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Holi with victory sign: खाकी की बेरंग होली और सायबर सेल,विक्ट्री साइन वाली होली..निगम का खजाना और छुट्टी में अफसर,दांतों की दुकान….

खाकी की बेरंग होली और सायबर सेल..

“मुन्नी बदनाम हुई” गाने में डीजे की धुन पर एसएसपी के साथ खाकी के वीर सिपाहियों ने थिरकते हुए होली में खूब गुलाल उड़ाए..लेकिन ऊर्जा नगरी के वीर जवानों की होली फीकी रही। अगर बात सायबर सेल की करें तो वे भी रफ्तार नही पकड़ सके और न ही ठीक से होली सेलिब्रेट कर पाए!

 

दरअसल छत्तीसगढ़ी का एक गाना ” पैसा हे त आघु करिश्मा पाछू  करीना हे..” पुलिस विभाग पर सटीक बैठती है। पूर्ववर्तीय सरकार में सायबर सेल का जो जलवा था उसे याद करते वीर सिपाहियों की आंखे नम हो जाती है। वो दौर था जब स्कॉर्पियो का सायरन सुनते ही लिफाफा गाड़ी तक चलके आता था। अब तो हाल बेहाल है ऊपर से कप्तान की तीसरी आंख हमेशा खुली रहती है कुछ ऊपर नीचे हुआ तो सीधा लाइन अटैच..! कहा तो यह भी जा रहा कि होली हो या दीवाली हर उत्सव को खाकी के वीर जवान खुलकर सेलिब्रेट करते थे। यह पहला अवसर है जब बिना रंग उड़ाए डीजे बजाए पुलिस की होली मनी। इन सबके बीच एक चौकी प्रभारी ने अल्प संसाधन में फूलों की होली खेलकर “परिंदों को मंजिल मिलेगी हमेशा, ये फैले हुए उनके पंख बोलते हैं। वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर,जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं..” की बातों को सत्य सिद्ध कर बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ आमजन को पुलिस से जोड़ने का प्रयास किया।

 

विक्ट्री साइन वाली होली, जो होगा अच्छा ही होगा…

शहर में एक नेताजी के विक्ट्री साइन वाली होली भाजपा के शीर्ष नेताओं को गीता का संदेश देता प्रतीत हो रहा है। माने कि राजनीतिक युद्ध के मैदान में हार जीत होते रहती है और आगे चलकर ऐसी कोई पुनरावृत्ति न हो इसका ध्यान रखेंगे।

उनके होली मिलन के उत्सव के अनेक अर्थ निकालने में राजनीतिक विश्लेषक जुटे हुए हैं लेकिन नेताजी को समझने वाले लोगों का मानना है कि गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश को आत्मसात कर चुके नेताजी स्थितिप्रज्ञ भाव में हैं।

 

वैसे तो होली का अर्थ जो हो गया उसे भुलाते हुए फिर से उत्साह भरने का है, पर यहाँ मामला उलट है राजनीतिक हलकों में जो हो गया उसे न तो पार्टी के नेता भूल पा रहे है और न ही संगठन। नेताजी भी होली के बहाने लोगो की पीठ थपथपाई कर कमान से निकले तिर्यक घाव भरने में लगे हुए हैं। कहते है सियासत का पत्ता कब किधर उड़ जाए पता ही नही चलता। शहर में नगर निगम सभापति चुनाव के बाद संगठन बिखरा बिखरा सा है। सभापति को चुनाव जीताने वाले समर्थक जीत का भी खुशी नही मना पा रहे है और दूसरा ये कि हारने के बाद भी नेताजी विक्ट्री साइन दिखाकर फिर से चर्चा में आ गए है। कहा तो यह भी जा रहा कि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को हराने का भुगतान किन लोगों को भरना पड़ेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। देखिए आगे आगे होता है क्या…!!..??

 

निगम का खजाना और छुट्टी में अफसर..

