कटाक्ष
Collectorate and election : ये केके कौन है भाई,पति पत्नी दोनों बने थानेदार..मनीष का मैच,पटवारी और पॉम मॉल का माल ..
ये केके कौन है भाई….
सबसे बड़े शेयर मार्केट स्कैंडल का एक पुराना संवाद “ये हर्षद मेहता कौन है भाई ..!” ये डॉयलाग डीएमएफ के कारोबारियों पर सटीक बैठ रहा है। ईडी की टीम कारोबारियों से केके कनेक्शन तलाशते हुए पूछ रहे हैं कि ये केके कौन है भाई..!
दरअसल शहर के एक कारोबारी के घर पड़े ईडी छापे के बाद केके का शेयर अचानक बढ़ गया है। और लोग केके की तलाश कर रहे हैं। वैसे तो शहर से लेकर प्रदेश भर में जिले के चार केके की चर्चा रही है। अब अगर कोरबा के नम्बर वन केके की बात की जाए तो फ्लाईऐश किंग कहे जाने वाले को तो लगभग सभी कारोबारी और नेता जानते हैं।
दूसरा केके है कलेक्टोरेट परिसर के बड़ी बिल्डिंग में बैठने वाले मैडम साहिबा का.. जिनका डीएमएफ कार्यकाल सुर्खियों में रहा और जिसने अंडा से सोना बनाने की स्कीम लांच की। ये वही है जो कोरोनाकाल के आपदा को अवसर में बदल कर साबित कर दिया कि मौका मिलेगा तो चौका तो हम मार ही सकते हैं।
इसी कोरोनाकाल में छोटी बिल्डिंग वाले केके को डीएमएफ की टीम में शामिल किया गया। ये साहब भी मौका में चौका लगाते हुए दवा खरीदी से लेकर ग्रामीणों को ऑक्सिमीटर से ऑक्सीजन देने तक रिस्क लेकर बड़ा खेल कर दिया। वे आजकल कलेक्टरी कर रहे हैं और चौथे नंबर के केके है पूर्व नगर निगम आयुक्त के ख़ास …यानी उनके खेवनहार।
इन चार केके में से किसकी ईडी को किसकी तलाश है यह पब्लिक की समझ से परे है। लेकिन, आमजनो में इन चार केके की चर्चा जोरों पर हैं। सूत्र बताते हैं कि केके के कार्यकाल की जांच शुरू हो गई है और ऐसे में डीएमएफ कारोबारियों की तलाश की जा रही है जिनका केके से सीधा कनेक्शन है। डीएमएफ खान को लूटने वाले कारोबारी और केके के खास का पर्दाफाश होने की आस की जा रही है।
पति पत्नी दोनों बने थानेदार..
सावन के महीने में भोलेनाथ की कृपा का पिटारा एक साथ टीआई दंपत्ति पर खुला है। ये ऐसा संयोग है कि पहली बार जिले में एक साथ पति-पत्नी थानेदार बने हैं। बात बालको थाना प्रभारी मंजुषा पांडेय और सिविल लाइन के थानेदार मृत्युंजय पांडेय की है। मृत्युंजय और मंजुषा दोनों पति पत्नी है। दोनों के सात जन्मों का वादा और साथ रहने के इरादे ने बड़े थाने का प्रभार दिलाया है।
वैसे तो बालको जैसे बड़े थाने में पोस्टिंग कराने के लिए प्रदेश स्तर के जुगाड़ की जरूरत होती है। लेकिन, एसपी ने दबाव को नकारते हुए बालको थाने की कमान योग्य महिला के हाथों में सौंपी है। बालको प्लांट क्षेत्र देश की शान होने के साथ ही अतिसंवेदनशील है और यहां की थानेदारी करना आसान नहीं है। इसके बाद भी महिला टीआई के हाथ मे कमान किसी चुनौती से कम नहीं है।
अगर बात सिविल लाइन थाने की जाए तो यह थाना अपने आप में चुनौतियों से भरा पड़ा है क्योंकि तमाम तरह के कार्यालय और बड़े अफसर इस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जहां व्यवस्था के साथ ही सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने आप में बड़ी चुनौती है।
इसके अलावा इस क्षेत्र को धरना प्रदर्शन और रैली ज्ञापन के लिए भी अतिसंवेदनशील माना जाता है। इस प्रकार से इस थाने का रुतबा और लफड़ा दोनों बराबर है। सिविल लाइन थाने के बारे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि “ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे.. इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..!
मनीष का मैच.. पास या फेल ?
