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Korba: मनरेगा और रेशम पालन ने बदली कोरबा के ग्रामीणों की तस्वीर: रोज़गार के साथ बढ़ रही आमदनी, किसान हो रहे आत्मनिर्भर

कोरबा, 05 अगस्त 2025/ – कोरबा जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और रेशम विभाग के समन्वय से ग्रामीण आजीविका को नया आधार मिल रहा है। नर्सरी और पौधरोपण के माध्यम से जहां हजारों लोगों को रोजगार मिला, वहीं अब रेशम कृमि पालन से ग्रामीणों को सालाना ₹50,000 तक की अतिरिक्त आमदनी हो रही है।

 

बीते कुछ वर्षों में जिले के 30 स्थानों पर अर्जुन और साजा पौधों की नर्सरी और पौधारोपण कर 93869 मानव दिवसों का सृजन किया गया। इससे 7422 श्रमिकों को छह वर्षों में सीधा लाभ मिला। इन पौधों पर अब रेशम की इल्लियों का पालन किया जा रहा है, जिससे 546 किसान और महिला स्व-सहायता समूह की सदस्याएं लाभान्वित हो रही हैं।

कोसा पालन बना आय का नया जरिया

रेशम विभाग के तकनीकी मार्गदर्शन में अर्जुन और साजा वृक्षों पर वैज्ञानिक तरीके से कोसा पालन हो रहा है। कोरबा के फील्डमैन श्री मंगल दास महंत के अनुसार कोसा फलों की कपलिंग, अंडों की जांच, सफाई और पालन की पूरी प्रक्रिया ग्रामीणों को सिखाई गई है। तैयार फसल से मिलने वाले रेशम फल और धागा किसानों के लिए एक बड़ा मुनाफे का जरिया बन गए हैं। एक हजार कोसा फल जहां ₹3600 में बिकते हैं, वहीं कोसा धागा ₹7000 से ₹8000 प्रति किलो तक की कीमत में खरीदा जा रहा है।

महिलाएं हो रही सशक्त, परिवार बन रहे आत्मनिर्भर

महिला समूहों के लिए यह योजना आत्मनिर्भरता की नई राह बन गई है। पौधरोपण और रेशम पालन न केवल उनके लिए आय का साधन बना है, बल्कि उन्हें ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूत भूमिका निभाने का अवसर भी मिला है।

रोजगार, पर्यावरण और आमदनी – सब कुछ एक साथ”

सलोरा के किसान श्री छेदूराम और श्री भूलसीराम ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि मनरेगा अब केवल मजदूरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीणों की आर्थिक मजबूती का भी ज़रिया बन चुका है।

कोरबा की इस अनूठी पहल से एक नई ग्रामीण क्रांति की शुरुआत हो चुकी है – जहां श्रम, विज्ञान और समर्पण से भविष्य संवारा जा रहा है।

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