
शास्त्र वाले थानेदार, जिले के बने खेवनहार…
कोयलांचल की सुरक्षा कभी तिलकधारियों की ताल पर झूमती थी, अब वही जिम्मेदारी शास्त्र पढ़े-लिखे थानेदारों के कंधों पर आ गई है। मानो अपराध रोकने का सबसे अचूक नुस्खा रामचरितमानस का पाठ और गीता के श्लोक ही हों।
कप्तान की फील्ड सजाने की इस नई नीति को महकमे में “आध्यात्मिक प्रयोग” कहा जाने लगा है। अफसरों का तो यहां तक मानना है कि अब अपराधियों को हथकड़ी पहनाने से पहले प्रवचन सुनाया जाएगा और पूछताछ में “सत्संग” का तड़का लगाया जाएगा। जनता भी कहने लगी है कि अब शास्त्र वाले ही जिले के असली खेवनहार बनेंगे।
हरदी बाजार में पहले से ही चुलबुल पांडे अपनी मस्तानी स्टाइल में हैं। धूल वाले थाने की कमान मुस्कानधारी साहब के पास है, जिन्हें देख अपराधी भी मुस्कुराने लगें। दर्री में नए-नवेले तिवारी जी उतरे हैं, डंडे को तेल देकर चमकाने में लगे हैं। उधर कटघोरा का कटघरा तो वैसे ही धर्मसंकट में पड़ा है ना शास्त्र काम आ रहा, ना शस्त्र।
महकमे के भीतर यह माना जा रहा है कि बदनाम थानों से लेकर कस्बों तक, अब सुधार अभियान शास्त्र और शस्त्र दोनों के सहारे चलाया जाएगा। हालांकि अफसर भी मानते हैं कि अपराध का ग्राफ भले न गिरे, लेकिन अपने-अपने ग्राफ जरूर ऊपर चढ़ रहे हैं।
अब सबकी निगाहें इस प्रयोग के नतीजों पर हैं। लोग इंतजार कर रहे हैं कि क्या सचमुच शास्त्र का ज्ञान अपराध नियंत्रण में कारगर साबित होगा या फिर अंततः शस्त्र का बल ही पुलिसिया कामकाज की असली पहचान बनेगा।
डाल डाल पात पात के खेल में साहब स्विफ्ट डिज़ायर में, डीएमसी स्कॉर्पियो पर सवार!
शिक्षा विभाग में अफसरों की गाड़ियों को लेकर सोशल मीडिया पर खूब चटखारे लिए जा रहे हैं। एक वायरल रील में कहा भी गया है “पॉवर कुर्सी में नहीं होती साहेब जी, उसमें बैठने वाले में होती है।”
कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों विभाग में देखने को मिल रहा है। बड़े ओहदे वाले अफसर छोटी गाड़ी में चलते दिख रहे हैं, तो छोटे ओहदे वाले अफसर स्कॉर्पियो जैसी बड़ी गाड़ी पर सवारी कर रहे हैं। नतीजा ये कि लोग चुटकी लेते हुए कह रहे हैं “पॉवर कुर्सी में नहीं, कुर्सी पर बैठने वाले में होती है। समझे साहेब जी..!!”
असल में सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक अफसरों को उनके पद अनुसार वाहन मिलते हैं, लेकिन यहां नियमों से ज्यादा सामर्थ्य हावी दिख रहा है। तुलसीदास ने भी लिखा है “समरथ को नहीं दोष गुसाई” यानी सामर्थ्यवान पर कोई दोष नहीं।
शिक्षा विभाग में भी यही हो रहा है। डीएमसी स्कॉर्पियो पर सवार हैं, जबकि डीईओ ग्रहदशा शांत करने के लिए अपने वाहन और ठिकाने बदल रहे हैं। चर्चा ये भी है कि सरकारी अफसरों की गाड़ियां बिना कायदे-कानून के चल रही हैं, जिन पर शहर के आरटीआई कार्यकर्ताओं की पैनी नजर है।
साथ ही विभाग के कुछ मठाधीश भी मौका तलाश रहे हैं ताकि चल रही खरीदी और गड़बड़ियों का काला चिट्ठा उजागर किया जा सके। लोग अब सिस्टम पर कटाक्ष कर रहे हैं “डीईओ पर डीएमसी भारी.. क्यों!!!”
