कटाक्ष
दौरे पर आउंगा तो . ये हंगामा क्यूँ बरपा है भाई…जिसे चाहें पकड़ लेते हैं ,एचएम की पोस्टिंग में सी आर सी ,महाराज के पौं बारह…
दौरे पर आउंगा तो ……
राजधानी में दो दिन चले कलेक्टर्स कांफ्रेंस में सभी अफसर छत्तीसगढि़या ओलंपिक की मोटी वजनी फाइल लेकर पहुंचे थे, कुछ अफसर तो बाकायदा सोशल मीडिया में अपने गुल्ली डंडा वाले शाट्स के फोटो एलबम भी लेकर पहुंचे थे। अपना नंबर बढ़ाने के लिए अफसरों को लग रहा था कि यहीं मौका है जब वे सीएम के सामने ये बता सकें कि वो भी अच्छे खिलाड़ी हैं। मौका मिलने पर वे भी गुल्ली उछाल सकते हैं।
मगर मिस्टर खिलाड़ी सीएम भूपेश बघेल ने डंंडा ऐसे घुमाया कि कई कलेक्टरों के हाथ से गुल्ली छुट गई। सीएम गुल्ली डंंडा की जगह सड़क सड़क खेलने लगे। उन अफसरों की हालत पतली हो गई, जिन्हें सीएम ने अपने पिछले टॉस्क में अपने अपने जिलों की खस्ताहाल सड़क को सुधारने को कहा था। सीएम ने दो टूक कहा दिया कि अबकी बार जब मैं दौरे पर आउंगा तो सड़क की शिकायत नहीं मिलनी चाहिए। यानि कुछ तो करना पड़ेगा। अब जिलों के कलेक्टर्स उन्हीं खस्ताहाल सड़क से लौट रहे हैं। इन खस्ताहाल सड़कों पर छत्तीसगढि़या ओलंपिक की मोटी वजनी फाइल लेकर चलने में कलेक्टरों को भी पसीना छूट रहा है। क्या पता कब सीएम का दौरा हो जाएं और उनकी गुल्ली उड़ जाए।
ये हंगामा क्यूँ बरपा है भाई…
अकबर इलाहाबादी की ये लाइन “ये हंगामा क्यूँ बरपा है भाई…” इन दिनों नेता औऱ प्रशासनिक अधिकारियों पर फीट बैठ रहा है। दोनों के द्वंदयुद्ध से शहर में हंगामा बरपा है। दरअसल मामला अगारखार में खेले गए छत्तीसगढ़हिया ओलम्पिक गेम का हैं। खेल को ले के जो खेला हुआ वो सुर्खियां बटोर रहा है।
हुआ यूं कि एक नेताजी कार्यक्रम में पंहुचे तो खेल स्थल का नजारा देख बिगड़ने लगे। हद तो तब हो गई जब नेताजी जिले के मुखिया को ही भला बुरा कहने लगे। नेताजी का तेवर देख अधिकारी भी भौचक रह गए। बात जब बर्दाश्त से बाहर हुई तो जिला अधिकारी भी कहां चुप रहने वाले … नेताजी की बोलती बंद करते हुए कार्यक्रम से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
मैदान में खेले गए खेल की बात जब आम हुई तो नेताजी का ही उल्टे किरकिरी होने लगी और लोग कहने लगे हैं बमुश्किल तो प्रशासन और राजनेताओं के द्वंद युद्ध का मामला शांत हुआ था और अब नेताजी का खेल मैदान में लड़ाई। मतलब आ बैल मुझे मार वाली बात हो गई हैं! खैर पब्लिक को इस बात का बेसब्री से इन्तजार है की अगली चाल कौन चलेगा और किसकी होगी शह.. किसकी होगी मात..!!
