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Advocate for the voiceless: थाना प्रभारी और जुआरी,7 परसेंट का फायदा , अब क्या होगा आधा या ज्यादा…रेत निकालने के लिए हाई सिक्युरिटी संग पायलेटिंग,जरूरत है एक सीमा रेखा खींची जाए…

थाना प्रभारी और जुआरी…

 

जुआरियों को पकड़ने उर्जाधानी के ऊर्जावान थाना प्रभारीयो की खुफिया रिपोर्ट फेल हो गई या यूं कहें की सेटिंग का जुआ चला और पुलिस भी समय समय पर बाजी मारती रही।

वैसे तो दीवाली में जुआ खेलना शुभ माना जाता है। इसके पीछे भी कुछ मान्यताएं हैं। मान्यता हो या न हो जैसे पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए, वैसे ही जुआरी के लिए दीवाली एक बहाना ही है। यह भी एक प्रकार से मन को बहलाना है कि जो कोई भी दीवाली की रात को ताश खेलेगा या जुआ खेलेगा, उस पर पूरे वर्ष समृद्धि और प्रचुरता की वर्षा होगी। सो दीवाली में जुआ न हो तो दीवाली कैसी..! भले ही दिवाला निकल जाए??

तभी तो गांव से लेकर शहर तक खासकर दीवाली मतलब जुआ का फड़ में हार जीत का दांव लगना। अब ये बात अलग है इस दांव के लिए पुलिस भी दांव लगाकर बैठे रहती है… जिससे मां लक्ष्मी की कृपा बरसती रहे।

जैसे बरसात का मौसम आते ही मेंढ़क खुले में आकर ‘टर्र-टर्र’ करते हैं, ऐसे ही दीवाली के मौसम में जुआरी ‘जुआ-जुआ’ करते है और इनके पीछे पुलिस भी ‘हूवा-हूवा’ का सायरन मारते घूमती है।

दीवाली है सो अपराधियों पर खाकी का खौफ और और जनता जनार्दन पर रौब वाली पुलिस जुएं के फड़ तलाशने में लगी रही। सही भी है कहीं बड़ा फड़ पकड़ा जाता तो जुआरियों की छोड़ो कम से कम विभाग के कुछ खिलाड़ियों की दीवाली मन जाती । हां ये बात अलग है की दीवाली से पहले ही पाली के पहाड़ में जुआ फड़ से बाइक और कटघोरा में ठेकेदार और सप्लायरों को पकड़कर बोहनी जरूर कर लिए ,पर दीवाली में गांव-गांव, शहर-शहर हर डगर होने वाले जुआ फड़ को पुलिस तलाश नहीं सकी। कहा तो यह भी जा रहा है कि जुआरी इस बार खुले स्थानों को छोड़कर बंद कमरे और फार्म हाउस में बावनपरियों का आनंद ले रहे थे। जिसके कारण पुलिस को जुआ नहीं मिल सका। जनमानस की में चर्चा है कि जुआ मिले भी कैसे, क्योकि जुआरी को थाना प्रभारी का आशीर्वाद जो है।

रेत निकालने के लिए हाई सिक्युरिटी संग पायलेटिंग..

अब तक आपने मंत्रियों और अधिकारियों को सुरक्षा देने के लिए पायलेटिंग करते देखा और सुना होगा लेकिन ये पहली बार है जब रेत गाड़ियों की भी पायलेटिंग की जा रही हो।

शहर में रेत कारोबारी “गंदा है पर धंधा है” की पंच लाइन की भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रहे है और जिले के सीतामणी रेत घाट से रेत निकालने के लिए हाई सिक्युरिटी के साथ पायलेटिंग का सहारा ले रहे हैं।

सूत्रधार की माने तो माइनिंग को मैनेज करने के लिए एक टीम कलेक्टोरेट के आस पास मंडराती रहती है। जो अधिकारियों की सारे गतिविधियों पर गिद्धदृष्टि रखते हैं। दूसरी टीम घाट के पास बाइक पर बैठकर पहरा देती है। अगर किसी अधिकारी या पुलिस की टीम ने घाट के रास्ते से रेत घाट में घूसने का प्रयास किया तो तस्करो को सूचना मिल जाती है और वाहन नदी में छोड़ गायब हो जाते है। तीसरी टीम सड़क पर रेत गाड़ियों के आगे आगे पायलेटिंग करती है जो चौक चौराहों में होने वाले घटनाक्रम पर नजर रखती है। अब बात खाकी की तो उन्हें तो अपने मंथली रिचार्ज से काम फिर रेत लुटे या पुल टूटे उससे क्या !!

