कटाक्ष
Number trick : ये मनीष कौन है भाई, पब्लिक के आशा की किरण..जांच के आंच से पंचायती “खली बलि”,कोल स्कैम औऱ वर्दी वाले…
ये मनीष कौन है भाई...
शेयर मार्केट स्कैंडल का एक पुराना डायलॉग है ये हर्षद मेहता कौन है भाई ..! ठीक उसी तर्ज पर जिले के हाई प्रोफाइल लोगों में मनीष की चर्चा हो रही है। उद्योग घराने के लोग भी लोगों से पूछ रहे है ये मनीष कौन है भाई…! दरअसल ये पिछले कुछ साल पहले शहर में सामान्य जीवन जीने वाले शख्स के खास होने की कहानी है….!
आज के राजनीतिक कारोबार में का ये युक्ति मेरा पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना मैं समुंदर हूँ , लौटकर वापस आऊंगा..। इसे सही साबित किया है। युवा उद्यमी ने जो सालों पहले शहर छोड़कर कर अन्य प्रदेश में जाकर इज्जत और शोहरत कमाया अब फिर शहर वापस होकर नए कारोबार को ऊंचाई देने के लिए सरकार के साथ कदमताल करने मौके की तलाश में है।
कहा तो यह भी जा रहा है सत्ता पक्ष के आकाओं के अप्रोच के बाद जिले के राजा उन्हें मलाई वाले काम में इंट्री कराने की कोशिश कर रहे हैं। साहब का फोन घनघनाने के बाद शहर के प्रशासनिक अमला और पुलिस महकमा युवा उद्यमी की कुंडली खंगालने में लगे हैं।
वैसे कहा तो यह भी जाता है कि सबसे बड़ा जोखिम तो जोखिम न लेने में है। सो इस कारोबारी ने जोखिम लेकर मलाई वाले काम को शिखर तक ले जाने में सत्ता पक्ष के पूंजीपतियों को साथ लेकर सपने दिखा रहे हैं। सही भी है इस समय प्रदेश में जिसका जुगाड़ है वो प्लांट को भी कबाड़ बना सकता है।
शहर में वैसे तो पहले से ही दो मनीष चर्चा में रहते है अब ये तीसरे मनीष की शहर में एंट्री के बाद दोनों मनीष की तपिश कम हो गई है और प्रशासन और पुलिस दोनों में मनीष को चर्चा करते हुए पूछ रहे है ये मनीष कौन है भाई…!
जांच के आंच से पंचायती “खली बलि”
कहते हैं जब किसी का काम खराब न कर सको तो उसका नाम खराब कर दो…! इस कहावत को इन दिनों जिले के पंचायत बखूबी चरितार्थ कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोप पर हो रही जांच के आंच से पंचायत में “खली बलि” मच गई है। मचे भी क्यों न आखिर साहब लंबा खर्च कर अभी-अभी तो आए थे। लिहाजा वे जांच की आंच अपने ऊपर आता देख उच्चाधिकारी पर एलिगेशन लगा बैठे, ” जंग में सब कुछ जायज है” की थ्योरी को फॉलो करते हुए साहब ने जंग तो छेड़ दी है।
वैसे तो भ्रष्टाचार की शिकायत पर जो जांच हो रही है, यह पहली बार है जब एक-एक ग्रामवासीयों का कलमबद्ध बयान दर्ज कराया जा रहा है। जांच में पेंच तो तब फंस गया जब सचिव का फोन बंद हो गया। जिस पर आरोप लगा वही अब जांच से भाग रहा है। मतलब साफ है दाल में काला नहीं यहां पर पूरी दाल काली है।
तभी तो पंचायत सचिव ने मैदान छोड़ दिया। वृहद रूप से चल रही जांच के बाद पंचायत में बिल बेचने वाले, रकम ट्रांसफर करवाने वाले सहित कई लोग जांच के लपेटे में सुलग रहे हैं। लिहाजा उनके रणनीतिकार भ्रष्टाचार की आंच से बचने और मामले पर पर्दा डालने का आरोप लगाते हुए सब्जेक्ट को डायवर्ट करने में लगे हैं। खैर दो अधिकारियों की लड़ाई का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका पंचायत के लोगों को बेसब्री से इंतजार है।
कोल स्कैम औऱ वर्दी वाले साहब