कटाक्ष

Farmer standing in the market : खोखा, खाकी और खौफ ,दो चम्मच वोदका, काम मेरा रोज का..पुरुषोत्तम का परमार्थ विपक्ष पर भारी,ओपी पर किसकी नजर…

🔶 खाकी खोखा और खौफ..

खाकी का खोखा और खौफ में बहुत नजदीक का नाता है। चुनाव क्या आया खाकी के खौफ की बल्ले बल्ले हो गई है। चारों तरफ संडे से मंडे डंडे ही डंडे चलते नजर आ रहे हैं। पुलिस के डंडे के जोर से छोटे व्यवसाई पस्त हैं वहीं हॉट बाजारों में सोना चांदी बेचने वाले सुनार तो सबसे ज्यादा त्रस्त हैं।

बात अगर पुलिस चेकिंग की हो तो सिर्फ व्यापारियों का ही समान जब्त हुआ है। जिन व्यापारियों की सामग्री जब्त हुई है उनकी दीवाली काली हो गई है। हां ये बात अलग है चेकिंग अभियान से कुछ खाकी के खिलाड़ी वर्दी रौंब जमाकर खोखा की तलाश कर रहे हैं।

चर्चा तो कुसमुण्डा पुलिस के जब्त टू व्हीलर की भी जमकर है। पुलिस को मिले लावारिश वाहनों के समाचारों पर अचार के चटखारे मारते मतदाताओं का मन भी डोल गया है कि “काश! कोई वाहन हमें भी लावारिस हालत में मिल जाता है तो दीवाली के साथ छठ भी मना लेते।”

उनकी यह सोच भी सही है क्योंकि कुसमुण्डा पुलिस ने जो कहानी गढ़ी है वह आम आदमी छोड़िए डिपार्टमेंट को भी नहीं पच रही। खैर पब्लिक की बातों से पुलिस का कुछ बिगाड़ तो होगा नहीं, आचार संहिता है तो उसका लाभ खाकी के खिलाड़ी नही उठाएंगे तो थाना चलेगा कैसे..!

🔶दो चम्मच वोदका, काम मेरा रोज का..

रैपर हनी सिंग का रैप सॉन्ग “चार बोतल वोदका काम मेरा रोज का..” जबरदस्त हिट हुआ था। इस चुनाव भाजपा के एक पार्षद इसी रैप सॉन्ग को हिट कर रहे हैं। हालांकि वे इसे उलटकर दो चम्मच वोदका काम मेरा रोज का कर दिए हैं। दरअसल हाई प्रोफाइल सोसायटी में ड्रिंक स्टेटस मेंटेन के लिए किया जाता है। सो नेता जी का हाई सोसाइटी में उठाना बैठना है तो बड़े लोगों के साथ कंपनी देने के लिए सिर्फ दो चम्मच ही पीते हैं। जिससे सेहत भी बनी रहे और पीने वाले मेजॉरिटी का साथ भी..!

वैसे तो नेता जी है बड़े सिस्टमेटिक, हर किसी से तोल मोल कर बात करते हैं और बात तो फिजूल की करते भी नहीं। उनके हाव भाव पार्षद कम व्यापारी जैसे अधिक लगते हैं। वैसे तो चुनावी दौर में नेताओं के एक से एक बढ़कर किस्से उनके अपने खास समर्थक गाहें बागहे पब्लिक को बताने लगे हैं।

खबरीलाल की माने तो सौम्य सरल दिखने वाले भाजपा पार्षद की अपनी दर्द भरी कहानी है। तभी तो दो चम्मच पीने के बाद कहते हैं हम पीते नहीं हमें पिलाई गई है..! वैसे ठीक भी है कम पीना सेहत और समाज दोनों के लिए लाभकारी है। कहा भी गया ” वन पैक मेडिसिन, टू पैक हैल्थ , थ्री पैक हैल्थ डाउन और फोर पैक नाउंसेन्स ” तो नेता सबको गुनते हुए सिर्फ अपनी सुनते हैं और मात्र 2 चम्मच ही पीते हैं।

🔶कटघोरा: पुरुषोत्तम का परमार्थ विपक्ष पर भारी

अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से कटघोरा सीट पर कंवर परिवार का प्रभाव रहा है। बोधराम कंवर यहां से लगातार जीत हासिल करते रहे हैं। पुराने दौर में राजा बनने के लिए राजकुमार को अपनी योग्यता सिद्व करनी पड़ती थी वैसे ही पिछले चुनाव में भाजपा के संसदीय सचिव को हारकर पुरुषोत्तम ने पुरुषार्थ और परमार्थ को साकार कर दिया।

