Brake at red light: थाना में खानापूर्ति, अपनो पर नही,DMF का अर्थ, कागज देने में असमर्थ..हमने जो कहा सो किया,पांच रुपईया बारह आना…
थाना में खानापूर्ति, अपनो पर नही सहानुभूति…
” हमें तो अपनो ने लूटा गैरो में कहां दम था जहां कश्ती थी डूबी वहां पानी कम था..”
दिलवाले फ़िल्म के ये संवाद खाकी के जांबाज सिपाहियों पर सटीक बैठ रहा है। थानो में चल रहे खानापूर्ति में अपनो के लिए भी सहानुभूति नही दिखा पा रहे है। फलतः जिले की पुलिसिंग में धार कम धुंवा ज्यादा दिख रहा है, अपराधियों पर मार कम व्यापार अधिक दिख रहा है
पिछले दिनों एल्युमिनियम नगरी में एक जांबाज अफसर का मोबाईल चोरी हो गई। जिसकी शिकायत लेकर साहब थाना पहुंचे तो वहां उन्हें रटा रटाया जवाब मिला, साइबर वाले देखेंगे, मिल जाएगा..आदि आदि मिठ्ठू की तरह रटारटाया उत्तर सुनने को मिला। सिस्टम के फेर में उलझे साहब ने साइबर का भी चक्कर लगाया, पर हासिल कुछ नही आया। उधर मोबाइल चोर यूपीआई आईडी बनाकर खाते से रकम निकालते रहे और बेबस खाकी वाले साहब उच्च अफसरो की खानापूर्ति में उलझकर रह गए। आखिरकार बैंक से जब खाता लॉक हुआ तब तक 1 लाख 57 हजार खाते से ट्रांसफर हो चुका था। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जब अपना अपनो का नही हुआ तो आम लोगो की बात थानेदार के साथ कैसे तालमेल बैठे। जिले की पुलिसिंग को लेकर अब विभाग में लोग खुलकर बात करते हुए कहने लगे है कौन ऐसा पुष्पा भाऊ है जो थानेदारो को खेला रहा है..!
DMF का अर्थ, कागज देने में असमर्थ..
सरकारी तंत्र के शब्द के अर्थ से लगता है डीएमएफ और खनिज शाखा कागज में देने में असमर्थ है।
आम आदमी का हथियार यानी सूचना के अधिकार को कितने हल्के में आंका जा रहा है इसका जीता जागता उदाहरण डीएमएफ और खनिज शाखा है। कागज मांगने वालों को शब्द के जाल में उलझाकर गुमराह किया जा रहा है।
ऐसा इसलिए कह रहे क्योंकि विनिर्दिष्ट शब्द के शब्दभेदी बाण में आरटीआई एक्टिविस्टो को भेदा जा रहा है। संत कबीर का एक दोहा है “शब्द के ओर न छोर है शब्द के हाथ के पांव एक शब्द है औषधि एक शब्द है घाव।” शायद इस पंक्ति को सरकारी तंत्र में सूचना का अधिकार के लिए मंत्र मान लिया गया है।इस बात को और भी आसान भाषा मे कहा जाए तो सूचना का अधिकार किसी विषय पर मांगे जाने पर विभागीय अधिकारी जानकरी मांगने वालों को ऐसे शब्द में उलझा देते है जिसका अर्थ जनसामान्य को क्या खुद अधिकारियों को भी मालूम नही होता है। डीएमएफ शाखा वैसे भी दान दक्षिणा और गोल माल के नाम से बदनाम है। विभाग में आरटीआई लगाने वालों को विनिर्दिष्ट शब्द के जाल में उलझाया जा रहा है। आप लोगो मे से ऐसे भी कई लोग होंगे जो इस शब्द को पहली बार सुन रहे होंगे। शब्द के इस्तेमाल से साफ जाहिर होता कि सूचना देने का मंसूबा नही है या साक्ष्य को छुपाने के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया जा रहा है।डीएमएफ औऱ खनिज शाखा में चल रहे कार्यो को करीब से समझने वाले कहने लगे है पोल खुलने के डर से साहब नई शब्दावली को अपने व्यवस्था-सुविधा के मान से परिभाषित कर अपना दामन बचाने का प्रयास कर रहे है।
हमने जो कहा सो किया…
शहर के चौक – चैराहो पर लगे फ्लैक्स “हमने बनाया हम ही संवारेंगे” के श्लोगन पंच लाइन को उर्जाधानी के जनमानस आगे बढ़ाते कह रहे “हमने जो कहा सो किया…” होना था।