शहर में मनीष मैच में पास होंगे या फेल? आमजन की निगाहें आने वाले राजस्व के काम काज को लेकर टिकी है। वैसे तो कोरबा में आने वाले मनीष नाम के नेता हो या अफसर या कोई आम आदमी सबके लिए पूर्व का कार्यकाल सही साबित नहीं रहा और उन्हें हर मोड़ पर फेल साबित कर दिया गया।
ये जरूर है कि राज को वश में करने वाले मनीष के सितारे अगर चमक गए तो शहर के मनीष की चल निकलेगी। अगर बात कोरबा के मनीष की जाए तो जिनके एक फोन से अधिकारियों की पेशानी पर बल पड़ जाते हैं। उन्हें भी बीते राज में जाल बुनकर घेरने की कोशिश की गई और उनके प्रभाव को कम करने का प्रयास किया लेकिन, कुछ सीमा तक ही सफल हो सके।
ऐसे ही रायगढ़ से एक मनीष सिंघम बनकर सपनों में सवार होकर कोरबा आये उनकी भी शहर में नहीं चली। आज वे भी लाइन में दिन गिनते हुए काट रहे हैं। समय का पहिया घुमा तो एक हाईप्रोफाइल मनीष का भी शहर में पदार्पण हुआ वे भी सरकार के काम काज में हाथ बढ़ाने अधिकारियों से हाथ मिलाने और कारोबारियों को सपना दिखाने लगे।
लेकिन, उनकी भी नहीं चली। मतलब शहर में तीन मनीष की तो नहीं चली और उनके लिए पूर्ववर्ती काल संकट काल सिद्ध हुआ। अब चौथे मनीष की भी लैंडिंग ऊर्जानगरी में हुई है। सो आमजन की नजर चौथे मनीष के काम काज पर है कि राजस्व के खेल और शहर के जमीनों के मक्कड़जाल में मनीष पास होंगे या फेल ये तो समय ही बताएगा।
लेकिन, ये सच है कि शहर में मनीष नाम के लोगों की सितारे गर्दिश पर है। हालांकि जिले से जुड़े मनीष नाम वालों के कोरों पर मुस्कान है और कह रहे हैं कि मेरा पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना मैं समुंदर हूँ , लौटकर वापस जरूर आऊंगा.. !
कलेक्टरी और चुनाव
छत्तीसगढ़ में मतदाता सूची तैयार करने के लिए चुनाव आयोग ने कार्यक्रम जारी कर दिए हैं। इसके लिए जिलों को कलेक्टरों को निर्वाचन अधिकारी के अधिकार दिए गए हैं। मगर कलेक्टर अभी भी कलेक्टरी वाले अंदाज में ही काम कर रहे हैं।
हाल ही में कोरबा से ट्रांसफर होकर बिलासपुर आए आईएएस संजीव कुमार झा अपने कलेक्टरी वाले अंदाज में खुद की किरकिरी करा बैठे। दरअसल विधानसभा चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में पत्रकार वार्ता के बहाने पत्रकारों से मुलाकात की तैयारी की गई थी। लेकिन इस दौरान संजीव कुमार झा अपनी कलेक्टरी वाले अंदाज में चूक कर बैठे।
पत्रकार वार्ता के अगले दिन एक बड़े अखबार में खबर छपी कि बुजुर्गों, विकलांगों और असमर्थ लोगों के घर तक ईवीएम मशीन लेकर मतदान कर्मचारी वोट डलवाने के लिए जाएंगे, ऐसा कलेक्टर ने कहा है। ये खबर राज्य निर्वाचन आयोग के पास पहुंची। आयोग ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है और साथ ही जिला प्रशासन से कहा गया कि इस खबर का खंडन करें।
खंडन वाली ये बात कलेक्टरी वाले आईएएस को अखर गई। इसके बाद एक प्रेस विज्ञति उप जिला निर्वाचन अधिकारी ने निकाली। अखबार का नाम लिखते हुए इस विज्ञप्ति में कहा गया कि इसने गलत खबर छाप दी है। उस खबर को जिस रिपोर्टर ने कवर किया उसने रिकॉर्डेड वीडियो वायरल कर दिया, जिसमें कलेक्टर यह कह रहे हैं कि ईवीएम मशीन पूरी सुरक्षा के साथ बुजुर्ग और दिव्यांगों के घर तक ले जाई जाएगी।
बात जब कलेक्टरी के इज्जत पर आई कलेक्टर अपनी जुबान फिसलने और खेद जताने की बजाए इसका दोष उल्टे अखबार पर मढ़ दिया। कलेक्टर संजीव झा के इस कलेक्टरी वाले अंदाज की चर्चा पूरे आईएएस बिरादरी में चल रही है। वहीं सरकार की किरकिरी हो रही है सो अलग…।