
कोरबा, 04 सितंबर। ऊर्जाधानी का प्राचीन और ऐतिहासिक आस्था स्थल मां सर्वमंगला मंदिर आज भी ट्रस्ट गठन की प्रतीक्षा में है। इस प्रक्रिया की शुरुआत 15 साल पहले हुई थी। वर्ष 2009 में प्रशासनिक कार्रवाई आगे बढ़ी और 23 सितंबर 2009 को इसका प्रकाशन छत्तीसगढ़ राजपत्र में भी किया गया। इसके बाद मंदिर परिसर की चल-अचल संपत्तियों का आकलन लगभग 50 लाख रुपये किया गया, लेकिन यहीं से प्रक्रिया ठहर गई और आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
मंदिर के लिए ट्रस्ट गठन की मांग समय-समय पर जनप्रतिनिधियों और भाजपा नेताओं द्वारा उठाई जाती रही है। आठ साल पहले भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष अशोक चावलानी, नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष योगेश जैन सहित कई पार्षदों ने एकजुट होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को ज्ञापन सौंपा था। उनका स्पष्ट कहना था कि सर्वमंगला देवी मंदिर का संचालन ट्रस्ट के माध्यम से होना चाहिए।
चौम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष योगेश जैन का मानना है कि ट्रस्ट गठन जनसुविधा के लिए आवश्यक है। ट्रस्ट बनने से न केवल मंदिर परिसर का विकास होगा, बल्कि श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिलेंगी, चढ़ावे का पारदर्शी हिसाब रहेगा और सामाजिक सरोकार के कार्य भी संभव हो पाएंगे।
सर्वमंगला मंदिर में वर्षभर भक्तों की भीड़ रहती है, जबकि नवरात्रि के समय आस्था का प्रवाह चरम पर होता है। अनुमान है कि हर साल मंदिर में करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है। इसमें स्वर्णाभूषण और चांदी के छत्र भी शामिल हैं। इसके बावजूद मंदिर परिसर और आसपास श्रद्धालुओं के बैठने-ठहरने, बच्चों के मनोरंजन या अन्य जनसुविधाओं का समुचित विकास नहीं हो सका है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि लंबे समय से लंबित ट्रस्ट गठन की प्रक्रिया पूरी हो जाए तो मंदिर की गरिमा और सुविधाओं दोनों में व्यापक सुधार संभव है।
क्यों जरूरी है ट्रस्ट
चौम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष योगेश जैन ने कहा कि ट्रस्ट बनने से न केवल मंदिर परिसर का विकास होगा, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध होंगी। साथ ही चढ़ावे का हिसाब पारदर्शी रहेगा और सामाजिक कार्यों को भी बढ़ावा मिलेगा।
चढ़ावे में करोड़ों, सुविधाओं का अभाव
सर्वमंगला मंदिर में नवरात्रि के अलावा सालभर भक्तों की भीड़ रहती है। अनुमान के मुताबिक हर साल करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है। स्वर्णाभूषण और चांदी के छत्र भी श्रद्धालु अर्पित करते हैं। इसके बावजूद मंदिर परिसर और आसपास श्रद्धालुओं के बैठने, ठहरने या बच्चों के मनोरंजन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
स्थानीयों की उम्मीदें
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि ट्रस्ट गठन की प्रक्रिया पूरी हो जाए तो मंदिर की गरिमा के अनुरूप विकास कार्य संभव हो सकेंगे और श्रद्धालुओं को आवश्यक सुविधाएं मिल पाएंगी।