निगम के खजाने में सेंध लगने की खबरे लीक होते ही तिजोरी की चाबी रखने वाले अफसर का छुट्टी पर जाना दया कुछ तो गड़बड़ है की शंका को संबल दे रहा रहा है।

दरअसल 700 करोड़ी बजट वाले निगम में नेता पर अफसर भारी रहे है। महापौर पार्षदों के साथ ताल मेल बैठाते -बैठाते पांच साल गंवा देते है और अफसर मेयर और पार्षदों के बीच फुट डालकर राज करते है। ताजा मामला खजाना खाली होने का है। जिनके हाथ निगम के तिजोरी की चाबी थे, उन्होंने ही खूब खेल खेला है। सूत्रधार की माने तो निगम से बैंक में जमा होने वाले लगभग 2 Cr का हिसाब नही मिल रहा। नए आयुक्त ने एकाउंट देखा तो एक पल में समझ गए कि कुछ तो गड़बड़ है। बात निगम के नमूने अफसरो के बीच कानाफूसी होने लगी तो रिटायर के एक महीना पहले ही एकाउंट अफसर सीधा एक महीने की छुट्टी में चले गए। उधर निगम के खाते हुई गड़बड़ी पर बैंक मैनेजर पर कार्रवाई हो गई। अब दूसरी कार्रवाई छुट्टी वाले अफसर पर होने की बात निगम के गलियारों में होने लगी है। 2Cr के गड़बड़ी वाले अफसर छुट्टी में तो चले गए लेकिन बैचैन होकर सड़क और आकाओं के चक्कर काट रहे हैं। इन सबके बीच मधुर मुस्कान वाले पंडित जी “आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है..” गुनगुना कर निगम के खजाने को लूटने वालो को संदेश दे रहे है।

 

दांतों की दुकान

 

होली के दूसरे दिन सुबह सुबह शर्माजी…..अपने गाल को हाथों से दबाए जोर जोर से चहलकदमी कर रहे थे..। उनके कदम खानदानी दांतों के डाक्टर बाबू बंगाली के क्लीनिक तक जाकर चाय की गुमटी तक वापस लौट रहे थे। बाबू बंगाली के क्लीनिक पास ही सरकारी ठेका भी था। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि शर्माजी सरकारी ठेका का चक्कर लगा रहे हैं या दांतों के क्लीनिक का…। बहुत देर तक उनकी बैचेनी देखकर आखिर में खबरीलाल ने पूछ ही लिया..क्या बात है..मामला क्या है आप गालों पर हाथ लगाए किसे ढूढ़ रहे हैं। शर्माजी धीरे से बोले अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है होली पर कुछ उलटासीधा चबा लिया इसलिए दांत जड़ से हिल गए हैं…उसे ही उखड़वाना है, मगर क्लीनिक बंद है।

खबरीलाल भी होलीयाना मूड में थे वो बात को आगे बढ़ाते हुए बोल उठे..कौन से दांत खाने के या दिखाने के..इतना सुनते ही शर्माजी..का चेहरा तमतमा गया.. क्या मतलब है आपका..। खबरीलाल ने मसला साफ करते हुए कहा..मेरा मतलब था…शर्मा जी आपके सामने के दांत सही सलामत दिख रहे हैं…रही बात अकल दाढ़ की तो वो दिखाने के नहीं चबाने के होते हैं..इतना सुनते ही गुमटी में खड़े लोग हंस पड़े। बात को संभालते हुए अब शर्माजी बोले..न दिखाने के न चबाने के बल्कि वो किटकिटाने के दांत उखड़वाने आए हैं।

तब खबरीलाल बाबू बंगाजी की क्लीनिक पर लगे बोर्ड की ओर इशारा करते हुए बोले शर्माजी दांत तो दो प्रकार के ही होते हैं सामने के दांत दिखाने और अंदर के दांत चबाने के..ये किटकिटाने के दांत क्या होते हैं। अब तो गुमटी में मजमा लग गया था। हर कोई ये जानना चाहता था..किटकिटाने के दांत कैसे होते हैं। अब तो शर्माजी को बताना ही पड़ेगा…। शर्माजी की होली वाली भंग अभी उतरी नहीं थी..जब तक बाबू बंगाली क्लीनिक पर आते वो लोगों को दांतों के प्रकार बताने लगे।