हाई सिक्युरिटी में हो रही रेत तस्करी पर जनमानस में चर्चा है कि “जिस तरीके से रेत तस्कर फील्डिंग तैयार किये है उससे माइनिंग की टीम क्या उड़नदस्ता भी इनका बाल बांका नही कर सकता।”

वैसे तो रेत के कण कण में विद्यमान शहर के कुछ शांति प्रिय माइनिंग अफसर रेत तस्करो को संदेश दे रहे हैं  “ज्यादा घमण्ड भी ठीक नही है लाला दरवाजे उनके भी टूट जाते है जो ताला बनाते है” !

7 परसेंट का फायदा , अब क्या होगा आधा या ज्यादा…

निगम आयुक्त के स्थानांतरण होते ही ठेकेदार आपस खुसुर फुसर कर रहे हैं ” माननीया के रहते 7 परसेंट का शुद्ध लाभ था। अब नए साहब के आने से कमीशन होगा आधा या पहले से होगा ज्यादा ? “

दरअसल सरकारी डिपार्टमेंट में ठेकेदारी मतलब मुनाफा व्यापारी और अधिकारी का होकर रह जाता है। काम करना है तो सिस्टम को फॉलो करना पड़ता है। बात निगम के ठेकेदारों की है जो तत्कालीन आयुक्त के काम काज की प्रशंसा कर रहे हैं..”अभी तक 7 परसेंट का शुद्ध फायदा था। अब मैडम के जाने के बाद क्या होगा ? “

सूत्रधारों की माने तो निगम में चली आ रही कमीशन की परिपाटी पर कुछ हद तक आयुक्त ने लगाम लगाई थी। सूत्रों की माने तो वर्कऑर्डर के लिए पहले साढ़े तीन परसेंट देना पड़ता था औऱ चेक काटते समय साढ़े चार। जब से माननीया ने कार्यभार संभाला था तब से वर्कआर्डर और चेक काटने का कमीशन बंद हो गया था। मतलब ठेकेदारों को 7 परसेंट की शुद्ध चांदी थी। अब स्थानांतरण के बाद आगे क्या होगा..!

सुगबुगाहट तो यह भी है नए वाले  साहब के नेचर और सिग्नेचर की कुंडली कुछ निगम के घाघ अफसर खंगालने में लगे हैं और उनके पसंद के हिसाब से अपना दिनचर्या बनाने में टूटे मन से जुटे हुए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है नए साहब भी कड़क है लेकिन निगम की कुर्सी की तासीर ही ऐसी है कि हर कोई कमीशन की धार में बहना चाहता है। सो बहना तो गई लेकिन आ रहे भाई कौन सा छाता तानेंगे..यह देखने वाली बात होगी!!
आना जाना लगा रहेगा लेकिन सरकारी विभाग में बंधा-बंधाया हिसाब ,आपसी सेटिलमेंट कहीं दस परसेंट ,कहीं बीस परसेंट लेकिन पेमेंट से पहले पेमेंट की बात पहले से ही हिट और इसके खांचे में सभी फिट हैं।

जरूरत है एक सीमा रेखा खींची जाए…

1 नवंबर को हमारा छत्तीसगढ़ अपने निर्माण के 24 साल पूरा कर चुका है और आज से सरकार राज्योत्सव मनाएगी। लेकिन राज्योत्सव को केवल सरकारी आयोजन मान लेना छत्तीसगढ़ निर्माण की मंशा को कमतर आंकना जैसा होगा..। इन 24 सालों में छत्तीसगढ़ ​कई उतार चढ़ाव से गुजरा है…इनमें से कुछ त्रासदी तो कुछ विकास यात्रा से जुड़ी घटनाएं हैं।

