
नई दिल्ली, 20 जून| Dummy Schools India : क्या आज के छात्र स्कूलों से नहीं, बल्कि कोचिंग सेंटरों से ‘शिक्षित’ हो रहे हैं? यह सवाल अब सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं, बल्कि एक सरकारी जांच का विषय बन गया है।
देशभर में मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे प्रतिस्पर्धी पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने की होड़ ने एक पूरी ‘कोचिंग इकोनॉमी’ खड़ी कर दी है — जहाँ छात्र स्कूल कम, और कोचिंग सेंटर ज्यादा जाते (Dummy Schools India)हैं। यहां तक कि कई छात्र अब ‘डमी स्कूलों’ में नाम दर्ज करवा कर औपचारिक शिक्षा प्रणाली को केवल एक औपचारिकता भर बना चुके हैं।
एक उच्चस्तरीय समिति अब इस बदलते शैक्षणिक परिदृश्य की तह तक जाएगी। यह समिति इस बात का विश्लेषण करेगी कि आखिर क्यों आज का छात्र कक्षा की चौखट छोड़कर कोचिंग की कुर्सी पर बैठना बेहतर समझता है? क्या इसके पीछे मौजूदा स्कूली शिक्षा प्रणाली की विफलताएं हैं, या समाज में गहराती परीक्षा-केन्द्रित मानसिकता?
डमी स्कूल या डिग्री की शॉर्टकट फैक्ट्री?
‘डमी स्कूल’ अब सिर्फ एक सुविधा नहीं, एक रणनीति बन चुके हैं। छात्रों को यह विकल्प न सिर्फ पढ़ाई से मुक्त करता है, बल्कि उन्हें प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए अधिक समय भी देता है। पर यह सुविधा शिक्षा के मूल्य पर भारी पड़ रही है।
इस नई पहल के जरिए शिक्षा नीति निर्माता इस बात को भी समझना चाहते हैं कि कैसे रट्टा-प्रथा ने नवाचार, विश्लेषण और तार्किक सोच को पीछे छोड़ दिया (Dummy Schools India)है। साथ ही, यह भी परखा जाएगा कि क्या कोचिंग उद्योग, स्कूली शिक्षा की वैधता को धीरे-धीरे निगलता जा रहा है?
क्या बदलेगा स्कूल का भविष्य?
समिति यह भी तय करेगी कि कैसे औपचारिक शिक्षा को इस कोचिंग निर्भरता से बचाया जाए। क्या मूल्यांकन प्रणाली बदले? क्या स्कूलों में प्रैक्टिकल और सोच आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया (Dummy Schools India)जाए? यह रिपोर्ट न केवल शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि उस बदलाव की नींव भी बन सकती है जिसकी लंबे समय से आवश्यकता थी।