बिलासपुर- आस है बेहतर मांग की। यह इसलिए क्योंकि 50 रुपए किलो जैसे भाव पर ठहरा हुआ है नड्डा। ईकाइयां भी अच्छे दिन की राह देख रहीं हैं क्योंकि नया शिक्षा सत्र चालू हो चुका है, तो शाम की तफरीह में ऐसे उपभोक्ता बढ़ रहे हैं, जिन्हें हल्के नाश्ते के रूप में नड्डा से बनी सामग्री पसंद है।
कनकी से बनता है नड्डा। चावल के साथ कनकी की कीमत बढ़ने के बाद आशंका थी कि नड्डा में भी भाव बढेंगे लेकिन बाजार और मांग दोनों शांत हैं। ऐसे में नड्डा का उत्पादन उतना ही किया जा रहा है, जितने में रोज की मांग पूरी की जा सकती है। बड़ी परेशानी इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि मांग के दिन चालू होने के बावजूद अपेक्षित उठाव नहीं हो पा रहा है।
इसलिए अच्छे दिन की आस
बच्चे सबसे बड़े उपभोक्ता माने जाते हैं नड्डा के। चूंकि स्कूलों में नया शिक्षा सत्र चालू हो चुका है। ऐसे में यह वर्ग लगभग शुरूआती दौर में है। कुल मांग में 60 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले ऐसे उपभोक्ता के नहीं होने से नड्डा बनाने वाली ईकाइयों और विक्रेता संस्थानों को तब तक प्रतीक्षा करनी होगी, जब तक स्कूलें फिर से पूरी क्षमता के साथ संचालन में नहीं आ जातीं।
संकट के साथी
ग्रामीण क्षेत्रों की किराना दुकानें और साप्ताहिक हाट बाजार। मजबूत सहारा बने हुए हैं। मांग में आंशिक कमी तो देखी जा रही है लेकिन भरपाई किराना दुकानों से हो पा रही है। शहरी क्षेत्र में शाम को नियमित रूप से लगने वाले स्ट्रीट फूड काउंटर। यह भी नड्डा की खपत को गति दे रहे हैं। बच्चों की संख्या यहां कम ही है लेकिन तफरीह करने वाले उपभोक्ता, संकट के साथी बने हुए हैं।
फिलहाल 50 रुपए
शांत माने जा रहे नड्डा की कीमत में तेजी की आशंका थी क्योंकि कनकी के भाव बढ़ने लगे हैं लेकिन यह ठहरा हुआ है 50 रुपए किलो पर। ऐसा इसलिए क्योंकि सीजन लगभग ऑन के दौर में है। यही वजह है कि स्कूलों में पूर्ण उपस्थिति की प्रतीक्षा है ताकि बेहतर मांग निकले और इकाइयों का संचालन पूरी गति से किया जा सके।