
कोरबा। दुर्गोत्सव पर शहर की सड़कें झालरों से चमचमा रही हैं, मैदान रोशनी से जगमगा रहे हैं, हर पंडाल में झिलमिलाती लाइटों की चकाचौंध है। मगर नेताजी सुभाषचंद्र बोस चौक पर खड़ी नेताजी की प्रतिमा मानो सोच रही हो – “क्या मेरी सजावट करने से चढ़ावा नहीं चढ़ता, इसलिए आयोजकों ने ध्यान ही नहीं दिया…?”

प्रतिमा की गर्दन पर एक माला तक नहीं, सिर पर एक झालर भी नहीं। नेताजी का वीर व्यक्तित्व मानो कह रहा हो – “भारत माता के इस सपूत का योगदान इस पावन पर्व को मनाने में नहीं गिना जाता क्या?”
उधर, मैदान में घूमने निकले लोग भी प्रतिमा को देखते-देखते कहते पाए गए – “लगता है नेताजी भी टिकट लेकर पंडाल देखने जाएं तो ही माला पहनाई जाएगी!”
दुर्गोत्सव की धूम में शहर की सड़कें झालरों से जगमगा रही हैं, दशहरा मैदान लाइटों से नहा रहा है, पंडालों में देवी प्रतिमाओं की भव्य सजावट देखने लोग उमड़ रहे हैं। लेकिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस चौक पर खड़ी नेताजी की प्रतिमा इस पूरे उत्सव से बेखबर, वीरान और उपेक्षित खड़ी है। जो कि शहर में चर्चा का विषय है।
जहाँ मैदान में बिजली की झालरों का जाल बिछा है, वहीं भारत माता के वीर सपूत की प्रतिमा के गले में एक माला तक नहीं डाली गई। चौक से गुजरने वाले लोगों ने इसे नेताजी का अपमान कहा।