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कोरबा में भू विस्थापितों का बवाल: घंटों कुसमुंडा कार्यालय घेराव, लिखित आश्वासन के बाद मानी बात, 10 दिन में रोजगार प्रकरण निपटाने का वादा

कोरबा। लंबित रोजगार प्रकरणों और पुनर्वास समेत 9 सूत्रीय मांगों को लेकर बुधवार को भू विस्थापितों ने छत्तीसगढ़ किसान सभा (AIKS संबद्ध) और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के बैनर तले कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय का घेराव किया। सुबह 10 बजे से शुरू हुआ यह आंदोलन करीब 4 घंटे तक चला, जिसके बाद प्रबंधन और प्रशासन की ओर से लिखित आश्वासन मिलने पर इसे समाप्त किया गया।

 

आंदोलन के दौरान भू विस्थापितों ने कार्यालय गेट को जाम कर दिया और अंदर घुसकर नारेबाजी की। स्थिति को देखते हुए बड़ी संख्या में पुलिस बल मौके पर मौजूद रहा। शुरुआती वार्ता विफल रही तो आंदोलनकारी दो घंटे तक कार्यालय के अंदर ही बैठे रहे। बाद में कुसमुंडा महाप्रबंधक ने बिलासपुर मुख्यालय से बात कर 10 दिनों के भीतर लंबित रोजगार प्रकरणों के निराकरण का आश्वासन दिया।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेता प्रशांत झा ने कहा कि जिनकी जमीन अर्जित की गई है उन्हें रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि एसईसीएल प्रबंधन और जिला प्रशासन केवल उत्पादन बढ़ाने में रुचि दिखा रहा है, जबकि विस्थापितों के अधिकारों की अनदेखी की जा रही है।

वहीं किसान सभा के नेता दीपक साहू, जय कौशिक और सुमेंद्र सिंह कंवर ने कहा कि विकास के नाम पर विस्थापित परिवारों को उनकी जमीन और गांव से बेदखल कर दिया गया, लेकिन उनका जीवन स्तर सुधारने के बजाय और बदतर हो गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जमीन के बदले हर खातेदार को स्थायी रोजगार देना होगा।

भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेताओं दामोदर श्याम, रेशम यादव और रघु यादव ने कहा कि वे अपने अधिकार के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष करेंगे। उनका कहना था कि सरकार को विस्थापितों को ऐसा जीवन देना चाहिए जिससे उन्हें अपनी जमीन गंवाने का दर्द न महसूस हो, लेकिन आज हालत यह है कि गरीबों को फिर से संघर्ष करना पड़ रहा है।

गौरतलब है कि 31 अक्टूबर 2021 से कुसमुंडा क्षेत्र में 1389 दिनों से अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है। इस आंदोलन की वजह से ही अब तक 40 से अधिक पुराने प्रकरणों में रोजगार दिया गया है।

किसान सभा ने चेतावनी दी है कि अगर 10 दिनों में वादे पूरे नहीं किए गए तो कोल परिवहन रोकने जैसे बड़े आंदोलन किए जाएंगे।

घेराव में बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष भू विस्थापित शामिल हुए जिनमें सुनीला, राजेश्वरी कौशिक, बंधन बाई, उमेश, पवन यादव, चंद्रशेखर, विजय कंवर और अन्य कई गांवों के लोग मौजूद थे।

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