
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब सिर्फ सियासी जंग नहीं रहा, बल्कि इस बार इसमें सिनेमा और संगीत की चमक भी घुल गई है। पोस्टरों पर नेताओं के साथ फिल्मी चेहरों की मौजूदगी बता रही है कि इस बार राजनीति में स्टारडम की पॉलिटिक्स ने एंट्री ले ली है।
एक तरफ भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव छपरा से आरजेडी के टिकट पर मैदान में हैं, तो दूसरी ओर लोकगायिका मैथिली ठाकुर ने मधुबनी जिले की अलीनगर सीट से पर्चा भरा है। यही है इस चुनाव की नई कहानी — “मनोरंजन से विधानसभा तक: स्टारडम का लोकतंत्र”।
खेसारी लाल यादव: भीड़ से लेकर भरोसे तक
शुक्रवार को जब खेसारी लाल यादव ने छपरा में नामांकन भरा, तो माहौल पूरी तरह फिल्मी हो गया। सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी, समर्थक झूम उठे और पूरा शहर “खेसारी भइया ज़िंदाबाद” के नारों से गूंज उठा।
नामांकन के बाद खेसारी ने कहा,
“संगीत को साइड नहीं करूंगा, बस थोड़ा कम करूंगा। छपरा की समस्याएं बहुत हैं, इस बार की बारिश में तो डीएम ऑफिस तक पानी घुस गया था।”
पहले वे अपनी पत्नी चंदा देवी को टिकट दिलाने के पक्ष में थे, लेकिन आख़िरकार खुद चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। आरजेडी की सदस्यता लेकर उन्होंने तेजस्वी यादव की “बदलाव की राजनीति” पर भरोसा जताया।
खेसारी का संदेश साफ है
“अगर एक कलाकार मेहनत से नाम कमा सकता है, तो जनता की सेवा भी ईमानदारी से कर सकता है।”
उनकी जड़ों से जुड़ी भाषा, श्रमिक वर्ग से इमोशनल कनेक्शन, और ग्राउंड लेवल अपील उन्हें बाकी उम्मीदवारों से अलग बनाते हैं।
मैथिली ठाकुर: लोकधुनों से लेकर लोकसभा की राह तक
दूसरी ओर, मधुबनी की सियासत में भी सुरों की गूंज सुनाई दे रही है। लोकगायिका मैथिली ठाकुर, जिन्होंने अपने मधुर स्वरों से बिहार की संस्कृति को देशभर में पहचान दिलाई, अब राजनीति में कदम रख चुकी हैं।
अलीनगर सीट से नामांकन भरते हुए मैथिली ने कहा,
“अब समय है कि हमारी संस्कृति और लोगों की आवाज़ विधानसभा तक पहुंचे।”
उनकी एंट्री से साफ है कि बिहार में राजनीति सिर्फ जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब संस्कृति और पहचान की राजनीति भी अपना असर दिखा रही है।
स्टारडम बनाम ज़मीनी हकीकत
सिनेमा और राजनीति के बीच की दूरी अब लगभग मिट चुकी है। पर्दे के सितारे ज़मीन पर वोट की राजनीति में उतर आए हैं। लेकिन असली सवाल यही है — क्या फैनबेस को वोट बैंक में बदला जा सकता है?
खेसारी को छपरा जैसे बीजेपी गढ़ में कड़ी चुनौती का सामना करना होगा, जबकि मैथिली ठाकुर को अपने क्षेत्र में स्थानीय कैडर और पुराने समीकरणों से जूझना पड़ेगा। एक तरफ लोकप्रियता, दूसरी तरफ परंपरागत राजनीति बिहार में इस बार का चुनाव यही दिलचस्प मुकाबला पेश कर रहा है।