कोरबा। कन्या को विवाह में जो स्त्री धन मिलता है, उसकी लिस्टिंग जरूरी है। उन सामग्रियों की लिस्ट नहीं होने पर दहेज़ प्रकरण बनने की दशा में उनकी वापसी में दिक्कत होती है। इस प्रकार की किसी भी समस्या होने पर पीड़ित महिला 181 मे शिकायत कर सकती है। हमारी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत सभी लड़कियों को शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बना रही है। महिलाओं को अगर कार्यस्थल में परेशानी होती है, लैंगिक उत्पीड़न हो रहा हो तो वर्ष 2013 में एक अधिनियम लाया गया, ताकि महिलाएं जिस जगह में काम कर रही हैं, वहां निर्भीक होकर काम कर सकें।
यह बातें कमला नेहरू महाविद्यालय एवं ज्योति भूषण प्रताप सिंह विधि महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित जागरूकता शिविर में महिला बाल विकास विभाग की संरक्षण अधिकारी (घरेलू हिंसा) श्रीमती रजनी मारिया ने छात्राओं को मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहीं। महिला एवं बाल विकास विभाग कोरबा, जिला विधिक जागरूकता परिषद एवं चाइल्ड लाइन कोरबा के संयुक्त सहयोग से विषय विशेषज्ञों ने छात्राओं को महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करते हुए जागरूक किया। मुख्य वक्ता के रूप में महिला बाल विकास विभाग की संरक्षण अधिकारी (घरेलू हिंसा) श्रीमती रजनी मारिया, सखी वन स्टॉप सेंटर की केंद्र प्रशासक सुश्री पुष्पा नवरंग, जिला विधिक जागरूकता परिषद की पैरालीगल वालिंटियर श्रीमती उमा नेताम एवं चाइल्ड लाइन कोरबा की टीम मेंबर से श्रीमती अनुराधा सिंह उपस्थित रहीं। श्रीमती मारिया ने आगे बताया कि शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना अथवा जहां महिलाओं को घरेलु हिंसा होती है, वे मायके में भी अपनी प्रताड़ना दर्ज करा सकती हैं। महिलाएं जहां काम करती हैं, वहां भी अगर प्रताड़ना हो रही है तो कार्य स्थल में भी अपना प्रकरण दर्ज करा सकती हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा उनके प्रकरण में मदद के लिए नि:शुल्क अधिवक्ता की सुविधा दी जाती है। न्यायाधीश द्वारा आदेशित किया जाता है कि अगर महिला ससुराल में रहना चाहती है तो रह सकती है। उस महिला को ससुराल में रहते हुए कोई प्रताड़ित नहीं करेगा। इस अधिनियम का पालन नहीं करने पर एक साल कारावास या 20000 रुपये जुर्माना से दंडित किया जा सकता है। कन्या को विवाह में जो स्त्री धन मिलता है, उसकी लिस्टिंग जरूरी है। सामग्री की लिस्ट नहीं होने पर उन समानों की दहेज़ प्रकरण होने पर वापसी में दिक्कत होती है। महिलाएं 181 मे शिकायत कर सकते हैं। हमारी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तहत सभी लड़कियों को शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बना रही है। महिलाओं को अगर कार्यस्थल मे परेशानी होती है, या फिर कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न हो तो वर्ष 2013 में एक अधिनियम लाया गया, ताकि महिलाएं जिस जगह में काम कर रही हैं, वहां निर्भीक होकर काम कर सके। नियमानुसार जहां 10 से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं, वहां कमेटी का गठन होना जरुरी है। श्रीमती पुष्पा नवरंग ने सखी वन स्टॉप सेंटर की सहायता से संबंधित जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि यह पीड़ित महिलाओं के लिए है। ऐसी महिलाएं अपना प्रकरण दर्ज करा सकती हैं। हेल्पलाइन नंबर 181 की सुविधा मौजूद है जो 24 घंटे चालू रहता है। जिस महिला के साथ ससुराल में मारपीट होती है, पुलिस मदद लेने पर उन्हें रात के समय सखी सेंटर में शरण दी जाती है। महिला बाल विकास द्वारा काउंसिलिंग भी की जाती है, ताकि वह सही निर्णय ले सके। कई घर बिखरने से बच जाते हैं।
विधि के विद्यार्थी होने के नाते आस पास निगाह रखें, पीड़ितों को न्याय प्राप्त करने प्रेरित करें : डॉ प्रशांत बोपापुरकर
इस चर्चा उपरांत कमला नेहरू महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ प्रशांत बोपापुरकर ने कहा कि खासकर विधि के विद्यार्थी होने के नाते इन युवाओं को अपने आस पास की इस तरह की घटनाओं पर निगाह रखना चाहिए और अपने कानूनी ज्ञान से पीड़ितों को जागरूक कर न्याय की प्राप्ति के लिए प्रेरित भी करना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन ज्योति भूषण प्रताप सिंह विधि महाविद्यालय कोरबा की प्राचार्य डॉ किरण चौहान ने किया। मंच संचालन विधि कॉलेज के सहायक प्राध्यापक महिपाल कहरा ने किया। इस अवसर पर कमला नेहरू एवं ज्योति भूषण प्रताप सिंह विधि महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक, कर्मचारी और छात्र छात्राएं मौजूद रहे।
कोई बच्चा मुश्किल में दिखे तो पहल करें, 1098 पर कॉल एक मासूम जिंदगी बचा सकता है : अनुराधा सिंह
चाइल्ड लाइन कोरबा की टीम से उपस्थित अनुराधा सिंह ने कहा कि महिला एवं बाल विकास विभाग बच्चों की लिए काम करता है। बच्चों के लिए क़ानून के तहत चाइल्ड हेल्प लाइन 1098 सहायता दी जाती है। मुसीबत में पड़े बच्चों को देखें तो हाथ बढ़ाएं और उनकी मदद के लिए 1098 पर किया गया सिर्फ एक कॉल मासूम जिंदगी बचा सकती है। बच्चों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून हैं, जिनमें पाक्सो एक्ट शामिल है। बच्चों के विरुद्ध लैंगिक उत्पीड़न, अश्लील वीडियो दिखाना, अनाथ बच्चों से बाल मजदूरी अपराध की श्रेणी में आता है। फैक्ट्री में 18 साल के बच्चे काम नहीं कर सकते।