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“साफ बयानी और संघर्ष सदा मैदानी”…अपनी वही पुरानी स्टाइल के साथ शब्दों का चक्रव्यूह तोड़ने मैदान में अकेले डटे हैं डॉ महंत

कोरबा। कहते हैं कमान से तीर और जुबान से निकले वचन जो एक बार छूट गए तो वापस नहीं लौटते। छत्तीसगढ़ की जनता को रिझाने विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डॉ चरणदास महंत की जुबान से निकले ठेठ छत्तीसगढ़िया बोल अब उन्हीं पर भाजपा के चौतरफा वार बनकर बाणों की तरह बरस रहे हैं। महंत के कर्णभेदी शब्दों से बुना गया भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ने खुद महंत ही मैदान में डटे जूझते दिखाई दे रहे हैं। पर सवाल यह है कि अब तक कांग्रेस पर गड़बड़ियों और मोदी के विकास के दो मुद्दों पर हमले करती रही भाजपा अब कोरबा से लेकर रायपुर तक आखिर महंत पर क्यों टूट पड़ा है? जवाब के रूप में यही वजह पेश होती है कि भले ही कांग्रेस के बड़े से बड़े राजनेताओं पर लांछन लगाए जाते रहे हैं पर डॉ महंत का व्यक्तित्व, बेदाग छवि और विवादों से दूरी ही उनकी ख्याति और जनता में लोकप्रियता की असली ताकत रही है। यही छवि तोड़ने और कांग्रेस को घेरने का यह भाजपाई चक्रव्यूह रचा गया है, जिससे मौजूदा परिस्थितियों में अभिमन्यु की तरह डॉ महंत निकलने की कोशिशें करते मैदान में कूद पड़े हैं।

अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक, विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डॉ चरण दास महंत आज भी प्रदेश में कांग्रेस के किले को संभालने वाले मज़बूत स्तंभ हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि विवादों के इस बयान के चलते चौतरफा घिरने के बाद भी धर्मपत्नी और कोरबा सांसद श्रीमती ज्योत्सना चरण दास महंत के लिए कोरबा लोकसभा चुनाव के मैदान में लगभग अकेले भिड़े हुए हैं। यहां तक कि मीडिया ट्रायल में लोकसभा चुनाव के बीच सरेंडर होने का नतीजा कहते हुए डॉ महंत को वार से पहले हार करार दिया गया। उन्हें भली भांति जानने वाले यह भी जानते हैं कि अपने मस्त स्वभाव और बेबाक बयानों के साथ डॉ महंत हमेशा ही प्रदेश की राजनीति में हलचल पैदा कर देते हैं। पांच साल पहले के उस दौर की उनकी मुखर बोली स्मरण करें, जन कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने की उनकी संभावनाएं क्षीण हुईं तब समर्थकों में उदासी थी। पर उन्होंने उस पल भी गर्मजोशी से जवाब दिया…” सेमीफाइनल में भूपेश, टीएस, मैं और ताम्रध्वज साहू उतरे। मेरा और ताम्रध्वज जी का पत्ता कट चुका है। अब दो खिलाड़ी मैदान में हैं, देखते हैं बाज़ी कौन मारता है। “यानी “साफ बयानी और संघर्ष सदा मैदानी” यही राजनीति करने का डॉ चरण दास महंत का स्टाइल है, जिसे थामें वे शब्दों के इस चक्रव्यूह को तोड़ने पूरे जोश के साथ मैदान में डटे हुए हैं।

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कोरबा का किला फतह करने महंत की 44 साल का तजुर्बा बनाम भाजपा के 3 मुद्दे में

प्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता व नेता प्रतिपक्ष के एक बयान के बाद में बाद देश भर में सियासत गर्म है। भाजपा अब सॉलिड रणनीति के तहत काम करने में लग गई है। डॉ महंत को चक्रव्यूह में फंसाने के लिए हर सियासी चाल चलने के लिए भाजपाई तैयार हैं। महंत के 44 साल के तजुर्बे और भाजपा के तीन मुद्दों के बीच कोरबा के किले को फतह करने एक जंग शुरू हो चुकी है। इन 3 मुद्दों में पहला सांसद श्रीमती ज्योत्सना चरण दास महंत के पांच साल निष्क्रियता का आरोप, डीएमएफ घोटाले में मौन सहभागिता का आरोप ओर परिवारवाद शामिल हैं। इस मामले में श्रीमती महंत के निष्क्रिय रहीं या जनता के बीच, इस बात के निर्णय केवल जनता के हाथ है। डीएमएफ घोटाले को लेकर स्वयं श्रीमती ज्योत्सना महंत कह चुकी हैं कि उन पर एक रुपए का भी दावा नहीं कर सकता। रही बात परिवारवाद की, तो पार्टी का निर्णय ही सर्वमान्य होता है। पार्टी आला कमान के आदेश के बाद ही यह तय होता है कि चुनाव मैदान किसके हवाले किया जाएगा। पार्टी की रीति नीति और जनता के बीच लोकप्रियता को भांप कर पार्टी और लोकहित में जो भी उचित होता है, वही किया जा सकता है। परिवारवाद के मामले में केवल कांग्रेस ही नहीं, भाजपा में भी ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

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जीवन में संघर्ष और अनुशासन ही काम आता है जो मुश्किल वक्त में शक्ति देता है : डॉ महंत

डॉ चरण दास महंत कहते हैं कि जीवन में संघर्ष और अनुशासन ही काम आता है, यह सीख उन्हें बचपन से ही माता-पिता ने दी थी। पिताजी बेहद अनुशासन प्रिय थे। वे बताते हैं कि चौथी कक्षा में पढ़ाई करते वक्त एक बार गुरूजी सही जवाब न देने के कारण उन्हें छड़ी से पीट रहे थे। तभी पिता बिसाहू दास जी सामने से निकले। उन्होंने न तो गुरूजी को रोककर मुझे बचाया और न ही कारण पूछा। बस इतना ही कहा कि गुरूजी, बच्चे को अच्छी शिक्षा दीजिएगा और इतना कहकर आगे बढ़ गए। बड़े होकर समझ आया कि यह अपने कार्य में मेहनत, अनुशासन और बड़ों के सम्मान की सीख थी।

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