Featuredदेशराजनीति

राज और उद्धव के साथ आने से कैसे बदलेगी महाराष्ट्र की राजनीति, शिंदे की बढ़ेगी टेंशन या फायदे में BJP? जानें

मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में आने वाले दिनों में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे चुनावी मंचों में भी एक साथ आ सकते हैं। इससे उद्धव की अगुवाई वाली शिवसेना फिर से मजबूत हो सकती है। शनिवार को वर्ली में हुई सभा में 30 हजार से ज्यादा लोग उन्हें एक मंच पर देखने और सुनने आए। इससे साफ हो गया कि यह सिर्फ भाषा का मुद्दा नहीं था। यह शिवसेना के बिखरे हुए गुटों के एकजुट होने का संकेत भी था। 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई थी। अब दोनों भाइयों के साथ आने से शिवसेना यूबीटी को फायदा हो सकता है।

निकाय चुनाव में दोनों आ सकते हैं एक साथ?

महाराष्ट्र में आने वाले निकाय चुनावों में दोनों मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों को भारी नुकसान हुआ था। इसलिए अब वे साथ आ सकते हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा बनाने की कोशिश है। साथ ही एकनाथ शिंदे को भी जवाब देने का प्रयास है। दरअसल शिंदे ने शिवसेना को तोड़कर दो तिहाई नेताओं को अपने साथ ले लिया था।

निकाय चुनाव में दोनों आ सकते हैं एक साथ?
महाराष्ट्र में आने वाले निकाय चुनावों में दोनों मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों को भारी नुकसान हुआ था। इसलिए अब वे साथ आ सकते हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा बनाने की कोशिश है। साथ ही एकनाथ शिंदे को भी जवाब देने का प्रयास है। दरअसल शिंदे ने शिवसेना को तोड़कर दो तिहाई नेताओं को अपने साथ ले लिया था।

पिछले 19 सालों में दोनों के रास्ते अलग-अलग रहे हैं। उद्धव ठाकरे ने शिवसेना यूबीटी को कांग्रेस और एनसीपी एसपी के साथ महाविकास अघाड़ी (MVA) में शामिल किया। वहीं, राज ठाकरे ने मोदी और बीजेपी की तारीफ करते हुए आक्रामक हिन्दुत्व और मराठी मानुस की राजनीति की। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों को नुकसान हुआ। इसलिए अब वे विरोधियों से लड़ने के लिए अपनों से समझौते की राजनीति कर सकते हैं।

राजनीति गलियारे में क्या चर्चा?

राजनीतिक गलियारों में दो बातें हो रही हैं। पहली, उद्धव और राज की पार्टी एक हो जाए और नारा दिया जाए- ‘एक ठाकरे, एक शिवसेना’। दूसरी, MNS और शिवसेना (उद्धव गुट) गठबंधन करके निकाय चुनाव लड़ें। हालांकि एक होने में मुश्किल हो सकती है। क्योंकि दोनों ही ठाकरे परिवार से हैं। दोनों की नेतृत्व शैली और संगठन पर पकड़ अलग-अलग है। अगर मनसे इस गठबंधन में आती है तो कांग्रेस और शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी एसपी को दिक्कत होगी। क्या कांग्रेस मनसे जैसे दल को स्वीकार करेगी? मनसे की मुस्लिम विरोधी छवि और हिंदी भाषियों पर पुरानी टिप्पणियां कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती हैं। क्या शरद पवार इस गठबंधन में मध्यस्थता करेंगे? यह देखना होगा।

कहां हो सकता है ज्यादा असर?

महाराष्ट्र के म्युनिसिपल चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। खासकर मुंबई, ठाणे, नासिक और पुणे में। यहां मनसे और शिवसेना दोनों की पकड़ रही है। अगर महाविकास अघाड़ी में चौथा दल जुड़ता है तो चारों दलों में सीटें बांटना आसान नहीं होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या MNS को कम सीटें मिलेंगी? या शिवसेना अपनी कुछ सीटें छोड़ेगी? यह अभी तक साफ नहीं है।

लोगों के बीच जाने का नया तरीका

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2024 में शिवसेना (उद्धव), कांग्रेस और एनसीपी एसपी की हार के बाद लोगों के बीच वापस जाने के लिए यह नया तरीका जरूरी था। राज ठाकरे की राजनीतिक ताकत भी दांव पर है। इसलिए दोनों का साथ आना एक नई ऊर्जा ला सकता है। ‘ठाकरे वर्सेज ठाकरे’ की लड़ाई अब ‘ठाकरे प्लस ठाकरे’ की रणनीति में बदल सकती है। इसका मतलब है कि ठाकरे भाई अब आपस में लड़ने की बजाय मिलकर काम कर सकते हैं। लेकिन यह आसान नहीं है। विचारों में मतभेद, गठबंधन में तालमेल और लोगों का विश्वास जीतना जरूरी है।

एक मंच से एक मत तक पहुंचना बाकी

राजनीति जानकारों की माने तो अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को शहरों में कड़ी टक्कर मिल सकती है। हालांकि, अजित पवार की NCP को अभी ज्यादा नुकसान होता नहीं दिख रहा है। क्योंकि अजित पवार की ताकत ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है। लेकिन बीजेपी और शिंदे की पार्टी की ताकत शहरों में ज्यादा है। यह यात्रा एक मंच पर साथ आने से शुरू हुई है। अभी एक मंच से एक मत तक पहुंचना बाकी है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button