कोरबा। टिकट बंटवारे के पहले ही कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत और उनके समर्थक आश्वस्थ रहे कि कोरबा का मैदान किसके हवाले हो रही थी। नतीजा ये कि हाई कमान की सेंट्रलाइज्ड नीति के अनुरुप कांग्रेस का चुनावी रैला ट्रैक पर एक राह और एक मत से आगे बढ़ रही है। दूसरी ओर भाजपा में क्षेत्र से कई दिग्गजों ने टिकट हासिल करने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और पार्टी ने ढाई सौ किलोमीटर दूर से एक नया खिलाड़ी लाकर मैदान सौंप दिया। नतीजा ये कि पहले से ही उबल रही दूध में करारी खटास पड़ गई और इसका नतीजा अब भी पार्टी की अंदरुनी कलह के रुप में महसूस की जा रही है। ऐसे में गाहे-ब-गाहे फूट रहे छुट-पुट गुस्से के बहाने ही सही भाजपा के खेल में इस नाराजगी से खेला न हो जाए। विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा के कर्णधारों और प्रत्याशी सरोज पांडेय को अब यही डर सता रहा है, कि ट्रैक से भटक रहे कार्यकर्ताओं की अपने-अपने नेताओं के प्रति वफादारी कहीं संगठन की जीत की राह में कांटे बिछाने की वजह न बन जाए।
पहले से कोरिया दरकिनार करने की टीस, अब पूरे कोरबा लोस की उपेक्षा का गुस्सा
चुनावी एक्सपर्ट की मानें तो भारतीय जनता पार्टी ने कोरबा लोकसभा क्षेत्र में स्थानीय नेताओं की गुटबाजी को कम करने के लिए ही बाहरी उम्मीदवार पर दांव लगाया है। पर अब यही फैसला मुश्किलों का कारण बनता दिख रहा है। लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद थामें बैठे स्थानीय नेताओं को तगड़ा झटका लगा और उसका असर मौजूदा मुकाबले में महसूस किया जा रहा है। हालांकि अधिकृत नाम घोषित होने के बाद भाजपा उम्मीदवार सरोज पांडेय ने लोकसभा के सभी विधानसभाओं का दौरा कर सभी बड़े नेताओं से भेंट कर गिले-शिकवे दूर करने का भरसक प्रयास किया। मान-मनव्वल के साथ भले ही मुस्कुराते चेहरों की तस्वीरें भी जारी की गई पर उसके बाद भी कहीं न कहीं धुआं उठता दिख रहा है।
भूल गए वर्ष 2004 में करुणा शुक्ला की करारी शिकस्त का सबक
कोरिया जिला भी कोरबा लोकसभा का हिस्सा है, जिसे हर बार लोकसभा चुनाव में मौका न देने की उपेक्षा की कसक क्षेत्र में पार्टी के वफादारों में दिखती रही है। अब की बार न केवल कोरिया, बल्कि पूरे कोरबा लोकसभा क्षेत्र को दरकिनार कर दुर्ग से एक नया प्रत्याशी उतार दिया जाना, पार्टी के कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा है। याद करने वाली बात होगी कि पूर्व पीएम स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला ने 2009 में कोरबा लोकसभा चुनाव में पैराशूट प्रत्याशी के तौर पर एंट्री ली थी। पर इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के डॉ चरणदास महंत से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 में करुणा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अलविदा कह दिया और कांग्रेस का हाथ थाम लिया। यह सबक दरकिनार कर एक बार फिर से पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए कोरबा सीट की पर बाहरी प्रत्याशी को उतार दिया है। इसके चलते स्थानीय नेताओं में अंदरूनी नाराजगी देखने को मिल रही है।
भाजपा की चुनौति बढ़ा रही है क्षेत्र में गोंगपा की दखल
लोकसभा चुनाव के बीच अंतर्विरोध की मार झेल रही भाजपा के नेता जहां खुद ही बिखरे हुए दिख रहे हैं, दूसरी ओर गोंडवाना पार्टी के दखल से इस हाई प्रोफाइल सीट पर अब मुकाबला भी रोचक हो चला है। बताया जा रहा है कि भाजपा ने स्थानीय नेताओं की गुटबाजी को कम करने के लिए बाहरी उम्मीदवार को कोरबा लोकसभा क्षेत्र का उम्मीदवार घोषित किया। बीजेपी में बाहरी नेता को ज्यादा वरीयता देने से लोकसभा क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी हुई है। ऐसे में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है। दूसरी ओर कोरबा लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी ने ज्योत्सना महंत का अकेला नाम भेजा था। ज्योत्सना महंत अपने टिकट को लेकर पहले ही आश्वस्त थी. पहले भी उन्होंने कहा था कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। कोरबा लोकसभा में विधानसभा की आठ सीटें शामिल हैं। इसमें कोरबा, रामपुर, कटघोरा, पाली तानाखार, पेंड्रा मरवाही जिले के मरवाही और कोरिया जिले की बैकुंठपुर, मनेंद्रगढ़ और भरतपुर सोनहत शामिल हैं।