Prevention of Corruption Act : सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी…! “ईमानदार अफसरों की सुरक्षा जरूरी, लेकिन भ्रष्टाचार का संरक्षण नहीं”
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A की वैधता पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जताई चिंता

नई दिल्ली, 06 अगस्त। Prevention of Corruption Act : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान कहा कि ईमानदार अधिकारियों को तुच्छ और फर्जी शिकायतों से सुरक्षा देना आवश्यक है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भ्रष्ट अधिकारियों को भी संरक्षण दिया जाए। यह टिप्पणी कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस बीवी नागरथना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने स्पष्ट किया कि, “अगर अफसरों के सिर पर हर समय फर्जी शिकायतों की तलवार लटकती रहेगी, तो वे खुद को असुरक्षित महसूस करेंगे। इसका सीधा असर उनकी निर्णय क्षमता और कार्यक्षमता पर पड़ेगा। इससे प्रशासन में ‘नीतिगत पक्षाघात (Policy Paralysis)’ जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि, “हर अधिकारी ईमानदार है या हर अधिकारी भ्रष्ट है, इस तरह की सामान्यीकरण वाली सोच भी सही नहीं। अधिकारियों द्वारा लिए गए हर निर्णय को संदेह की नजर से देखना न्यायसंगत नहीं।”
याचिका का तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दाखिल याचिका में दावा किया गया कि धारा 17A के चलते भ्रष्टाचार की स्वतंत्र जांच में बाधा उत्पन्न हो रही है। उन्होंने कहा कि, ईमानदार अधिकारियों की सुरक्षा के लिए पहले से ही पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं। यह धारा जांच एजेंसियों की स्वायत्तता और निष्पक्षता को कमजोर करती है। कुछ मामलों में नेताओं के खिलाफ जांच सिर्फ इसलिए बंद कर दी गई क्योंकि वे सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए।
केंद्र सरकार का पक्ष
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भूषण की दलीलों को राजनीतिक करार देते हुए कहा कि, “यह मुद्दा कानून की कानूनी व्याख्या (Legal Interpretation) से जुड़ा है, न कि राजनीतिक विचारधारा से। 17A का उद्देश्य अफसरों को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाना है, न कि भ्रष्टाचार को छुपाना।”
क्या है धारा 17A?
धारा 17A के तहत, लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू करने से पहले संबंधित सरकार की पूर्व अनुमति अनिवार्य है, यदि आरोपित कृत्य उनके सरकारी कार्य से संबंधित है।