कटाक्ष

Questions and Answers:पीपी मॉडल की तर्ज पर ,मलाई में माल..राजस्व का नशा शराब के नशे पर ,जिमी कांदा और…

पीपी मॉडल की तर्ज पर.. जिले में हो रहें हैं ये अपराध

पीपी मॉडल यानि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत संचालित होने वाले काम की तर्ज पर पूरे जिले में खनिज तस्करी का काम बिना किसी रोकटोक के चल रहा है। हालांकि ये वो पीपी मॉडल नही है जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी में एक सरकारी एजेंसी और एक निजी क्षेत्र की कंपनी साथ काम करते है।

ये नया टाइप का पीपी मॉडल है। जिसमें स्थानीय पब्लिक,पुलिस और माफिया की पाटर्नरशिप है। इस नए पीपी मॉडल में खनिज माफिया खनिज तस्करी कर खनिज संपदा का भरपूर दोहन करते है औी उसको संरक्षण खाकी का रहता है। आपस में इनका पर्सेंटेज में लाभ फिक्स है। पार्टनरशिप में कारोबार होने की वजह से बेख़ौफ़ होकर काले हीरे और सफ़ेद सोने की तस्करी की जा रही है। तभी तो जिले के अंतिम छोर वाले थाने के अंतर्गत चल रहे काले हीरे की तस्करी पर कार्रवाई के लिए प्रशासनिक टीम को फारेस्ट का मुंह ताकना पड़ा। जिले में चल रहे खनिज तस्करी पर ये कहावत हाथी के दांत खाने के और व दिखाने के और है!फिट बैठती है। हां ये बात अलग है कि माइनिंग के टास्क फोर्स पर भी सेटिंग के आरोप लग रहे है । अब बात अगर गौण खनिज और काला हीरा दोनों की चोरी का करें तो दोनों में वन मार्गो का अहम स्थान है।इसके बाद भी वन विभाग से एक भी कार्रवाई दर्ज न होना अवैध व्यापार के प्रश्रय को दर्शाता है। वैसे इस बात की भी चर्चा जोरो पर है कि काला हीरा तो नगर वधु है जिसका घूंघट माइनिंग, पुलिस और वन अफसर सभी मिलकर कभी भी उठा लेते है। हां ये बात अलग है कि घूंघट अब रात के अंधेरे में ही नहीं दिन के उजाले में भी उठने लगा है।

मलाई में माल.. “..बी” रेखा इंजीनियर के नाम…

 

85 लाख का काम केमिकल इंजीनियर के नाम..इन दिनों शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल है कि आखिर सिविल का काम कैमिकल इंजीनियर से कैसे? पर क्या करें यहां। सैय्या भय कोतवाल तो डर काहे का.. वाली कहावत चरितार्थ है।

दरअसल काम सड़क किनारे सौंदर्यीकरण का है। साकेत के सामने 85 लाख से चल रहे गार्डन निर्माण कार्य के लिए निगम में एक भी काबिल सिविल इंजीनियर नहीं है जिसके कारण इतनी बड़ी राशि के काम को एक कैमिकल इंजीनियर के सुपरविजन में करा रहे हैं।

कहा तो यह भी जा रहा है कि साहब इससे पहले 250 करोड़ रुपए के अमृत मिशन के कामों में भी मलाई काट चुके हैं। वैसे चर्चा तो इस बात की भी है कि सरकारी नौकरी और बड़े बड़े कामो के प्रभारी होने के बाद भी साहब गरीबी रेखा की श्रेणी में आते हैं।

तभी तो साहब में अपने बच्चों का एडमिशन केंद्रीय विद्यालय में गरीबी रेखा कोटे में कराया है। खैर ये तो हुई साहब की प्रतिभा जो चारों तरफ से मलाई काटने के भी गरीबी में दिन काट रहे हैं! अब बात 85 लाख के सौंदर्यीकरण की कर लेते हैं जो इंजीनियर सिर्फ कैमिकल के बारे में जानता हो उसे सिविल का काम थमा कर अधिकारी भी बड़ा खेला करने का स्क्रिप्ट रच रहे हैं।