याद ताजा हम पिछले सप्ताह की करा रहे है जब सत्ता के नशे में चूर एक मंत्री ने महतारियो को कह दिया कि ज्यादा हेकड़ी दिखाओगे तो उखड़वा कर फेंकवा दूंगा। सोशल मीडिया में थू थू होती रही, इन सबके बीच उनकी बातों को प्रशासनिक नुमांइदे सच करते गए। लिहाजा महिलाओं में आंदोलन में धार कम होने लगा। हो भी क्यों न रास्ता रोकने के नाम पर पुलिस का अस्त्र उन विवश महतारियो पर चला जो राजनीति के राजतंत्र को नही समझ सके।नेतृत्व करने वाले धीरे धीरे पांव खिंचने लगे। हालांकि नेताजी के बिगड़े बोल पार्टी के लिए बड़ा झटका है क्योंकि आने वाले चुनाव में निश्चित ही जिनको उखड़वा कर फेंकने की बात कह रहे है वे भी कमर कसकर इंतजार कर रहे है। छत्तीसगढ़ में कहावत है “एकच पूस म जाड़ ह नई जावे फेर घुकके आथे..” इसका तात्पर्य है कि मौका चार साल बाद फिर आएगा। तब मांगने वाले वही नेता होंगे और देने वाली जनता। तब कांग्रेस के दिग्गज नेता की पंक्ति शब्द संभारे बोलिये शब्द के हाथ न पांव, एक शब्द करे औषधि एक करे घाव याद आएगा।
पांच रुपईया बारह आना
प्रदेश में निकाय चुनाव को अधिसूचना किसी भी वक्त लागू हो सकती है। जनता से लोकलुभावन वादा करने के लिए चुनाव घोषणा पत्र समिति बनाई जा चुकी हैं और तो और पार्टी के पर्यवेक्षक भी भेजे जा चुके हैं।
दोनों की दलों में पार्टी की टिकट चाहने वालों के लिए जरूरी क्राइटेरिया तय कर दिए हैं…। बीजेपी में मंडल से प्रदेशस्तर तक ठोंकबजा कर उम्मीदवारों का चयन होना है..जबकि कांग्रेस का अपना फार्मूला है। लेकिन दोनों दलों में टिकट बांटने एक फार्मूला कामन है वो है पांच रुपईया बारह आना…।
ब्लाक और मंडल में जाने वाले पार्टी के पर्यवेक्षक संगठन द्वारा तैयार किए गए प्रोफार्मा लेकर जा रहे हैं। जिसमें दावेदारों से पहला सवाल ये पूछा जा रहा है कि आप कितना खर्च कर सकेंगे? पार्टी किसी तरह आर्थिक मदद नहीं करेगी, उन्हें चुनाव खर्च खुद करना होगा। यानि गांठ में रुपईया हो तो बात हो.. नहीं तो….।
वैसे बीजेपी में सब ठीक है मगर कांग्रेस नेता इस बात को लेकर परेशान हैं कि अगर उनका पांच रुपईया बारह आना वाला हिसाब ईडी तक पहुंच गया तो वो चुनाव के पहले ही निपट जाएंगे। फिलहाल तैयार रहे चुनाव का ऐलान कभी भी हो सकता है।
लालबत्ती पर ब्रेक..
प्रदेश में संगठन चुनाव निपटने के बाद बीजेपी के बड़े नेताओं का दिल्ली दौरा शुरु होने से एक बार फिर कैबिनेट फेरबदल और निगम मंडल आयोग में नियुक्तियों की चर्चा तेजी हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष पर किरणदेव की दोबारा ताजपोशी हुई है। खबरीलाल की मानें तो बड़े नेताओं का दिल्ली दौरा अभी केवल अपनी उपस्थित दर्ज कराने वाला साबित हो रहा है।
सूत्रों बताते हैं कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दिल्ली विधानसभाओं के नतीजें आने केे बाद ही होना है। ऐसे संगठन का चुनाव अभी बाकी है। उस पर आज या कल में छत्तीसगढ़ में निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होने वाली है। और आचार संहित लागू रहने तक कैबिनेट फेरबदल और निगम मंडल आयोग में नियुक्तियों पर वैसे ही ब्रेक लग जाएगा।
कटाक्ष के पिछले एपिसोड में न्यूज पॉवर जोन ने पहले ही बता दिया कि बीजेपी नेताओं को लाल बत्ती के लिए होली तक इंतजार करना होगा..और वही हो रहा है। वैसे राजनीति में कब क्या हो जाए कहना मुश्किल है मगर हालात तो ऐसे ही हैं कि इंतजार करने के अलावा दूसरा चारा बाकी नहीं बचा है।