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Roti Maker or Money Maker: थानेदारो का मिस्टर इंडिया वाला रोल, निगम का ब्लॉकबस्टर : रिश्वत – द रियल हीरो .. फाइलें गायब करने वाला किरदार कौन.. “महराज” या कंप्यूटर ऑपरेटर,बिन डिग्री के इंजीनियर…

थानेदारो का मिस्टर इंडिया वाला रोल…

ऊर्जाधानी के ऊर्जावान थानेदार इन दिनों अनिल कपूर की सुपरहिट फिल्म “मिस्टर इंडिया” के रोल में दिखाई दे रहे हैं। फर्क बस इतना है कि यहां अदृश्यता कोई जादुई घड़ी से नहीं, बल्कि रोजनामचे की कलम से हासिल की जाती है।
सुबह साहब बड़े स्टाइल में “रवानगी” दर्ज करवाते हैं, कागज़ों में गांव–देहात का दौरा शुरू हो जाता है। पर असलियत? साहब की गाड़ी का इंजन थाने के बाहर ही उमस भरी दोपहरी में ठंडा।पड़ा रहता है। न दौरा, न जनता से मुलाकात…बस थाने के चारों ओर ग्राहकों की खोज और कुर्सी पर टिके-टिके कानून की रील चलाना।
शाम होते ही फिर से “आमद” दर्ज, और साहब मुस्कुराते हुए कहते हैं…“कैलेंडर, आज भी किसी ने मुझे देखा क्या?”
और जवाब में थाने की दीवारें ठहाका मारती हैं – “नहीं साहब, आप तो पूरे मिस्टर इंडिया हैं।”खबरीलाल की मानें तो मर्ग और एफआईआर के झंझट से बचने का यह नया नुस्खा है। जिले में ऐसे थाने विरले ही होंगे जहां जांच की फाइलें सचमुच आगे बढ़ रही हों। वरना तो हाल यह है कि सीसीटीवी कैमरों की सूक्ष्म जाँच हो जाए, तो कई थानेदार “रवानगी” पर होने के बावजूद थाने की कुर्सी पर ही टिके मिल जाएंगे।
जहां तक कानून-व्यवस्था की बात है, शहर भली-भांति जान रहा है एजीएम फरार है, और गिरफ्तारी वारंट मृत व्यक्ति के नाम पर निकल रहा है। जनता हंसते हुए कह रही है थानेदारों की मिस्टर इंडिया वाली तरकीब देखकर तो वाकई मोगैम्बो खुश हुआ!

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निगम का ब्लॉकबस्टर : रिश्वत – द रियल हीरो

“क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे…” 70 के दशक में धर्मेंद्र की इज्ज़त का ये गीत आज निगम भवन निर्माण शाखा में रीमिक्स वर्ज़न में चलता है।। फर्क बस इतना है कि यहां नकली चेहरा किसी फिल्मी हीरो का नहीं, बल्कि सरकारी अफसरों का है। यहां अफसरों की कुर्सी बदलते ही नियम भी फैशन ट्रेंड की तरह बदल जाते हैं। आज स्लिम फिट नियम, कल लूज़ फिट नियम…पर जेब भरने का फिक्स साइज हमेशा XL रहता है।
भवन निर्माण अनुमति दिलाने का खेल अब पारदर्शिता से नहीं, बल्कि “मास्क शो” से चल रहा है। साहब खुद सामने नहीं आते, बल्कि अथॉराइज्ड आर्किटेक्ट्स को आगे कर देते हैं।
जैसे कोई जादूगर टोपी से खरगोश निकालकर तालियां बटोरता है, वैसे ही ये फाइलों से नोट निकालकर जेबें गरमाते हैं। होता यह है कि ईमानदारी से काम करने वाले आर्किटेक्ट्स को भी शक की नज़रों से देखा जाता है।
खबरीलाल की मानें तो साहब को सिर्फ एक ही फार्मूला पसंद है “हम गुड़ भी खाएं और हाथ चिपचिपे भी न हों।” यानी मंजूरी भी मिले और जेब भी गरम हो। इसके लिए उन्होंने भवन निर्माण अनुमति पर अपना नया “नियम” लागू कर दिया है। मकान मालिकों से “मंहगाई भत्ता” के नाम पर रकम वसूल कर तयशुदा जगह पर पहुंचाने का फरमान जारी कर दिया गया है।
अब हाल यह है कि आर्किटेक्ट पुराने नियमों का राग अलाप रहे हैं, नए साहब नए सुर छेड़ रहे हैं और जनता बीच में पिस रही है। मकान मालिक फाइलों और चक्करदार सिस्टम में उलझकर निगम को कोसते नहीं थक रहे।
लोग कहते हैं त्रिपल इंजन हो या सिंगल इंजन, निगम का पेट्रोल हमेशा जनता की जेब से ही भरता है। फर्क सिर्फ इतना है कि हर बार नया साहब नया मास्क लगाकर जाता है।

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फाइलें गायब करने वाला किरदार कौन.. “महराज” या कंप्यूटर ऑपरेट!

