कटाक्ष

Cheap water expensive hobby :नजरें मिलते ही नजरों से,नई बोतल में पुरानी शराब..चुनावी साल में रामधुन,अंडा का फंडा और केला में खेला…

नजरें मिलते ही नजरों से…

 

फ़िल्म पुष्पा का गाना “नज़रें मिलते ही नज़रों से नज़रों को चुराये,कैसी ये हया तेरी जो तू पलकों को झुकाये” तो हिट हुआ ही अब गाना सीएम के चिर्रा भेंट मुलाकात के बाद फिर से लोगों की जुबां पर है।

हुआ यूं कि सरकार जब चिर्रा भेंट मुलाकात कार्यक्रम के लिए पहुंचे हुए तो स्वागत के लिए पलकें बिछाए बैठे लोगों ने फूल माला से स्वागत करते हुए स्वागत-अभिनंदन किया। इन सबके के बीच जिले के दबंग लीडर नहीं, निडर अफसर ने साहब से अंखियों के झरोखों से वो संवाद किया कि वो राजनीतिक लॉबी में चर्चा का विषय बन गया है।

खबरीलाल की माने तो अफसर को देख सीएम की मंद-मंद मुस्कान बिखेरकर एसपी पर विश्वास जताता दिया। जिस अंदाज में साहब कप्तानी पारी खेल रहे हैं और बिगड़ैल नवाबों की नाक में नकेल कसा जा रहा है उससे उनके काम करने का तरीका और तेवर स्पष्ट है कि “कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे”।

ये बात अलग है जिस अंदाज में वे बैटिंग करते हैं उस अंदाज में अभी तक कलाई नहीं खोली है। लेकिन, उनके चौके छक्कों की बरसात वाली पारी का पब्लिक को बेसब्री से इंतजार है। वैसे शहर की हवा बिगाड़ने में लगे लोगों के लिए सीएम का कप्तान को देख मुस्कराहट दिल जलाने के लिए काफी था।

कहा तो यह भी जा रहा कि ठीक भेंट मुलाकात के बाद हुए आईपीएस के ट्रांसफर लिस्ट में सरकार ने कप्तान पर भरोसा जताया है। मतलब अब साफ हो गया है कि साहब के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव होगा। वैसे चुनाव की सरगर्मी शुरू हो गई है और चुनाव लड़ने वाले लीडर भी मैदान में उतर चुके हैं। लेकिन, डर सबको लग रहा है क्योंकि डर सबको लगता है और गला सबका सूखता है..! सो पब्लिक अब डराने वालों के चेहरे पर डर देखने का बेसब्री से इंतजार कर रही है…!

 

नई बोतल में पुरानी शराब

नगर निगम के अधिकारी और सत्ता पक्ष के कुछ व्यापारी नई बोतल में पुरानी शराब भरने में लगे हैं। बात शहर सौंदर्यीकरण के नाम पर जनता की पैसे से बन रहह सड़क वॉल गार्डन की है। सौंदर्यीकरण के नाम पर पुराने लोहे और वॉल को फिर पेंट चढ़ाकर नया लुक देकर नए तरीके से बंटाधार करते हुए जनता को ठगा जा रहा है।

सूत्र बताते हैं निगम के सौंदर्यीकरण का ये खेल बहुत पुराना है, जिसमें निगम के हर नेता और अभिनेता भ्रष्टाचार में डुबकी लगाकर तर चुके हैं। इससे पहले भी शहर की सूरत बदलने औऱ आकर्षक वाल पेंटिंग के नाम पर लगभग 86 लाख फूंका जा चुका है। उसके बाद सड़क के खंभों पर स्ट्रीट लाइट में झिलमिल लाइट लगाने के नाम पर भी डीएमएफ का बड़ा खेल खेला गया।

अब सीएसईबी चौक से शारदा विहार रेलवे फाटक तक सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। हाई प्रोफाइल इस आर्टिफिशियल वर्क का दारोमदार एक कैमिकल इंजीनियर पर है जो कैमिकल में डिग्री हासिल कर गार्डनिंग की नापजोख कर रहे हैं। वैसे तो ये साहब विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं जो वाटर सप्लाई से लेकर हर कार्य मे हाथ आजमा चुके हैं।

तभी तो निगम प्रशासन ने ऐसे इंजीनियर पर भरोसा जताया गया जो सिविल के बारे जानता न हो। अब बात आर्टिफिशियल वर्क में एसडीओ की करें तो वो भी किसी से कम नही हैं। क्योंकि, साहब इलेक्ट्रिकल डिग्री लेकर सिविल कार्य का सत्यापन कर रहे हैं और फ़ाइनल टच यानी बिल पर दस्तखत सिविल डिग्री वाले साहब कर रहे हैं। मतलब यह कि कैमिकल इंजीनियर की देखरेख इलेक्ट्रिकल का सील और सिविल वाले साहब निकाल रहे बिल..!