रील और रियल में अलग अलग फिल्में..राजस्व का नशा शराब के नशे पर भारी…

मुझको यारों माफ करना मैं नशे में हूं…! नशा भी विचित्र अहसास है जिसकी शरण में जाकर लोग तरह तरह की सुविधाएं पाने चाहते हैं। कोई दुख से छुटकारा तो कोई तनहाई से दूर। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो तनाव से मुक्ति पाने के लिए इसका सहारा लेते हैं।

हम बात कर रहे है मयखाने की जहाँ दुकान संचालन की रिल और रियल सिस्टम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। कहने को तो सरकार ने दस बजे दिन में शराब में दुकान शुरु कर रात को दस बजे बंद करने का नियम बना दिया है। यह रील लाइफ है।

लेकिन, रियल लाइफ यह है आपको शराब चौबीस घंटे उपलब्ध हो जाएंगे। बस आपकी खोजी प्रवृत्ति सूंघने की होनी चहिए। रात में शराब का काउंटर बंद होते ही आसपास ठेले गुमटियों में काउंटर शुरू हो जाते हैं। आबकारी के साहब को तो अधिक बिक्री का राजस्व दिखाकर सरकार से अपनी पीठ थपथपावाना है।

शराब की लत से चाहे घर उजड़े या कोई बर्बाद हो उससे उन्हें कोई लेना देना नहीं। पीने वाले को तो शराब का नशा है लेकिन, साहब को राजस्व का नशा चढ़ा हुआ है । कहा भी गया है “कनक कनक सौ गुनी मादकता अधिकाई या खाए बैराये नर वा पाए बहोराइए”…!

जिमी कांदा और लाल भाजी

विधानसभा चुनाव में अभी करीब 8 महीने बाकी है। मगर, सियासी हलके में खुद छत्तीसगढ़िया साबित करने की होड़ मचनी शुरु हो गई है। जिमी कांदा और लाल भाजी को लेकर सूबे के दो बड़े नेताओं में जुबानी जंग चर्चा में है। बात तब शुरु हुई पूर्व सीएम रमन सिंह के उस ट्वीट से जिसमें उन्होंने गांव में रात्रि प्रवास करते हुए किसान के घर जिमी कांदा और लाल भाजी के स्वाद का जिक्र किया था। ​

लेकिन, इस पर बात वर्तमान सीएम भूपेश लाल भाजी हो गए। उन्होंने तपाक से कह ​दिया रमन सिंह की ससुराल मध्यप्रदेश में है इसी वजह से भाभी जी को छत्तीसगढिया व्यंजन बनाना नहीं आता होगा, इसलिए अब बाहर जाकर घूम-घूम कर छत्तीसगढ़िया व्यंजन खा रहे हैं। यानि भूपेश ने इशारे इशारे में कह ही दिया कि जो कहना चाहते थे।

सीएम के कटाक्ष के बाद रमन सिंह ने उन पर पलटवार करने में देरी नहीं की, पूर्व सीएम ने भी इशारे इशारे में कहा, भूपेश को गलतफहमी है कि अकेले वे ही जिमी कांदा और लाल भाजी खाते हैं। बहरहाल अभी तो प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लगभग साल भर शेष हैं। अभी से खान-पान तक पहुंच गई सियासी तल्खी आगे कहां तक पहुंचने वाली है… बस देखते जाइए। यानि छत्तीसगढ़िया पेटेंट होने की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।

सवाल जवाब और आरक्षण

छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण का मुद्दा सुलझने की बजाए उलझता जा रहा है। राजभवन और सरकार में सवाल जवाब चल रहा है। जिसकी वजह से सरकारी पदों पर होने वाली भर्ती लटक गई। शै​क्षणिक संस्थान में प्रवेश के लिए मिलने वाले आरक्षण कोटा पर भी ब्रेक लग गया है।

सवाल जवाब का यही सिलसिला ज्यादा लंबा चला तो मामला और भी लंबा खिंच सकता है। जो भी अगर आरक्षण लागू करने में सरकार की नीयत साफ हो और संवैधानिक व्यवस्थाओं का सही से पालन किया गया तो राजभवन को भी विधेयक पर हस्ताक्षर करने में देरी नहीं करनी चाहिए। राज्यपाल की ओर जो जवाब सरकार से मांगे गए थे उसके जवाब राजभवन को भेज दिए गए हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण का मुद्दा जल्द सुलझ जाएगा।

     ✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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