शर्माजी खबरीलाल से बोले …अखबार पढ़ते हो..आवाज आई हां इसी गुमटी में पढ़ते हैं। तो सुनो दिखाने वाले दांत वो होते हैं जो थोड़े धक्के लगाने पर टूट जाते हैं मगर दोबारा उग आते हैं जैसे भारतमाला प्रोजेक्ट में गड़बड़ी करने वाले अफसर वो दिखाने के दांत हुए..। अभी सस्पेंड हुए हैं कुछ दिन बाद बहाल हो जाएंगे। अब मामला कुछ कुछ समझ में आने लगा था..शर्माजी दार्शनिक अंदाज में आगे बोले..चबाने के दांत वो होते हैं जिनकी जड़ें ब​हुत गहरी होती हैं…वो सब कुछ चबा कर हजम कर जाते हैं..जैसे नेता, कारोबारी और वो अफसर जिन्होंने भारत माला प्रोजेक्ट के आसपास की पूरी जमीन खरीद ली…और उसके टुकड़े टुकड़े करके करोड़ों का मुआवजा बिना डकार लिए हजम कर गए..आवाज आई एकदम ठीक कह रहे हैं।

मगर किटकिटाने के दांत क्या होते हैं…शर्माजी थोड़ा मुस्कुराए फिर बताया सुनो किटकिटाने के दांत के वो होते हैं जो न तो दिखाने के होते हैं न चबाने के..वो बस किटकिटाने के होते है..लोकतंत्र में इसे सरकार के दांत कहते हैं। इसे ऐसे समझे..भारत माला का मामला जब सदन से पब्लिक तक पहुंचा तो नेता लोग सवाल उठाने लगे..जवाब सरकार को देना पड़ा लेकिन क्या करें…सरकार चलाने के लिए वो अलग से अफसर कहां से लाए। जो हैं उन्हीं से काम चलाना पड़ेगा..और सरकार दांत किटकिटाते हुए इसकी जांच के लिए तैयार हो गई। शर्माजी ने आगे बताया दांत किटकिटाने का भी अपना मजा हैं…काम भी हो जाता है..और सरकार भी चल पड़ती है। बात अभी चल ही रही थी कि बाबू बंगाली की ​क्लीनिक खुल गई और शर्माजी वहां से तेजी आगे बढ़े और व्हीलचेयर में जा बैठे..।

 

जय माता दी..

 

प्रदेश में सुशासन की सरकार बने करीब करीब डेढ़ साल पूरे हो चुके हैं। इन डेढ़ साल में लोकसभा से लेकर पंचायतों तक कुल 4 चुनाव हुए..इन सभी इंतहान में जनता ने सुशासन की सरकार को पास कर दिया। सरकार के नंबर बढ़ाने के लिए मंत्री, नेता और संगठन ने जमकर पसीना बहाया..सभी को उम्मीद है कि अब उन्हें मेहनत का फल मिलने वाला है। निगम, मंडलों में होने वाली नियुक्ति में अब देर नहीं होना है।

खबरीलाल की मानें तो मार्च के आखिर तक या अप्रैल के पहले पखवाड़े में निगम, मंडलों में नियु​क्तियां कर दी जाएंगी। वैसे अभी विधानसभा चल रही है..उसके बाद दो बड़े कार्यक्रम होने हैं। 24 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और 30 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रवास होना है। 30 मार्च से ही चैत्र नवरात्रि शुरु होगी..और हिन्दू नववर्ष भी शुरु हो जाएगा..।

लालबत्ती की आस में डेढ़ साल तक पसीना बहाने वाले बीजेपी के विधायकों और नेताओं के लिए इस साल की नवरात्रि शुभ होने वाली है..अब माता रानी की कृपा किस पर बरसती है इसके लिए इंतजार करें…तब तक जय माता दी..।

      ✍️अनिल द्विवेदी ईश्वर चन्द्रा

 

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