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छत्तीसगढ़ के पुलिसकर्मियों को राजस्‍थान में क्‍यों बेचनी पड़ी फुटपाथ पर सब्‍जी और कपड़े? पढ़े कहानी है कुछ दिलचस्प…

अंबिकापुर। देश में इन दिनों ठगी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ठग आम लोगों को ऑनलाइन से लेकर फर्जी कंपनी बनाने और रोजगार देने तक के नाम पर चूना लगा रहे हैं। पुलिस भी ठगों को पकड़ने के लिए तरह-तरह की स्‍ट्रैटजी बना रही है। हाल ही इसका एक उदाहरण छत्तीसगढ़ पुलिस ने पेश किया।
चिटफंड कंपनी के जरिये ठगी करने वाले आरोपियों को राजस्थान के भीलवाड़ा में पकड़ने गई पुलिस को किसी फिल्म की कहानी की तरह वेशभूषा बदलनी पड़ी।
पुलिसकर्मियों में से किसी को सब्जी का ठेला लगाना पड़ा तो किसी को फुटपाथ पर कपड़े बेचने पड़े। आखिर में पुलिस की कोशिश रंग लाई और ठगी करने वाली कंपनी का मुखिया समेत चार आरोपियों को दबोच लिया गया।

छत्तीसगढ़ पुलिस ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि अभिप्व प्रोड्यूसर्स लिमिटेड नाम की भीलवाड़ा की चिटफंड कंपनी एक साल में निवेश की गई राशि को तीन गुना करने का झांसा देकर ठगी करने में जुटी थी।
कंपनी ने 21 अक्टूबर 2014 से 28 अगस्त 2017 के बीच 29 लोगों से ठगी की थी। आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पिछले सात साल से प्रयास कर रही थी। बार-बार दबिश देने और यहां-वहां तलाशी करने पर पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा।

पुलिस ने बदली रणनीति

 

फिर सूरजपुर जिले के एसएसपी प्रशांत ठाकुर ने बिश्रामपुर टीआई अलरिक लकड़ा के नेतृत्व में दो टीमें राजस्‍थान के भीलवाड़ा भेजीं। 3 दिसंबर को भी भीलवाड़ा पहुंची पुलिस टीमों ने इस बार अपनी रणनीति बदली। पहले वेशभूषा बदली और रेकी की।
टीआई अलरिक लकड़ा ने सिर पर पगड़ी बांधी और ग्रामीण का वेश-भूषा बनाया। फिर राजस्‍थान निवासी अपने एक परिचित की स्‍कूटी से रेकी कर आरोपितों का ठिकाना तलाशा।
दूसरी ओर पुलिस आरक्षक अखिलेश पांडेय ने कई दिनों तक सब्‍जी का ठेला लगाया। वहीं आरक्षक अजय प्रताप राव ने सड़क किनारे फुटपाथ पर कंबल और कपड़े की दुकान लगाई।

इसके बाद दोनों पुलिस टीमों ने मिलकर चिट फंड कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर आनंद दाधीच, उसके पिता दिनेन्द्र दाधीच, कपिल जैन और महेश कुमार सेन को अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया। आनंद और दिनेन्द्र प्राइवेट कंपनी में, कपिल बैंक में सहायक मैनेजर और महेश सैलून दुकान संचालित कर रहा था।

पुलिस कपड़े खरीदे, ठेला किराए पर लिया

पुलिसकर्मियों ने बताया कि ठगी की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उन पर निगरानी रखी गई। गर्म कपड़ों की दुकान लगाने के लिए कंबल व अन्‍य वूलन वियर कपड़े खरीदने पड़े। ठेला भी किराये पर लेना पड़ा।

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