगिक प्रतिष्ठान ने अपने फ्लाई ऐश को सतरेंगा के आसपास डंप करने जिस ट्रांसपोर्टर को जिम्मेदारी दी है ,वही उसके आंखों में राखड़ की धूल झोंककर सतरेंगा से पहले जामबहार, सोनपुरी,सोनगुढ़ा जैसे प्रकृति के गोद मे बसे गांव के सड़क किनारे की खाली जमीन पर राख फेंक कर ग्रामीणों की जिंदगी में जहर घोल रहा है।
हां ये बात अलग है कि राख फेंकने वाले औद्योगिक प्रतिष्ठान को इससे कोई मतबल नहीं की राख कहां पर फेका जा रहा है। वह इस जुमले पर अडिग है कि अपना काम बनता तो भाड़ में जाए…! कुल मिलाकर राख के मामले में सभी अपनी अपनी बनौती बनाने पर तुले है। औद्योगिक प्रतिष्ठान और ठेकेदार मस्त है और प्रभावित जनता त्रस्त है।