जिसे चाहें पकड़ लेते हैं … जिसे चाहें रगड़ देते…
जिले के एक चौकी प्रभारी पर महान कवि अशोक चक्रधर की कविता सटीक बैठ रही है। कविता के कुछ अंश हैं – “जिसे चाहें पकड़ लेते हैं, जिसे चाहें रगड़ देते हैं…! ” सही भी है। वायरल वीडियो और साहब की सफाई दोनों में जमीन आसमान का अंतर हैं… और तो और साहब के एक पुराने प्रकरण में चल रही चर्चा पर गौर करें तो कहा जा रहा है साहब की सिर्फ एक डिमांड को पूरा न करने वाले एक कबाड़ कारोबारी को सलाखों के पीछे जाना पड़ा।
वैसे तो एक व्यापारी से उगाही या यूं कहें जबरन कलेक्शन करने की वजह से मामला कोर्ट में भी हैं। उसके बाद भी साहब बदनाम करने की साजिश बता रहे हैं। खैर खाकी का रौब ही ऐसा है अच्छे अच्छों की…! वैसे कहा तो यह भी जा रहा है कि कुछ पुराने मामलों को खंगाला जाए तो अवैध कारोबारियों से तार जुड़ सकता है। अब खंगालने का रिस्क कौन ले..? क्यूंकि डंडे का जोर है और डंडा कठोर है…!
एचएम की पोस्टिंग में सीआरसी का रोल…
जिले में हेडमास्टर की प्रमोशन और पोस्टिंग के लिए सीआरसी अहम रोल में है। जिले के जाबांज सीआरसी संभावित हेडमास्टरों से संपर्क साधने के साथ आधा पेटी की डिमांड कर रहे हैं। हां ये बात अलग है कि ये चंदा का धंधा उच्च अधिकारियों के निर्देशन में फल फूल रहा हैं।
प्रशासनिक गलियारों में हो रही चर्चा की माने तो चंदा के इस खेल में कोरबा खण्ड नम्बर वन पर हैं। हालांकि शिक्षा विभाग में बैठे तिकड़ी के शह पर पोस्टिंग का ये खेल पुराना हैं क्योंकि विभाग के पंडितों की माने तो ये सब तो हाल में हुए पोस्टिंग में भी खूब चला और चंदा बटोरा गया। ट्रांसफर के ये खेल में हालात यह भी है कई गुरुजी का धन भी गया और पोस्टिंग भी नहीं मिली! मतलब माया मिला न राम वाली स्थित हो गई।
खैर विभाग के मुखिया तो बड़े शांत मिजाज के है और वे संतोष परम सुख पर विश्वास भी रखते हैं, पर उनके इर्द गिर्द इतने चापलूसों की मंडली हैं कि वे न चाहते हुए भी ट्रांसफर के हवन में हाथ जला रहें हैं। वैसे हवा तो यह भी उड़ रही है साहब अब नए जिले में कप्तानी पारी खेलने के मूड में हैं।
महाराज के पौं बारह…
जिले के एक महाराज के पौं बारह हो गए हैं। जब स्वच्छता के लिए तमगा मिलेगा और पीठ थपथया जाएगा तो उनका हवा में उड़ाना भी वाजिब है। वैसे तो शहर में महाराज कई बड़े काम कर गए, जिसको लेकर खूब हल्ला भी हुआ, पर महाराज का मैनेजमेंट से हो हल्ला करने वालों पर दांव भारी पड़ गया।
वैसे तो शहर में लगी लाइट जरूर स्वीट सिटी की फिलिंग कराती है पर महज 4 महीने में ही इलेक्ट्रिक पोल पर लगे झालर जो खराब हो गए हैं वो भ्रष्टाचार को भी समझाती हैं। चौराहे पर हो रही चर्चा पर गौर करें तो स्वच्छ छवि होना और स्वच्छ नगर होना दोनों में बहुत अंतर है, लेकिन दोनों के स्वच्छ होने का गुमान लेकर हवा में उड़ना भी कहीं हवाई फायर ना हो जाए।
बहरहाल हवाई फायर करने से किसी को निशाना नहीं लगता, लेकिन इससे निशाने बाज सरकारी निशाने में आ सकते हैं।
✍️ अनिल द्विवेदी, ईश्वर चंद्रा