कोरबा। मौजूदा लोकसभा चुनाव में कोरबा के बैग्राउंड पर गौर करने से यह पता चलता है कि भाजपा के लिए चुनावी नैया पार लगाना कड़ी और बड़ी चुनौती होगी। इस क्षेत्र के चुनावी इतिहास पन्ने पलटें तो भले ही इस सीट पर कभी किसी एक दल का कब्जा लगातार बरकरार नहीं रहा, लेकिन जब-जब कोई जीता, पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार की उम्मीद पर ही जनता ने अपनी मुहर लगाई। परिसीमन के बाद नवगठित कोरबा लोकसभा में यह चौथी बार चुनाव होना जा रहा है, जबकि बीते तीन चुनाव में दो बार कांग्रेस और एक बार भाजपा ने जीत हासिल की। खास बात यह रही कि पहली बार हो या तीसरी बार, जीत का सेहरा ओबीसी प्रत्याशी के सिर पर बंधा और सामान्य वर्ग के ब्राह्मण प्रत्याशी को ही हार का सामना करना पड़ा है। पहले चुनाव में भाजपा की करुणा शुक्ला ने डॉ चरणदास महंत से और तीसरे चुनाव भी भाजपा प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे ने श्रीमती ज्योत्सना महंत के हाथों शिकस्त पाई।
छत्तीसगढ़ की 11 सीटों में कोरबा लोकसभा के रसूख की धमक रायपुर से लेकर दिल्ली तक रही है। राज्य ही नहीं, इसे देश के पावर कैपिटल की ख्याति प्राप्त है। यही वजह है जो लोकसभा चुनाव 2024 में बड़ी पार्टियों और बड़े राजनीतिक चेहरों की प्रतिष्ठा लगी हुई है। परिसीमन के बाद पहली बार 2008 में कोरबा की सीट अस्तित्व में आई। इससे पहले यह जांजगीर लोकसभा सीट के अंतर्गत थी। वर्ष 2008 में कोरबा सीट पर पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 2009 में हुआ, जिसे कांग्रेस के डॉ चरण दास महंत ने अपने नाम किया। उन्होंने बीजेपी की करुणा शुक्ला को हराकर यहां के पहले सांसद होने का गौरव हासिल किया। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से डॉ बंशीलाल महतो ने जीत हासिल की और उन्होंने कांग्रेस के पूर्व विजेता डॉ चरण दास महंत को शिकस्त दी। वर्ष 2019 में कांग्रेस की ज्योत्सना महंत यहां से सांसद बनीं और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे को हरारकर कांग्रेस को यह सीट लौटाई।
कुछ इस तरह समझें कोरबा का जातिगत समीकरण
कोरबा लोकसभा में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें भरतपुर-सोनहत, मनेंद्रगढ़, बैकुंठपुर, रामपुर, कोरबा, कटघोरा, पाली-तानाखार और मरवाही शामिल हैं। इनमें भी कोरबा, कटघोरा, रामपुर और पाली-तानाखार समेत कोरबा जिले की पांच विधानसभा शामिल है। इसके अलावा अविभाजित कोरिया जिले से मनेंद्रगढ़, भरतपुर सोनहत और बैकुंठपुर समेत तीन और बिलासपुर जिले की मरवाही विधानसभा सीट आती है। कोरबा लोकसभा में सबसे ज्यादा अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के 44.5 प्रतिशत मतदाता हैं। इसके बाद अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के 9.2 फीसदी, मुस्लिम वोटर्स 3.5 प्रतिशत और बाकी बचे हुए वोटर्स सामान्य वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कैटेगरी से है। इस लोकसभा क्षेत्र में साक्षरता दर 61.16 प्रतिशत है। वर्तमान में इस लोकसभा क्षेत्र में 15,99,188 मतदाता हैं।
जानिए प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि
सरोज पांडेय- विस में भाजपा की जीत की ताकत, संसदीय क्षेत्र बदल जाने की चुनौती
लोकसभा 2024 के चुनाव में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले कोरबा लोकसभा सीट से भाजपा ने प्रदेश की तेज तर्रार नेत्री सुश्री सरोज पांडेय को अपना प्रत्याशी बनाया है। वे साल 2018 में राज्यसभा सांसद चुनी गईं। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी लेखराम साहू को हराकर जीत दर्ज की थी। सुश्री पांडेय पहली बार साल 2000 और 2005 में दूसरी बार दुर्ग की मेयर बनीं। साल 2008 में पहली बार वैशाली नगर से विधायक चुनी गईं। इसके बाद बीजेपी ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में दुर्ग संसदीय सीट से जीत हासिल की। वर्ष 2013 में भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी और 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू से हार गईं। बीजेपी ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया और मार्च 2018 में राज्यसभा के लिए चुना गया। प्रदेश के साथ ही साथ केंद्र सरकार व केंद्रीय संगठन ने पुनः 2024 के लोकसभा के चुनाव में उन्हें कोरबा संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार है।
ज्योत्सना महंत – इस सीट पर पूर्व के तजुर्बे की ताकत, कांग्रेस के विस चुनाव में हार की चुनौती
कांग्रेस ने कोरबा लोकसभा सीट से एक बार फिर ज्योत्सना महंत को मैदान में उतारा है। 70 वर्षीय ज्योत्सना महंत एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में चार दशकों से अधिक समय से कोरबा क्षेत्र में कई विकास परियोजनाओं से जुड़ी हुई हैं। वह पिछले कई दशकों से अपने पति के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं। उनके पति चरण दास महंत छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, जबकि उनके ससुर बिसाहू दास महंत छह बार कांग्रेस विधायक थे। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद, श्रीमती महंत के लिए कोरबा में एक कठिन लड़ाई की स्थिति दिख रही है। भाजपा ने लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से छह पर जीत हासिल की है। इस चुनाव में उन्हें भाजपा नेता सरोज पांडे के रूप में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।