शहर सरकार में कोरबा मॉडल की चर्चा
शहर सरकार के टैलेंटेड अफसरों और ठेकेदारों की जोड़ी की चर्चा अब राजधानी रायपुर तक होने लगी है। सरकारी चलन है जहां बड़ा खेल होना है वहां कंसल्टेंट नियुक्त किए जाते हैं। अब कंसल्टेंसी के लिए कोरबा मॉडल की चर्चा हो रही है। गार्डन संवारने के नाम पर फिर से टेंडर लगने वाले हैं, लेकिन कंसल्टेंसी की सर्विस वही मिलने जा रही है गार्डन बिगाड़ों और घर संवारो।
नगर निगम के होनहार इंजीनियर गजब के बाज़ीगर हैं। तभी तो हर बार टेंडर में वही ठेकेदार बाजी मार लेता है, जिसे सब पहले से जानते हैं। ऐसी बाजीगरी वन सीआर के एआरसी में दिखी जिसमें 25 लाख रुपए बस स्टॉप पर फूंक दिए गए। यह हुआ कि 25 पेटी खर्च होने के बाद भी बस स्टॉप की हालत जस की तस है।
अब वही कहानी गार्डन मेंटेनेंस के नाम पर दोहराने की तैयारी है। स्क्रिप्ट पहले से लिखी जा चुकी है। ठेकेदारों की लॉटरी खुलेगी, इंजीनियरों की झोली तो भरेगी और कुछ पार्षद भी लाल हो जाएंगे, लेकिन इससे जनता को क्या मिलेगा..मलाई तो बाजीगर ले उड़ेंगे।
वैसे भी नगर निगम के इंजीनियर साहब गजब के टैलेंटेड हैं, उनका सीधा फार्मूला है.. जनता की भलाई में नहीं, ठेकेदारों की कमाई का ध्यान रखो, बस टेंडर की डोरी खींचते रहो हैं। गार्डन हो या बस स्टॉप.. सबसे में कमाई है।
मास्टर जी की क्लास
लंबे इंतजार के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव अपनी टीम तैयार करने में कामयाब हुए। 47 सदस्यीय टीम में कुछ नाम संगठन ने सुझाए और बाकी नामों में एवीबीपी की युवा ब्रिगेट को दूसरी पंक्ति से निकलकर फ्रंट लाइन में लाया गया। किसी पदाधिकारी को दोबारा स्थान नहीं मिला है। अब दिल्ली से भेजे गए संगठन के मास्टरसाब इन जिला अध्यक्षों और प्रदेश पदाधिकारियों की क्लास लेंगे।
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में 31 अगस्त से लगने वाली क्लास में पाट्री के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और प्रदेश प्रभारी नितिन नवीन ये बताएंगे कि किस तरह से संगठन का काम करना है। वैसे भी छत्तीसगढ़ में पार्टी के पुराने नेता अब मार्गदर्शक मंडल में डाले जा रहे तो यह क्लास बेहद खास होने वाली है जिसमें सभी मोर्चा के अध्यक्ष और प्रकोष्ठों के संयोजकों को भी बुलाया गया है।
कुल मिलाकर जिस तरीके से हाल में कैबिनेट विस्तार हुए उससे साफ है कि दिल्ली दरबार युवा हाथों में पार्टी की कमान सौंपने का फैसला कर चुका है। कैबिनेट विस्तार में पुराने असरदार मंत्री बेअसर हो गए। लिहाजा मास्टर जी की क्लास में नए पदाधिकारियों सरकार और संगठन को लेकर क्या सीख मिलने वाली है, ये देखने वाली बात होगी।
तीजा और टैरिफ
तीजा और टैरिफ में अजब का रिश्ता है…मैं जो कंरू मेरी मर्जी..यानि बिल्कुल डोनाल्ड ट्रंप की तरह…। गनिमत है कि ट्रंप के ट्रैरिफ में एक आप्शन है या तो इसे स्वीकार करें..या अस्वीकार करें। मगर तीजा वाले ट्रैरिफ में ऐसा कोई आप्शन नहीं है…मायके जाना है पति को अपनी सालभर की आमदनी के हिसाब से 10 प्रतिशत तीजा टैरिफ पत्नी के पास जमा करना होगा वो भी एकदम नकद..।
अब अपने पड़ोसी शर्माजी को ही ले लो..सुबह सुबह से पोस्ट आफिस की ओर भागे जा रहे थे..किसी ने आवाज लगाई. भइये देख कर कहीं ठोकर लगी और गिर पड़े तो बाकी की बत्तीसी भी बाहर आ आएगी। मगर शर्माजी बिना जवाब दिए और तेजी से भागने लगे। असल में सुबह सुबह डाकिया घर पर एक डाक दे गया था…डाक भेजने वाले की जगह पर लिखा था..आपकी शमाइन..!
अब आगे का मजमून जान लिजिए..भाई को भेज रही हूं..शाम तक आएगा..मेरा तीजा ट्रैरिफ (5000) तैयार रखना, बाकी सब ठीक है। घर में ठेठरी खुर्मी बना कर डिब्बे में रख दिया है। उसे नाश्ते में खा लेना, दोपहर को पड़ोस वाली चाची के घर से टिफिन मंगा लेना..बाकी सब ठीक है अपनी सेहत का ध्यान रखना।
अब आप ही फैसला करें..पत्नी का ऐसा प्यारभरा पत्र पढ़कर शर्माजी अगर तेजी से भाग रहे तो क्या गजब हो गया। असल में शरमाइन ने अपने पत्र में प्यार और धमकी का काकटेल लगाया कि हाथ से पैसे भी जाएंगे…रही बात बत्तीसी की तो ठेठरी खुर्मी खाने से वो वैसे भी बाहर आ जाएगी। अब बत्तीसी ठोकर लगने बाहर आए या ठेठरी खुर्मी खाने से तीजा टैरिफ तो चुकाना ही होगा..नहीं तो शरमाइन का भाई आ जाएगा।