कटाक्ष
How will the elephants become companions? : खाकी का डर होना चाहिए और वो भी,भामाशाह की तलाश..कमीशन के फेर में बाड़ी का विनाश,शार्टलिस्ट और सूची
✍️ खाकी का डर होना चाहिए और वो..
साउथ सुपरहिट मूवी केजीएफ 2 का ये संवाद ” डर होना चाहिए और वो दिल में होना चाहिए और वो दिल अपुन का नहीं, सामने वाले का होना चाहिए” .. ये लाइन को कड़क मिजाज पुलिस कप्तान ने गुंडागर्दी करने वालों को संदेश देते हुए कहा है खाकी का डर होना चाहिए और ऐसे लोगों पर जरूर होना चाहिए जो नेतागिरी का धौंस दिखाकर कर दबे कुचले लोगों पर हुक्म चला रहा हो.. पुलिस पब्लिक की सेवा के लिए है किसी नेता की गुलामी के लिए नहीं…!
साहब के साउथ सिंघम अवतार से शहर के कार्यकर्ताओ ने अपने प्रिय नेता के जेल जाने के गम में विलाप कर रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा कि शहर के शिकारी शहर छोड़ने की तैयारी में हैं। वैसे तो साहब अपने कड़क तेवर के नाम की वजह से मशहूर हैं। लेकिन, पिछले कुछ समय से शांत रहकर शहर के बिगड़ैल सांडों को कायदे में रहोगे..तो फायदे में रहोगे.. का संदेश देते रहे।
बाउजूद इसके शहर के वायलेंस पसंद लोगों को जो अपने आप को शहर का कमिश्नर समझते हैं उन्हें शांति रास नहीं आई और बीच मे बीच शेर की मांद में घुसकर छेड़ते रहे। फिर क्या शेर तो शेर है छेड़ने वालों को छोड़े कैसे.. हुआ भी यही साहब ने दहाड़ लगाई और एक कार्रवाई ने कोरबा से लेकर प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया और पुलिस अपने पर आ जाए तो क्या कर सकती है उसे गरीबों पर हुक्म चलाने नेताओं को बता दिया। जब नेताजी जी पुलिस की गिरफ्त में आए तो तब से उनके सताए लोग बाहुबली का गाना ” जय जयकारा, स्वामी देना साथ हमारा” गुनगुनाने लगे हैं।
✍️ भामाशाह की तलाश
9 साल से केंद्र की सत्ता संभाल रहे औऱ 15 साल तक प्रदेश की सत्ता में राज करने वाले भाजपा प्रत्याशी को शहर में भामाशाह की तलाश है। वैसे तो नेता जी खुद महापौर और विधायक जैसे पदों को सुशोभित कर राजनीति के राजा रहे। इसके बाद टिकट मिलते ही “मैं गरीब हव …मैं गरीब हव न..” का टेप रिकार्डर बांच रहे हैं।
उनके इस रोवन-धोवन को देख कर राजनीति के चाणक्य कह रहे कि माटी के लाल को भामाशाह की तलाश है। चुनावी दंगल में उतरने के बाद उनके हाथ जोड़ सबको सलाम कर भाई..वाली नीति से वोटर तो प्रभावित हो नहीं रहे बल्कि उल्टा उलाहना दे रहें हैं कि 15 साल से पार्टी को अकेले चलाने वाले विधायक ने कभी फंड का रोना नहीं रोया, बल्कि वे तो मंच से गरजते हुए कहते है ” हां हूं मैं पैसा वाला” ..!
और संसदीय कार्यकाल में कोयला की काली कमाई का मलाई चखने के बाद भी कोई कहे कि मैं गरीब हव तो यह बात पब्लिक को हजम नहीं होती। वैसे राजनीति के खेल में महारत हासिल करने दबंग नेताजी ने बाजी पलटने वाले जोकरों की टीम को साध लिया है। सो यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं है कि कांटे की टक्कर धीरे धीरे गोल चक्कर में गुम न हो जाए।
ये अलग बात है कि चुनाव अभी दूर है पर प्रचार में टिकट पाने से पहले ही कांग्रेसी खेमा भाजपा से आगे निकल गया है। रही सही सामग्री वितरण दुर्गा पूजा में दरबार के दरबान बांट देंगे। इसे भांपते हुए राजनीति समझने वाले नेता कहने लगे है कहीं भाजपा को भामाशाह की तलाश भारी न पड़ जाए..!
✍️ कमीशन के फेर में बाड़ी का विनाश
” दो सांड की लड़ाई में बाड़ी का विनाश ” की कहावत को जनपद के अफसर बखूबी चरितार्थ कर रहे हैं। बात कुछ यूं है कि डीएमएफ से मलाई निकालने वाले एनजीओ अबूझमाड़ आदिवासी जन विकास संस्थान नारायणपुर ने बाड़ी का विकास करने के नाम पर जिले में करोड़ों का वारा न्यारा कर दिया। ये बात भी सही है कि उसके योजना में कई अधिकारी भी साइलेंट पार्टनर है।
भोले भाले आदिवासियों को ठगने की बात जब जनपद के एक जनप्रतिनिधि पुत्र तक पहुंची तो मलाई में छाछ की उम्मीद लगा बैठे और एनजीओ संचालक के आश्वशन पर राशन की उम्मीद में आंखें पथरा गई। मतलब बात बिगड़ने पर भ्रष्टाचार की शिकायत तक पहुंच गई।
जब ये खबर वायरल हुई तो भ्रष्टाचार की नदी में गोता लगाने का सपना संगठन के लोग भी देखने लगे। कहा तो यह भी जा रहा कि शिकायतकर्ता खुद मामले में समझौता की दुहाई देने लगा था। खैर भ्रष्टाचार का मामला जैसे भी हो बाहर आया, आया तो सही…!