साढ़े तीन दशक से कटघोरा विधानसभा से जीत हासिल करने वाले पूर्व विधायक बोधराम की विरासत अब उनके पुत्र पुरुषोत्तम कंवर संभाल रहे हैं। पहली पारी उन्होंने पूरी भी कर ली और अब वे यहीं से दूसरी बार जीत की उम्मीद लिए जोर आजमाइश में जुट गए हैं। उच्च शिक्षा और सौम्य स्वभाव ही उन्हें राजनेताओं से अलग बनाती है। अब बात अगर पुराने दौर की करें तो आदिवासी बाहुल्य कटघोरा सीट पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा हैं। इस सीट पर सबसे ज्यादा 6 बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले आदिवासी नेता बोधराम कंवर के नाम है।

हालांकि एक बार भाजपा ने इस मिथक को तोड़ा जब लखन ने इस लक्ष्मण रेखा को लांघकर विधानसभा में पग रखा। लेकिन, 2018 के चुनाव में कांग्रेस के अजेय योद्धा के पुत्र ने भाजपा को हरा कर सिद्ध कर दिया कि इस सीट पर अभी भी उनके परिवार का ही प्रभाव है। अब पुरुषोत्तम जनता की आवाज बनने फिर मैदान में हैं उन्हें समाज के अलावा भू विस्थापित और किसान हाथों हाथ ले रहे हैं।

🔶ओपी चौधरी पर किसकी नजर

कलेक्टरी की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए पूर्व ब्यूरोक्रेट ओपी चौधरी को राजनीति में दोस्त कम दुश्मन ज्यादा मिले हैं। उनके रास्ते में कांंटे बिछाने की लिस्ट लंबी होती जा रही है। चौधरी इस वक्त रायगढ़ में बीजेपी के उम्मीदवार हैं। जहां उनके विरोधियों की चुनौती से ज्यादा अपनों से जूझना पड़ रहा है।

चौधरी की राजनीति में एंट्री पूर्व सीएम रमनसिंह ने कराई थी। उन्हें रमन का करीबी भी माना जाता है… तभी से पार्टी का एक खेमा उनसे दूरी बनाने लगा था। मगर चुनाव से पहले पार्टी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर की टीम में जिस तरह से उनका कद बढ़ा उससे रमन विरोधी खेमा चौकन्ना हो गया है। रायगढ़ में चौधरी को कांग्रेस के अलावा इसी खेमा की चुनौती से जूझना पड़ रहा है।

खबरी लाल की माने तो रायगढ़ के एक बागी उम्मीदवार को इसी खेमा से फंडिंग भी की जा रही है। स्थानीय स्तर से लेकर इसके तार रायपुर तक से जुड़े हुए हैं। ऐसे में ओपी चौधरी को एक साथ दो मोर्चे पर जूझना पड़ रहा है। हालांकि युवाओं और आम लोगों को समर्थन चौधरी के साथ नजर आ रहा है मगर अपनों से मिलने वाली चुनौती भारी पड़ रही है। बीजेपी आलाकमान को भी देखना होगा कि ये ​तरह किसके इशारे पर हो रहा है। नहीं तो निपटने निपटाने की होड़ में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

🔶किसान खड़ा बाजार में…..

पिछले दो दिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से चुनाव घोषणा पत्र जारी हुए हैं और उनमें किसानों के लिए जो वादे किए गए हैं उससे सीधेसादे छत्तीगढ़िया किसान की हालत संत कबीर जैसी हो गई है। इसे ऐसे समझे कबीर खड़ा बाजार में मांगी सबकी खैर, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर…। सीधी बात कहे तो सीधेसादे छत्तीसगढ़िया किसान भी कबीर के तरह निश्चल और भोला है मगर राजनीति करने वाले उसे अन्नदाता की जगह भाग्यविधाता बनाने में तुले हुए हैं।

समर्थन मूल्य से ज्यादा पर धान खरीदी का वादा कर उसके वोट की कीमत बढ़ाई जा रही है। सभी राजनीतिक दल एक से बढ़कर ​एक बोली लगा रहे हैं। अब कोई इन्हें कैसे समझाए कि किसान और कबीर एक दूसरे के काफी करीब है। वे निश्चल और भोले जरूर हैं मगर नेतागिरी की दुकान चलाने वाले दलों की चतुराई को अच्छी तरह से समझते हैं।

जब कबीर और किसान की बात हो रही है तो कबीर के एक और दोहे पर गौर फरमाए….गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय .. बलिहारी गुरु आप की, गोविंद दियौ बताय। ये दोहा जब किसान के संदर्भ में लागू होता है तो यहां किसान इस गोविंद की तुलना छलिया नेता से करते हैं.. जो खुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने पर तुले हैं। लेकिन बलिहारी गुरु आप की यानि किसान इस मामले में नेताओं के गुरु साबित हो रहे हैं अब वो ये समझ चुके हैं कि वो केवल अन्नदाता नहीं रहे बल्कि राजनीति की दुकान चलाने वालों के भाग्य विधाता भी हैं। अब गुरु का आशीर्वाद किसे मिलता है ये 3 दिसंबर को पता चलेगा…तब तक इंतजार कीजिए।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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