रायपुर/बीजापुर। एक दौर था जब बस्तर संभाग नक्सल समस्या से पूरी तरह जकड़ा हुआ था और यहां विकास कार्य एक चुनौती बन गया था। नक्सलियों के आतंक के चलते कोई भी यहां निर्माण कार्य करने को तैयार नहीं होता था। तब अफसरों ने एक युक्ति निकाली। यहां ऐसे लोगों की तलाश शुरू की गई, जिनकी इलाके में अच्छी धमक हो और नक्सलियों से भी संबंध हों। ऐसे लोगों को चुन-चुन कर अफसरों ने सरकारी ठेके से संबंधित काम दिलाना शुरू किया। आलम यह था कि कई अफसरों ने अपनी जेब से पैसे भी लगा दिए। दरअसल उनकी नियत यहां विकास कार्य कराना नहीं, बल्कि अपनी जेबें भरना था। कालांतर में उनके बनाये छोटे-छोटे ठेकेदार आज इलाके के पूंजीपति बन गए हैं। इन्हीं में सुरेश चंद्राकार भी शामिल है, जो ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था और पुलिस विभाग ने उसे SPO (विशेष पुलिस अधिकारी) बना रखा था। उसे महज 10 हजार रूपये महीने मिलते थे। अफसरों ने उसे भी ठेकेदार बना दिया और आज वह लगभग 500 करोड़ का असामी बन गया है।
काम की गुणवत्ता की पूछ-परख नहीं..!
बस्तर के बारे में यह जग-जाहिर है कि वहां होने वाले सरकारी ठेका कार्यों की पूर्णता या गुणवत्ता के बारे में कोई पूछने वाला नहीं होता। यह तब और ज्यादा होता था जब पूरा इलाका घोर नक्सल प्रभावित था। दरअसल यहां सड़क अथवा स्कूल भवन या कोई और निर्माण कार्य करने के दौरान नक्सली हस्तक्षेप करते थे। जिसके चलते अफसरों ने नक्सलियों से सांठ-गांठ वाले युवाओं को ठेका काम दिलाना शुरू कर दिया। ऐसे लोग कथित ‘लेवी’ नक्सलियों तक पहुंचाते और बेधड़क होकर निर्माण कार्य करते। हालांकि काम कैसा हो रहा है, उसकी गुणवत्ता कैसी है, इस पर कोई ध्यान नहीं दे पाता था, क्योंकि नक्सलियों का खतरा बताकर अफसर निरीक्षण से बचते थे। मतलब यह हुआ कि काम को यूं ही पूरा बता दिया जाता था, और ठेके से मिली रकम की बंदरबांट कर ली जाती थी। इस तरह बस्तर में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से हजारों करोड़ खर्च कर दिए गए मगर धरातल पर कितने काम हुए इसकी समीक्षा करने की जरूरत है।
56 करोड़ की सड़क की लागत हो गई 112 करोड़..!
बस्तर में अफसरों और ठेकेदारों के बीच गठबंधन का ही नतीजा है कि यहां जिस सड़क के निर्माण की लगत 56 करोड़ तय की गई थी, उसे बढ़ाकर ठीक दुगुना, याने 112 करोड़ रूपये कर दिया गया। घोर नक्सल प्रभावित गंगालूर से नेलसनार तक की 52 किलीमीटर सड़क का निर्माण कार्य कई टुकड़ों में बांटकर ठेके पर दिया गया। बताया जाता है कि इनमें से अधिकांश कार्य इलाके के दबंग ठेकेदार सुरेश चंद्राकार को दिया गया। जानकार बताते हैं कि इस सड़क के कार्य में हो रही देरी के बहाने इसके निर्माण की लागत बढ़ा दी गई।
इस काण्ड में अफसरों की भूमिका तो नहीं..?
सड़क निर्माण घोटाले के चलते उपजे इस हत्याकांड को लेकर गहराई से छानबीन का काम शुरू हो गया है। 11 सदस्यीय SIT इस मामले की जांच कर रही है। यह बात तय है कि सड़क निर्माण के करोड़ों के इस घोटाले में PWD के अफसरों की सीधे तौर पर भूमिका है। उप मुख़्यमंत्री अरुण साव के आदेश पर इस घोटाले की जांच भी चल रही है। अगर जांच निष्पक्ष हुई तो निर्माण कार्य से जुड़े कई अफसर नप जायेंगे। ऐसे में यह आशंका भी बलवती हो रही है कि पत्रकार मुकेश को रास्ते से हटाने के षड्यंत्र में अफसरों की भूमिका भी तो नहीं है। हालांकि यह राज हत्यारों के सीने में दफन है, और SIT इस दिशा में भी जांच करे तो कोई बड़ा धमाका हो सकता है।