इन 24 सालों में बस्तर माओवादियों के चंगुल से मुक्त होता दिखा तो इन्हीं सालों में छत्तीसगढ़ के शांत कहे जाने वाले कई हिस्से लहुलुहान भी होते रहे। कवर्धा की घटना हो या बिरनपुर की हिंसा और सूरजपुर में पुलिस परिवार की निर्मम हत्या तो झकझोंरने वाली है। बालौदाबाजार में कलेक्टोरेट में आगजनी और हिंसा ने पूरे देश को सोचने का मजबूर ​कर दिया अब बालौदाबाजार को दोबारा से सुलगाने की साजिशें हो रही हैं।

दिवाली के दिन कबीरपंथ के धर्मगुरु प्रकाशमुनि साहेब के आश्रम में पटाखा जला फेंकने से पूरा छत्तीसगढ़ सुलग सकता था…इस घटना को लेकर वामपंथी रूझान वाले अखबारों को छोड़ दें तो अलग.अलग मीडिया संस्थानों ने अपने हिसाब से हेडलाइन बना कर खबरों को चलाया…कुछ मीडिया संस्थानों के लिखा ​कि प्रकाशमुनि साहेब के आश्रम पर भीड़ का हमला तो कुछ ने अपने हिसाब से खबर गढ़ डाली..जबकि विवाद केवल पटाखा चलाने को लेकर था..इसे भीड़ द्वारा प्रकाशमुनि साहेब के आश्रम पर हमला तो नहीं कहा जा सकता..।

इसी बीच रायपुर के विधानसभा थाना क्षेत्र के ग्राम सकरी में घर से बाहर खुली जगह में जुआ खेलने को लेकर हुए दो पक्षों में हुए विवाद को वर्ग विशेष में हिंसा और बलवा के रूप में प्रचारित करने की ओछी कोशिश भी हुई गनिमत रही कि रायपुर पुलिस ने तुंरत इस घटना पर प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया के सामने सच्चाई बता दी नहीं तो अनहोनी हो सकती थी। ऐसे में जब छत्तीसगढ़ अपना 24वां राज्योत्सव मना रहा है तो यहां की मीडिया पर भी ये जिम्मेदारी बनती है कि वो घटना…दुर्घटना और संवेदनशील वर्ग से जुड़ी घटनाओं के बीच एक एक सीमा रेखा खींच कर रखे ताकि सही और निपक्ष खबर लोगों तक पहुंच सके।

बेजुबानों की पैरवी

छत्तीसगढ़ में कंरट से जंगली हाथियों की मौत के मामले में आज हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। हाथियों की मौत के मामले में हाईकोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका की सुनवाई करेगा। इन बेजुबानों की पैरवी के लिए हाईकोर्ट की संवेदनशीलता का स्वागत किया जाना चाहिए।

इस जनहित याचिका में राज्य के ऊर्जा सचिव, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत पारेषण कंपनी के प्रबंध निदेशक और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को पक्षकार बनाया गया है। असल में बीते 10 सालों में 100 से ज्यादा हाथी इसी तरह बेमौत मारे जा चुके हैं और इन मौतों के लिए जिम्मेदार विभाग अपनी जवाबदेही दूसरे के कंधों पर डालकर अपना बचाव करते रहे।

ऐसा नहीं है कि कंरट से जंगली हाथियों की मौत का मामला पहली बार कोर्ट के सामने पहुंचा है इससे पहले अक्टूबर महीने में हाईकोर्ट ने एक एनजीओ की याचिका का निराकरण किया था। जिसमें इसमें वन विभाग और बिजली विभाग दोनों ने ही शपथ-पत्र दिया है। जिसमें बिजली विभाग तारों ऊंचाई बढ़ाने, बिजली पोल पर भी 3 से 4 फीट तक चौड़ी कांटेदार तार लगाने और तारों को कवर्ड कंडक्टर में बदले जाने की बात कही गई थी।

इन विभागों की पहल कोई रंग ला पाती इससे पहले घरघोड़ा इलाके में तीन हाथियों की करंट से मौत पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने इस घटना को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया। अब बेजुबानों की पैरवी करने के लिए कोर्ट ने खुद पहल की है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि देर से सही पर अब जंगली हा​थियों को उनकी सुरक्षित रहवास में आजादी से जीने का हक मिल सकेगा।

 

    ✍️ अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा

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