सूचना वायरल होने के बाद डिप्टी कलेक्टर के डमरू की आवाज लोगों को सुनाई देने लगी है। बहरहाल बाड़ी का विनाश तो हुआ लेकिन, अबूझमाड़ एनजीओ और जनपद के असफर का विकास जरूर हुआ है। अब साहब और एनजीओ मास्टर के बाड़ी का विनाश बड़ा मामला बन गया है। जनपद के जानकार तो कहने लगे है साहब की बाड़ी और गाड़ी दोनों गले की फांस बन गई है।
✍️ शार्टलिस्ट और सूची
विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी उम्मीदवारों का ऐलान करके बीएसपी, बीजेपी और अब आम आदमी पार्टी..सत्ताधारी दल से आगे निकल गई। मगर कांग्रेस में अभी भी शार्टलिस्ट का दौर चल रहा है। संभागवार उम्मीदवारों के नाम शार्टलिस्ट किए जा रहे हैं।
कांग्रेस के दो सत्ता केंद्र C-9 और सीएम हाउस में टिकट चाहने वालों की भीड़ लगी हुई है। कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य टीएस सिंहदेव कहते हैं कि हमने सरकार में रहकर 5 साल सभी के लिए काम किया है। अच्छे से फीडबैक लेकर सूची जारी करेंगे। 2 हजार से अधिक आवेदन आए हैं सभी की शॉर्ट लिस्टिंग हो रही है, इसलिए समय तो लगेगा।
मगर जैसे जैसे समय गुजर रहा है और शार्टलिस्ट और शार्ट होती जा रही है। उससे टिकट की दौड़ में शामिल लोगों की बैचैनी बढ़ती जा रही है। उम्मीदवारी के 2 हजार से अधिक आवेदन और शार्ट होती जा रही शार्टलिस्ट कांग्रेस की रणनीतिकारों की परेशानी बढ़ा रही है।
खबरीलाल की माने तो राहुल गांधी सोमवार को यूरोप दौरा से लौट रहे हैं। जिसके बाद प्रदेश कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की सूची पर दिल्ली में मंथन शुरु हो जाएगा। इस खबर के बाद टिकट चाहने वालों की भीड़ दिल्ली शिफ्ट होने लगी है। कई नेता दिल्ली फ्लाइट की बुकिंग करा चुके हैं। जिन्हें फ्लाइट की बुकिंग नहीं मिली वो ट्रेनों में अपनी सीट का जुगाड़ बना रहे हैं।
कुल मिला कर उम्मीदवारों का ऐलान दिल्ली से ही होना है और जिसे दिल्ली दरबार की आर्शीवाद मिलेगा शार्ट लिस्ट में उन्हीं के नाम पर मुहर लगेगी। तब तक रायपुर में शार्ट लिस्टिंग…शार्ट लिस्टिंग का खेल चलता रहेगा।
✍️हाथी कैसे बनेंगे साथी
छत्तीसगढ़ में सरकार के संरक्षण में बनाए गए एलिफेंट कॉरिडोर जंगली हाथियों के स्वछंद विचरण के लिए उपयुक्त प्राकृतिक आवास तो है मगर, इनमें मानवीय गतिविधियों के बढ़ते हस्तक्षेप ने हाथियों के स्वभाव को हिंसक बना दिया है। एलिफेंट कॉरिडोर में पिछले 4 सालों में करीब 50 से अधिक हाथियों की मौत हो चुकी है।
ऐसा इसलिए हो रहा है कि जंगली हाथी अब भोजन पानी की तलाश में आबादी बस्तियों की ओर रुख कर रहे हैं। कई बार इनका आमना सामना इंसानों से हो जाता है। मानव हाथी के इस द्वंद में दोनों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। इनमें से ज्यादातर हाथियों की मौत सरगुजा, कोरबा, बलरामपुर, सूरजपुर, रायगढ़, जशपुर और कोरिया जिले में हुई है।
रविवार को रायगढ़ जिले में धरमजयगढ़ वन मंडल में एक दंतैल नर हाथी की मौत हो गई। हालांकि कि अभी तक मौत की वजह सामने नहीं आ पाई है। मगर, ऐसा कहा जा रहा है कि इस हाथी की करंट की चपेट में आने से मौत हुई है। इससे पहले भी कई बार करंट की चपेट में आने से हाथियों की मौत होने की बात सामने आ चुकी है। और ये सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो क्या इसके लिए केवल हाथियों को ही जिम्मेदार माना जाए या फिर इन प्राणियों के प्राकृतिक आवास में मानवीय गतिविधियों के बढ़ते हस्तक्षेप को भी कारक माना जाएं।
जो भी हो इन जंगली हाथियों को साथी बनाने के लिए सरकार के साथ इन क्षेत्र में रहने वाले इंसानी आबादी को भी प्रशिक्षित बनाने की जरूरत है। इसके लिए जागरुकता अभियान के साथ एलिफेंट कॉरिडोर में पर्याप्त भोजन और पानी उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था सरकार को करनी होगी। तभी एलिफेंट कॉरिडोर में स्वछंद विचरण कर रहे जंगली हाथियों को सही मायने में साथी बनाया जा सकेगा।