जिले के आदिवासी विकास विभाग में जो न हो थोड़ा है..। असल में विभाग में करोड़ों के निर्माण कार्य के गोल मॉल के मामले में एक अदना सा कंप्यूटर ऑपरेट को बर्खास्त कर दिया गया और मठाधीश मजे कर रहे हैं। वैसे तो आदिवासी कल्याण विभाग वनवासी समुदाय को शिक्षा के साथ मुख्य धारा से जोड़ने के नाम पर करोड़ों का बजट खर्च करता है, लेकिन विकास की गंगा सिर्फ अफसरों और ठेकेदारों के दरवाजे तक ही बहती रही। वनवासी के हाथ आज भी खाली हैं।
ये फर्जीवाडा पूर्ववर्ती सरकार के समय का है। जहां केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना 275(1) के तहत मिली राशि को ठेकेदार और अफ़सर ने आपस में बांट लिया। निर्माण शाखा के बाबू बदलते ही गड़बड़ी सामने आई तो विभागीय फाइलें गायब हो गईं और जिम्मेदारी तय करने के बजाय सारा ठीकरा एक कंप्यूटर ऑपरेटर के सिर फोड़ दिया। विभाग में जबरदस्त चर्चा है कि जब निर्माण शाखा के “महराज” मौजूद थे तो उनकी जवाबदेही कहां गई? क्या हर बार निचले कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाकर बड़े अफसर खुद को बचाते रहेंगे?

बिन डिग्री के इंजीनियर!

छत्तीसगढ़ में फर्जी डिग्री की आड़ में सरकारी विभाग में नौकरी करने वालों की फे​हरिस्त काफी लंबी है। कई मामलों में तो बात रिटायरमेंट से आगे निकल आई है। ये सब कुछ छत्तीसगढ़ में हो रहा है ऐसा भी नहीं है, मध्यप्रदेश के जमाने से ऐसे कई मामले कोर्ट में सुनवाई से गुजर रहे हैं।
ताजा मामला 2012-13 के ग्रामीण विकास विभाग में उप अभियंता की नियुक्तियों से जुड़ा है जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है। सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रकरण की पैरवी कर रहे अधिवक्ता से ही पूछा लिया.. जब नौकरी के लिए डिग्री और रोजगार कार्यालय में पंजीयन अनिवार्य है, तो जिन अभ्यर्थियों के पास अंकसूची ही नहीं थी, उनका पंजीयन कैसे संभव हुआ।
न्यायालय ने साफ संकेत दिया कि नियुक्ति प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही और नियम विरुद्ध कार्य हुए हैं, जिनकी जांच और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई जरूरी है। फिलहाल मामला विचाराधीन है और कोर्ट के सख्त रुख से उन लोगों की उम्मीद बढ़ गई है जो बिना मान्य डिग्री या नियम विरूद्ध सरकारी पदों पर नियुक्त होकर सालों से नौकरी कर रहे लोगों की वजह से नौकरी पाने से वंचित रह गए हैं।

रोटी मेकर या मनी मेकर

छत्तीसगढ़ में करीब पौने दो साल से केंद्रीय जांच एजेंसियां शराब घोटाला, कोयला घोटाला, भारत माला जमीन मुआवजा, महादेव सट्टा ऐप, डीएमएफ, जल जीवन मिशन और कस्टम मिलिंग जैसे करप्शन के बड़े मामले में पसीना बहा रही है और अब तो नान घोटाला मामले में पूर्व आईएएस आलोक शुक्ला गिरफ्तारी से बचने के लिए सरेंडर करने खुद कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। अब इस मामले में आदिम जाति कल्याण विभाग का नाम जुड़ गया है।
असल में राज्य में करप्शन की जड़ें इतनी गहराई तक पैठ कर चुकी है कि, कोई भी विभाग इससे अछूता नहीं बचा। आदिवासियों के कल्याण से जुड़े विभाग के घाघ अफसर रोटी बनाने वाली 50 हजार की मशीन की 8 लाख में खरीदी कर डाली। करप्शन में सबकी हिस्सेदारी बनी रहे इसके लिए विभाग ने रोटी मेकर को मनी मेकर बना दिया।
जब मामला खुला तो विभाग के मंत्री रामविचार नेताम ने विभागीय प्रमुख सचिव से 7 दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगने की हिम्मत दिखाए हैं लेकिन, यह पहली बार नहीं है जब विभाग पर महंगी दरों पर सामान खरीदे जाने का आरोप लगा हो। इससे पहले भी विभागीय खरीद में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं। प्रदेश के आदिवासी जिलों के अलावा कोरबा में डीएमएफ फंड की बंदर बांट में शिक्षा विभाग के अफसरों ने जमकर मलाई काटी है।
अब अगर मंत्री जी को हिसाब ही मांगना है तो पिछले पांच साल में हुई विभागीय खरीदी की रिपोर्ट मांग लें..जहां विभागीय खरीदी में सरकारी फंड का इस्तेमाल मनी मेकर के लिए हुआ है। प्रयास संस्था द्वारा खरीदी गई रोटी मेकर इसकी छोटी कड़ी है.. बड़े मगरमच्छ तो अभी भी बिना डकार मारे भ्रष्टाचार की गंगा के किनारे उलानबांटी मार रहे हैं।

✍️अनिल द्विवेदी, ईश्वर चन्द्रा

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