चुनावी साल में रामधुन

कोरबा नगरी में इस वक्त हर ओर रामधुन बज रही है। विधानसभा चुनाव से पहले हर नेता मंदिर मस्जिद में सजदा करने पहुंचने लगा है। अब शहर की ही बात कर लें कल मांदर की थाप पर यहां आबकारी मंत्री कवासी लखमा थिरके गए और नंदकुमार साय भी ढोल बजाते दिखे, यानि चुनाव का पहला चरण ठीकठाक निपट गया। अब अगले महीने यहां शहर के विधायक और प्रदेश के राजस्व मंत्री राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा करा रहे हैं।

यानि चुनाव से पहले शहर में रामराज की स्थापना करने के लिए राजनीति के पंडितों अपना अनुष्ठान शुरु कर दिया है। शहर में श्रीराम कथा के लिए जया किशोरी आ रही हैं। 12 जून को होने वाले राम कथा के लिए अभी से कोरबा को सजाया जा रहा है । शहर में आयोजन की भव्यता को देखते चौक में प्रोजेक्टर लगाया जाएगा। तैयारी ऐसी है कि कलश यात्रा के लिए शहर के 10 हजार महिलाओं का कलश यात्रा में शामिल होने की बात कही जा रही है। मतलब चुनावी तैयारी है और राम का साथ होतो राजगद्दी भी मिल जाएगी। जो भी हो चलो इसी बहाने शहर में राम कथा तो होगी….वर्ना अब तक तो….।

अंडा का फंडा और केला में खेला

अंडा का फंडा और केला में खेला फिर होने वाला है। विवादों में रहने के बाद भी डीएमएफ से नौनिहालों के आड़ पर फिर से बड़ा खेला करने की पटकथा लिखी दी गई है। दरअसल राजनीतिक गलियारों में अरसे पहले एक लाइन मशहूर हुआ था सरकार गांवों के लिए दस रुपए भेजती है लेकिन, राजधानी से चलकर गांव आते आते वो एक रुपए में तब्दील हो जाता है।

कुछ इसी तरह की दशा महिला एवं बाल विकास विभाग में देखी जा रही है। जहां कुपोषण दूर करने के लिए लडडू चना मुर्रा गजक अंडा और जाने क्या क्या पोषण सामग्री के लिए राशि तो जारी की जाती है लेकिन, आदिवासी जिला के बच्चों की दशा ज्यो की त्यों बनी हुई है।

कुपोषण के लिए दी जाने वाली खाद्य सामग्रियां रिहायशी इलाकों में ऑफिसर कालोनी और श्रमिक बस्ती के लिए बराबर आती है। अफसरों के बच्चे तो आंगनबाड़ी जाने से दूर रहे फिर उनका चना मुर्रा और अंडा कहाँ जाता है ये तो विभाग के अफसर ही जाने, रही बात श्रमिक बस्ती के बच्चों के लिए तो यहाँ पोषण आहार के लिए जारी की जाने वाले 10 रुपए उनके तक एक रुपए में तब्दील हो जाता है फिर भला कैसे सुपोषित हो। बच्चे सुपोषित हो न हो लेकिन अधिकारी जरूर सुपोषित हो रहे हैं।

 सस्ता पानी महंगे शौक

छत्तीसगढ़ अपने कई योजनाओं को लेकर मीडिया के सुर्खियों में रहता आया है। मगर केवल योजना के लिए ही नहीं बल्कि यहां के अफसर भी मीडिया में सुर्खियां बटोरने में किसी से पीछे नहीं हैं। खासकर बस्तर में पोस्टेड अफसरों के निराले शान की चर्चा अक्सर देश में होती रही है।

इससे पहले बस्तर में 9 मई 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जगदलपुर और दंतेवाड़ा गए थे त​ब दो आईएएस अफसर अमित कटारिया और केसी देवसेनापति

काला चश्मा पहनकर उनका स्वागत करने पहुंचे थे। तब अफसरों की पोशाक को लेकर खासा बवाल मचा था। लेकिन हुआ क्या फाइल चली, नोटिस जारी हुआ और नतीजा आज तक सामने नहीं आया।

अब कांकेर में पोस्टेड फूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास अपने निराले शान को लेकर फिर सुर्खियों में आ गए हैं। उनका महंगा मोबाइल फोन डेम में क्या गिरा जनाब ने डेम का तकरीबन 21 लाख लीटर पानी मोबाइल की तलाश में बहा दिया। सोशल मीडिया पर इस फूड इंस्पेक्टर के कमर में लटकी महंगी विदेशी पिस्टल वाली तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है।

हालांकि कलेक्टर ने फौरी एक्शन लेकर फूड इंस्पेक्टर को ससपेंशन लेटर इश्यू कर दिया, मगर महंगे शौक के लिए भरी गर्मी हजारों लीटर पानी बहा कर बस्तर के अफसर एक बार फिर सुर्खियों में छा गए हैं।

मगर क्या करें शौक तो शौक है जनाब… शौक में तो लोग ताजमहल बना डालते हैं।  इसने तो महज सस्ता पानी ही बहाया है। गौर करें तो प्रदेश में कई अफसरों के महंगे बंगले भी किसी ताजमहल से कम नहीं हैं। मगर इनकी चर्चा कम ही होती है।

    ✍️अनिल द्विवेदी , ईश्वर चन्द्रा

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